नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा का एक पुराना इतिहास रहा है और हर दौर में यहां के सत्ताधारी दलों ने इसे एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व में राज्य की वर्तमान तृणमूल कांग्रेस बदलाव का वादा कर सत्ता में आई थी। लेकिन एक नई किताब में दावा किया गया है कि उनके कार्यकाल में बदले की भावना से युक्त राजनीतिक हिंसा के मामलों में तेजी आई है।
यह दावा किया गया है पश्चिम बंगाल के राजनीतिक इतिहास में राजनीतिक हत्याओं पर आधारित हालिया प्रकाशित पुस्तक 'रक्तांचल' में। इसके अलावा 2 और पुस्तकों 'रक्तरंजित बंगाल' और 'बंगाल : वोटों का खूनी लूटतंत्र' में भी इसका ब्योरा दिया गया है। वरिष्ठ पत्रकार रासबिहारी द्वारा लिखी गईं इन पुस्तकों में बंगाल में कथित तौर पर हुई राजनीतिक हत्याओं का विस्तृत ब्योरा प्रस्तुत करने के साथ ही दावा किया गया है कि राज्य में भले ही कांग्रेस, वामपंथी दलों या फिर तृणमूल कांग्रेस का शासन रहा लेकिन राजनीतिक हत्याओं का दौर थमा नहीं।
पुस्तक 'रक्तांचल' में दावा किया गया है कि 2011 में 34 सालों तक पश्चिम बंगाल में राज कर चुके वामंपथी शासन का खात्मा करने वाली ममता बनर्जी जब सत्ता में आईं तो उन्होंने भी वही किया, जो उनके पूर्ववर्तियों ने किया था। पुस्तक के मुताबिक बदला नहीं, बदलाव चाहिए के नारे के साथ ममता बनर्जी ने चुनाव तो लड़ा लेकिन जीतने के बाद राज्य में राजनीतिक हत्याओं में तेजी आने लगी। माकपा (मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी) कार्यकर्ताओं पर हमले तेज हो गए।
पुस्तक में दावा किया गया है कि ममता बनर्जी ने अपनी पार्टी का विस्तार करने के लिए भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की मदद ली, लेकिन सत्ता में आने के बाद उन्होंने सबसे ज्यादा इन्हीं दोनों को अपना निशाना बनाया। इसके मुताबिक वर्ष 2011 में एक बार तो खुद मुख्यमंत्री बनर्जी अपने कार्यकर्ताओं को छुड़ाने भवानीपुर थाने पहुंच गई थीं।
पुस्तक में कहा गया कि शायद यह राजनीति में पहला ऐसा मामला होगा जब किसी मुख्यमंत्री ने थाने पहुंचकर दंगाइयों को छुड़ाया। पुस्तक के मुताबिक वर्ष 1971 में कांग्रेस के तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे ने भी राजनीतिक हिंसा का सहारा लिया और विरोधियों को कुचलने का काम किया। यह सिलसिला ज्योति बसु के मुख्यमंत्री बनने के बाद भी जारी रहा और ममता बनर्जी के दौर में ऐसे मामलों में लगातार वृद्धि होती चली गई।
पुस्तक में घुसपैठ और वोट बैंक की राजनीति के लिए ममता बनर्जी की आलोचना की गई है दावा किया गया है कि इसकी वजह से पश्चिम बंगाल में हिन्दुओं की आबादी घटी और मुसलमानों की आबादी राष्ट्रीय स्तर से दोगुनी रफ्तार से बढ़ी। पुस्तक में ममता बनर्जी के केंद्र व पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी और मौजूदा राज्यपाल जगदीप धनखड़ से टकराव का भी विवरण है। (भाषा)