रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए कहा कि अगर सरकार सिर्फ अपने समर्थकों की बात सुनने से परहेज करेगी तो गलतियां कम करेगी। रघुराम राजन ने यह भी कहा कि लोकलुभावन राष्ट्रवाद अर्थव्यवस्था के लिए नुकसानदायक होता है। विदित हो कि भाजपा सरकार के सत्ता में आने के बाद अर्थव्यवस्था के भी 'राष्ट्रवादी' और 'संस्कारी' बनाने का प्रयास किया जा रहा है।
आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने केन्द्र और राज्य सरकारों को नसीहत दी है और कहा है कि सभी सरकारों को केवल अपने समर्थकों की मांगों के आधार पर काम करने की बजाय व्यापक स्तर पर लोगों की बात सुननी चाहिए ताकि गलतियों के होने की संभावना कम से कम हो। वे रविवार को एक कार्यक्रम में शामिल होने के लिए दिल्ली में थे, जहां उन्होंने कई मुद्दों पर अपनी राय रखी।
जनता द्वारा चुने जाने के बाद अपनी मर्जी से सरकार चलाने वाले शासकों को लेकर किए गए सवाल पर उन्होंने कहा कि यह चिंताजनक है। समाज का एक तबका उन्हें (सरकार को) हमेशा मजबूती से समर्थन देता है, इससे गलतियां होने की संभावना बढ़ जाती है। अगर आप ज्यादा से ज्यादा मतदाताओं को नहीं सुन रहे हैं तो ऐसा करके आप कभी-कभी देश को गलत रास्ते पर ले जाते हैं।
एक समाचार चैनल से बात करते हुए राजन ने लोकलुभावन राष्ट्रवाद को आर्थिक विकास के लिए हानिकारक बताया। उन्होंने कहा कि ऐसा राष्ट्रवाद विभाजनकारी होता है। उन्होंने कहा कि बाकी दुनिया की तरह भारत भी इस समस्या से अछूता नहीं है। उनका यह भी कहना था कि व्यवस्था में शामिल लोगों सहित कॉरपोरेट घराने और मीडिया समूह अपने हितों के चलते नेताओं के आगे झुकते हैं।
राजन ने चेतावनी देते हुए कहा कि, ‘यहीं आकर एक संकीर्ण लोकतंत्र, घोर पूंजीवाद बन जाता है। इसमें राजनीति और कॉरपोरेट के बीच परस्पर हितकारी संबंध होता है।’ क्रोनी कैपिटलिज्म को परिभाषित करते हुए रिजर्व बैंक के पूर्व प्रमुख ने नोटबंदी पर भी एक बार फिर बात की। उन्होंने कहा कि समूचे आंकड़ों के सामने आने के बाद ही इस कवायद के पूरे प्रभाव का पता चल पाएगा।
राजन के अनुसार टैक्स चोरी करने वालों की पहचान करने में कर अधिकारियों की भूमिका महत्वपूर्ण है, वहीं कार्रवाई के नाम पर होने वाले शोषण को लेकर राजन ने कहा कि जो भी जानकारी इकट्ठा की जा रही है, उसकी शत्रुता की भावना दिखाए बिना जांच करनी होगी। उन्होंने कहा, ‘यह संदेश देना जरूरी है कि हमें देश की कर व्यवस्था को बेहतर करने की जरूरत है। एक सीमा तक हम इसे बिना सख्ती के ही कर सकते हैं।’
विदित हो कि कर आधार बढ़ाने और ज्यादा से ज्यादा सरकारी खजाने को भरने के उत्साह में सरकारों के मंत्री और अधिकारी इन बातों को नजरअंदाज कर देते हैं। यह सभी जानते हैं कि केन्द्र सरकार में ऐसे मंत्रियों, कार्यकर्ताओं की कमी नहीं है जोकि 'भव्य मंदिर' बनाने के लिए कृत संकल्पित हैं तो कुछ गाय को बचाने के लिए लोगों को मारने में बुराई नहीं देखते हैं। और सरकारें समाज के सबसे कमजोर वर्गों, नौकरीपेशा लोगों पर करों का बोझा लादती चली जा रही हैं।