अमेरिका के अफगानिस्तान छोड़ने के बाद जिस तरह से तालिबान की ताकत बढ़ी है वह न सिर्फ अफगानिस्तान बल्कि भारत के लिए भी अच्छा संकेत नहीं है। अभी अमेरिका ने पूरी तरह अफगानिस्तान छोड़ा भी नहीं है, इसी बीच तालिबान ने दावा किया है कि उसने करीब एक तिहाई अफगानिस्तान पर अपना कब्जा जमा लिया है।
दरअसल, तालिबान को पाकिस्तान का समर्थक माना जाता है। वर्तमान सरकार के साथ तालिबान की लड़ाई में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी भी उसका प्रत्यक्ष और परोक्ष सहयोग कर रही है। साथ पाक समर्थित जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर जैसे आतंकवादी संगठन तालिबान की मदद कर रहे हैं।
लश्कर और जैश ऐसे संगठन हैं जो भारत में खासकर जम्मू-कश्मीर क्षेत्र में अपनी आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देते हैं। ऐसे में यदि निकट भविष्य में तालिबान अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज हो जाता है तो जैश और लश्कर जैसे आतंकी संगठन भारत के लिए मुश्किल का कारण बन सकते हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि उन्हें तालिबान से भी भारत के खिलाफ मदद भी मिल जाए। और, पाकिस्तान तो यही चाहता भी है।
जम्मू कश्मीर में लश्कर और जैश कई हमले कर चुके हैं। देश के कुछ अन्य हिस्सों में हुए आतंकवादी हमलों में भी उनके नाम सामने आए हैं। दूसरी ओल, तालिबान ने अभी से चीन के साथ करीबियां बढ़ाना शुरू कर दी हैं। यह भी माना जा रहा है कि निवेश के नाम पर निकट भविष्य में चीन अफगानिस्तान में भी अपने पांव जमा सकता है, जो कि भारत के हित में बिलकुल भी नहीं होगा।
इसके अलावा अफगानिस्तान में भारत की कई परियोजनाएं चल रही हैं, तालिबान के आने के बाद वे भी खटाई में पड़ सकती हैं। ऐसे में तालिबान को लेकर भारत को फूंक-फूंक कर कदम बढ़ाने की आवश्यकता है। अमेरिका ने अफगानिस्तान में अपनी 20 साल पुरानी लड़ाई खत्म करने का ऐलान कर दिया है। इससे धीरे-धीरे तालिबान के पांव मजबूत हो रहे हैं और जानकारों का मानना है कि आने वाले 6 माह में तालिबान अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्जा जमा सकता है।