नई दिल्ली। अपनी स्थापना के 85 साल पूरे कर चुके राष्ट्रपति भवन को विरासत स्थल का दर्जा मिलने के बाद पहली बार 'हेरिटेज कंजर्वेशन प्लान (विरासत संरक्षण योजना)' के तहत यहां काम शुरू किया गया है।
विरासत स्थलों के संरक्षण से जुड़ी अग्रणी संस्था इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज (इंटेक) की निगरानी में केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (सीपीडब्ल्यूडी) संरक्षण योजना को मूर्तरूप देगा।
परियोजना से जुड़े इंटेक के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि भवनों के संरक्षण से पहले होने वाला सर्वेक्षण आईआईटी रूड़की द्वारा किया जा रहा है। सर्वेक्षण में अत्याधुनिक '3डी लेजर स्कैनिंग' तकनीक से यह पता लगाया जा रहा है कि राष्ट्रपति भवन के किस हिस्से में संरक्षण का क्या और कितना काम किया जाना है?
दुनियाभर में ऐतिहासिक महत्व के विरासत स्थलों में संरक्षण कार्य की रूपरेखा 3डी लेजर स्कैनिंग की मदद से ही तय की जाती है। इसमें वक्त के थपेड़ों से इमारत में आई अतिसूक्ष्म दरार और क्षरण का बिलकुल सटीक पता चल जाता है।
परियोजना की शुरुआत साल 2013 में राष्ट्रपति सचिवालय द्वारा सीपीडब्ल्यूडी के मार्फत इंटेक से राष्ट्रपति भवन की संरक्षण योजना बनाने का अनुरोध करने के साथ हुई थी। विरासत स्थलों के संरक्षण के लिए प्रचलित अंतरराष्ट्रीय मानकों के मुताबिक इंटेक ने समूचे परिसर की 2 चरणों में पूरी होने वाली संरक्षण योजना को सीपीडब्ल्यूडी को साल 2015 में सौंप दिया था।
इस पर काम शुरू करने की मंजूरी मिलते ही कार्ययोजना के मुताबिक 330 एकड़ में फैले समूचे राष्ट्रपति भवन परिसर के बाहरी हिस्से में पहले चरण का संरक्षण कार्य पिछले साल शुरू किया गया। यह प्रेसीडेंट इस्टेट का वह हिस्सा है जिसमें राष्ट्रपति सचिवालय, कुछ ब्रिटिशकालीन बैरक, बंगले और आजादी के बाद निर्मित कर्मचारी आवासीय परिसर शामिल हैं। (भाषा)