Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

तो 2024 का चुनाव भी नहीं लड़ पाएंगे राहुल गांधी... किस हालत में बचेगी संसद सदस्यता, क्या बोले एक्सपर्ट्‍स

हमें फॉलो करें तो 2024 का चुनाव भी नहीं लड़ पाएंगे राहुल गांधी... किस हालत में बचेगी संसद सदस्यता, क्या बोले एक्सपर्ट्‍स
, शुक्रवार, 24 मार्च 2023 (00:29 IST)
नई दिल्ली। कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को सूरत की अदालत ने आपराधिक मानहानि का दोषी ठहराते हुए 2 साल कैद की सजा सुनाई है। हालांकि कोर्ट ने उन्हें जमानत देते हुए सजा को 30 दिनों के लिए सस्पेंड कर दिया है ताकि वह इसके खिलाफ हाई कोर्ट में अपील कर सकें। कांग्रेस नेता राहुल गांधी को सूरत की अदालत द्वारा दो साल कैद की सजा सुनाए जाने की पृष्ठभूमि में कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि अगर अपीलीय अदालत उनकी दोष सिद्धि और दो साल की सजा को निलंबित कर देती है, तो वह लोकसभा की सदस्यता के लिए अयोग्य नहीं होंगे।
गुजरात के सूरत जिले की एक अदालत ने ‘मोदी’ उपनाम (सरनेम) को लेकर की गई टिप्पणी के संबंध में 2019 में दायर आपराधिक मानहानि के मुकदमे में राहुल को दो साल कैद की सजा सुनाई है।
 
वरिष्ठ अधिवक्ता एवं संवैधानिक कानून के विशेषज्ञ राकेश द्विवेदी ने लिलि थॉमस और लोक प्रहरी मामलों में उच्चतम न्यायालय के क्रमश: वर्ष 2013 और 2018 के फैसलों का हवाला दिया। 
 
उन्होंने कहा कि सांसदों/विधायकों के लिए जनप्रतिनिधित्व कानून के तहत अयोग्यता से बचने के वास्ते सजा का निलंबन और दोषी करार दिए जाने के फैसले पर स्थगनादेश आवश्यक है।
 
द्विवेदी ने कहा कि अपीलीय अदालत दोष सिद्धि और सजा को निलंबित कर सकती है और उन्हें जमानत दे सकती है। ऐसी स्थिति में उन्हें अयोग्य घोषित नहीं किया जाएगा।
उन्होंने हालांकि यह भी कहा कि लेकिन राजनेताओं को कानूनी पचड़े में फंसने से बचने के लिए अपने शब्दों का सावधानी से चयन करना चाहिए।’’
 
द्विवेदी ने कहा कि सांसद के रूप में राहुल गांधी को अयोग्य घोषित किए जाने की संभावनाओं पर चर्चा में उच्चतम न्यायालय के फैसलों में कही गई बातों के कानूनी अर्थ और जनप्रतिनिधित्व कानून के संबंधित प्रावधानों को ध्यान में रखा जाए।
 
इस बीच, सूत्रों ने बताया कि लोकसभा सचिवालय अदालत के आदेश का अध्ययन करने के बाद राहुल गांधी को अयोग्य करार देने के संबंध में फैसला करेगा और अधिसूचना जारी करके संसद के निचले सदन में रिक्ति की जानकारी देगा।
 
निर्वाचन आयोग के एक पूर्व वरिष्ठ अधिकारी व चुनावी कानून विशेषज्ञ का मानना है कि राहुल गांधी को अपनी दोष सिद्धि पर भी स्थगनादेश की आवश्यकता होगी। विशेषज्ञ अपनी पहचान सार्वजनिक करने के इच्छुक नहीं हैं। उन्होंने कहा कि सजा का निलंबन दोष सिद्धि के निलंबन से अलग है।
 
विशेषज्ञ ने कहा कि लिलि थॉमस फैसले के अनुसार, ऐसी दोष सिद्धि जिसमें दो साल या ज्यादा की सजा सुनाई जाती है, उसके तहत जनप्रतिनिधि स्वत: अयोग्य हो जाएगा। बाद में लोक प्रहरी मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अगर अपील करने पर दोष सिद्धि निलंबित हो जाती है, तो अयोग्यता भी स्वत: निलंबित हो जाएगी।
 
उन्होंने कहा कि कांग्रेस नेता को ऊपरी अदालत से दोष सिद्धि पर भी स्थगनादेश लेना होगा।
 
लोकसभा के पूर्व महासचिव व संविधान विशेषज्ञ पी. डी. टी. आचारी ने कहा कि सजा का ऐलान होने के साथ ही अयोग्यता प्रभावी हो जाती है। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी अपील करने के लिए स्वतंत्र हैं और अगर अपीलीय अदालत दोष सिद्धि और सजा पर रोक लगा देती है, तो अयोग्यता भी निलंबित हो जाएगी।
 
सजा पूरी होने या सजा काटने के बाद अयोग्यता की अवधि छह साल की होती है।
आचारी ने कहा कि (अगर वह अयोग्य घोषित कर दिए गए तो) अयोग्यता आठ साल की अवधि के लिए होगी।’’ उन्होंने कहा कि अयोग्य घोषित किया गया व्यक्ति न तो चुनाव लड़ सकता है और न ही उस समयावधि में मतदान कर सकता है।
 
आचारी का विचार है कि अयोग्यता अकेले दोष सिद्धि से नहीं, बल्कि सजा के कारण भी होती है। उन्होंने कहा कि इसलिए, अगर निचली अदालत द्वारा ही सजा को निलंबित कर दिया जाता है, तो इसका अर्थ है कि उनकी सदस्यता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। अयोग्यता प्रभावी नहीं होगी।
 
लोक प्रहरी मामले में उच्चतम न्यायालय के तीन न्यायाधीशों की पीठ ने 2018 में कहा था कि अपीलीय अदालत द्वारा अगर सांसद की दोष सिद्धि निलंबित कर दी जाती है, तो अयोग्यता ‘अपुष्ट’ मानी जाएगी। इस पीठ में भारत के वर्तमान प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ भी थे।
 
2018 के फैसले के मुताबिक ‘‘यह समर्थन योग्य नहीं है कि दोष सिद्धि के कारण हुई अयोग्यता अपीलीय अदालत द्वारा दोष सिद्धि पर रोक लगाए जाने के बाद भी जारी रहेगी। दोष सिद्धि पर रोक लगाने की अपीलीय अदालत को प्राप्त शक्ति सुनिश्चित करती है कि अपुष्ट या हल्के (जो गंभीर नहीं हैं) आधार पर हुई दोष सिद्धि कोई गंभीर दुराग्रह पैदा ना करे। लिलि थॉमस फैसले में जिस प्रकार से स्पष्ट किया गया है, दोष सिद्धि पर स्थगन व्यक्ति को जनप्रतिनिधित्व कानून के प्रावधान 8 के उप-प्रावधान 1, 2 और 3 के प्रावधानों के तहत अयोग्यता के परिणाम भुगतने से राहत देता है।
 
2013 के लिलि थॉमस मामले में उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में जनप्रतिनिधित्व कानून के प्रावधान 8(4) को खारिज कर दिया था, जो दोषी सांसद/विधायक को इस आधार पर सत्ता में बने रहने का अधिकार देता था कि अपील तीन महीने के भीतर दाखिल कर दी गई है।
 
कांग्रेस नीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार ने 2013 में जनप्रतिनिधित्व कानून के एक प्रावधान को दरकिनार करने के लिए उच्चतम न्यायालय के इस फैसले को पलटने का प्रयास किया था। लेकिन उस दौरान राहुल गांधी ने ही संवाददाता सम्मेलन में इस अध्यादेश का विरोध किया था और विरोध स्वरूप इसकी प्रति फाड़ दी थी।
 
जनप्रतिनिधित्व कानून के प्रावधान के मुताबिक, दो साल या उससे ज्यादा की सजा पाने वाला व्यक्ति ‘‘दोष सिद्धि की तिथि’’ से अयोग्य हो जाता है और सजा पूरी होने के छह साल बाद तक अयोग्य रहता है।
 
जनप्रतिनिधित्व कानून के प्रावधान आठ में उन अपराधों का जिक्र है, जिनके तहत दोष सिद्धि पर सांसद/विधायक अयोग्य हो जाएंगे। भाषा Edited By : Sudhir Sharma

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

2020 दिल्ली दंगा मामला : आईबी अधिकारी की हत्या में ताहिर हुसैन, अन्य के खिलाफ आरोप तय