नई दिल्ली। राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हो चुकी है। मध्यस्थता के जरिए विवाद का कोई हल निकालने का प्रयास असफल होने के बाद अब सुप्रीम कोर्ट ने मामले की रोजाना सुनवाई करने का फैसला किया है। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय संवैधानिक पीठ इस मामले की सुनवाई कर रहा है। इस संवैधानिक पीठ में जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एसए नजीर भी शामिल हैं।
1 अगस्त को मध्यस्थता समिति ने सुप्रीम कोर्ट में सीलबंद लिफाफे में फाइनल रिपोर्ट पेश की थी और फिर सुप्रीम कोर्ट ने रिपोर्ट के हवाले से बताया कि मध्यस्थता समिति के जरिए मामले का कोई हल नहीं निकाला जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही कहा था कि अगर आपसी सहमति से कोई हल नहीं निकलता है तो मामले की रोजाना सुनवाई होगी। यह फैसला चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली संवैधानिक पीठ ने किया। न्यायालय ने अयोध्या मामले की सुनवाई की रिकॉर्डिंग करने की आरएसएस के पूर्व विचारक केएन गोविंदाचार्य की अर्जी खारिज की।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा था कि इस मामले में मध्यस्थता की कोशिश सफल नहीं हुई है। समिति के अंदर और बाहर पक्षकारों के रुख में कोई बदलाव नहीं दिखा।
हफ्ते में 3 दिन होगी सुनवाई : सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद मामले में गठित मध्यस्थता कमेटी भंग करते हुए कहा कि 6 अगस्त से अब मामले की रोज सुनवाई होगी। यह सुनवाई हफ्ते में 3 दिन मंगलवार, बुधवार और गुरुवार को होगी।
मध्यस्थता से नहीं निकला था हल : सुप्रीम कोर्ट ने 8 मार्च को पूर्व जज जस्टिस एफएम कलीफुल्ला की अध्यक्षता में 3 सदस्यों की समिति गठित की थी। कोर्ट का कहना था कि समिति आपसी समझौते से सर्वमान्य हल निकालने की कोशिश करे। इस समिति में आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर और वरिष्ठ वकील श्रीराम पांचू शामिल थे।
समिति ने बंद कमरे में संबंधित पक्षों से बात की, लेकिन हिन्दू पक्षकार गोपाल सिंह विशारद ने सुप्रीम कोर्ट के सामने निराशा व्यक्त करते हुए लगातार सुनवाई की गुहार लगाई। 155 दिन के विचार-विमर्श के बाद मध्यस्थता समिति ने रिपोर्ट पेश की और कहा कि वह सहमति बनाने में सफल नहीं रही है।
मालिकाना हक का दावा : निर्मोही अखाड़ा ने रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद की 2.77 एकड़ विवादित जमीन पर मालिकाना हक का दावा किया। निर्मोही अखाड़े ने क्षेत्र के प्रबंधन और नियंत्रण की मांग की। न्यायालय ने निर्मोही अखाड़ा से कहा, किसी भी स्थिति में आपको उच्च न्यायालय के प्रारंभिक फैसले में विवादित भूमि का एक तिहाई हिस्सा दिया गया है।
निर्मोही अखाड़ा ने अपनी दलील दी कि 1934 से ही किसी मुसलमान को राम जन्मस्थल में प्रवेश की अनुमति नहीं थी और उस पर सिर्फ निर्मोही अखाड़े का नियंत्रण था। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ को निर्मोही अखाड़ा का पक्ष रख रहे वरिष्ठ अधिवक्ता सुशील जैन ने बताया कि वह क्षेत्र पर नियंत्रण और उसके प्रबंधन का अधिकार चाहते हैं। अखाड़ा के वकील ने शीर्ष अदालत को बताया कि उनका वाद मूलत: वस्तुओं, मालिकाना हक और प्रबंधन अधिकारों के बारे में है।
वकील ने कहा, मैं एक पंजीकृत निकाय हूं। मेरा वाद मूलत: वस्तुओं, मालिकाना हक और प्रबंधन के अधिकारों के संबंध में हैं। साथ ही उन्होंने शीर्ष अदालत को बताया कि सैकड़ों साल तक भीतरी परिसर और राम जन्मस्थान पर अखाड़ा का नियंत्रण था। बाहरी परिसर जिसमें सीता रसोई, चबूतरा, भंडार गृह हैं, वे हमारे नियंत्रण में थे और किसी मामले में उन पर कोई विवाद नहीं था।