साहित्य में आए दिन किसी न किसी बात पर विवाद अब बेहद आम हो गया है। अब एक ऐसे ही मामले में पत्रकार रविश कुमार ने साहित्य बिरादरी में विवाद खड़ा कर दिया, इतना ही नहीं, इसके बाद वे फेसबुक पर बुरी तरह से ट्रोल भी हो गए। उनकी भाषा और तरीके को लेकर लेखक और कवि आपत्ति जता रहे हैं। पिछले दो दिनों से ये विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। फेसबुक पर यह मुद्दा गर्म है।
आइए जानते हैं क्या अरुणाभ की कविता को लेकर रविश कुमार ने ऐसा क्या कहा कि वे लेखकों और कवियों के निशाने पर आ गए।
दरअसल, बुधवार को रविश कुमार ने कवि अरुणाभ सौरभ की किताब को लेकर एक न्यूजपेपर की कटिंग अपने फेसबुक वॉल पर शेयर की थी।
इस खबर का शीर्षक था-- धूम मचा रही सहरसा के अरुणाभ सौरभ की किताब
इसके कैप्शन में रविश ने लिखा था—
कोई इन कवि जी को जानता है ? पूछना था कि किस शो में इनकी कविता पढ़ी थी ? उम्र के कारण याद नहीं रहता है। बादाम भी बकवास है। कुछ नहीं होता खाने से। जब से देखा है तब से सुना लगा रहा है न पढ़ा लग रहा है। कवि ही उस शो का लिंक दे सकते हैं।
बस फिर क्या था, जैसे ही यह वायरल हुआ रविश कुमार एक कवि को लेकर इस तरह की भाषा को लेकर ट्रोल हो गए। सारे साहित्यकार और लेखक उनकी आलोचना करने लगे। उनका कहना था कि एक पत्रकार का एक कवि या लेखक के लिए इस तरह की भाषा का इस्तेमाल कहां तक जायज है।
यू उपासना ने लिखा--
रवीश कुमार जी, आप जिस तरह जरूरी बातें और मुद्दे उठाते रहे हैं उसके लिए हमेशा सम्मान रहा है पर बहुत बार ऐसा हुआ है कि कुछ ऐसे ही मुद्दों पर आपकी भाषा बहुत चुभी है। पिछले साल भी किसी गुमनाम लेखक ने कोई किताब भेजी थी और आपने लगभग खिल्ली उडाते हुए पोस्ट लिखी थी। जो किताब आपको नहीं पसंद उसे नज़र अंदाज़ कर देना मजाक उड़ाने से अधिक गरिमापूर्ण है। और बात आपके आज के पोस्ट की तो अरूणाभ सौरभ हमारे वक़्त के चर्चित प्रतिभाशाली कवि हैं.. उन्हें यह बात समझनी चाहिए थी कि किसी के भी पढने न पढने से किसी लेखक और कवि की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ता। अपने लिखे हुए का सम्मान सबसे महत्वपूर्ण है। बाकी आप बादाम खाएं या न खाएं यह आपका निजी मामला है। परन्तु बिलाशक आपको अपनी इस असंवेदनशील दंभपूर्ण भाषा पर विचार करना चाहिए।
अनुशक्ति सिंह ने लिखा—
यह भाषा किसी पाठक की नहीं है सर, कवियों का मज़ाक़ उड़ाने की मंशा रखने वाले अटेरिए पटेरिए पाठक यूँ लिखते हैं सर। आपको क्या ज़रूरत आन पड़ी… यह सब बिना दम्भ के भी कहा जा सकता था।
रश्मि भारद्वाज ने लिखा,
पोस्ट की भाषा बेहद दम्भपूर्ण है। अच्छा नहीं लगा पढ़कर। अख़बार अक्सर बिना जानकारी लिए छाप देते, अरुणाभ हिंदी साहित्य के समर्थ युवा कवि हैं। आपको इस तरह व्यंग्यात्मक भाषा में यह पोस्ट नहीं लिखनी चाहिए थी।
निरंजन क्षोत्रिय ने एक कमेंट में कहा,
अरुणाभ एक प्रतिभाशाली युवा कवि हैं।
गीताश्री ने लिखा...
पिछले दिनों एक बड़े पत्रकार लाइव कर रहे थे, एक उपन्यासकार के साथ. पहली लाइन थी - इन दिनों इनके उपन्यास में साहित्य जगत में धूम मचा रखी है… ! उपन्यास दो साल पहले छपा था. संयोग से दोनों मेरे मित्र. होता है… ! अतिरंजना इसी को कहते हैं. हम सब धूम मचा लो हैं. वैसे उपन्यास और अरुणाभ की कविताएँ दोनों पसंद हैं.
शशि भूषण ने रविश कुमार का बचाव करते हुए लिखा,
आपको रवीश कुमार जी की पोस्ट एक बार फिर से पढ़नी चाहिए। जिस कतरन में उनका ज़िक्र है वो विज्ञापन ख़बर ही है। किसी विज्ञापन ख़बर में झूठ मुठ को किसी का नाम बेच लिया जाए यह ठीक नहीं। मुझे लगता है कल को मैं कहीं भाषण दूँ कि मैं वही शशिभूषण हूँ जिसकी किताबों की भूरी भूरी प्रशंसा उपासना जी करती हैं तो आप भी पूछेंगी ज़रूर कब की? वो ख़बर नहीं है। वो विज्ञापन है।
अनुराधा सिंह ने कहा,
मैं तो रवीश कुमार जी की अभद्र भाषा पर हतप्रभ हूँ बाक़ी बातें तो उसके बाद शुरू होती हैं।
अनुराधा गुप्ता ने कहा,
तुम्हारी हर बात सही है। बस मुझे एक चीज़ उचित नहीं लगा ,अरुणाभ जी ने खुद अपनी वॉल पर अख़बार की उस पोस्ट को क्यों शेयर किया जो झूठी थी.. क्या इसका डिस्क्लेमर उन्हें नहीं देना चाहिए? या फिर उन्हें ये उम्मीद नहीं थी कि रवीश कुमार इसका संज्ञान लेंगे?
अबरार मुलतानी ने लिखा,
मुझे लगता है वह मीडिया पर कटाक्ष था
उधर रविश कुमार की वॉल पर भी लेखकों और सोशल मीडिया यूजर्स ने जमकर प्रतिक्रिया दीं। किसी ने इस तरह से लेखक के बारे में ऐसी भाषा के लिए उनकी आलोचना की तो किसी इसे पब्लिसिटी स्टंट बताया। तो वहीं किसी ने खबर को विज्ञापन बताया।
कौन हैं अरुणाभ सौरभ?
अरुणाभ बिहार के सहरसा के रहने वाले लेखक और कवि हैं। वे नई पीढ़ी के हिंदी-मैथिली कवि-लेखक हैं। उन्हें साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार, ज्ञानपीठ युवा पुरस्कार। मैथिली कविता संग्रह एतबे टा नहि पर साहित्य अकादेमी का युवा पुरस्कार एवं डॉ महेश्वरी सिंह महेश ग्रंथ पुरस्कार मिल चुके हैं।