Israel-Iran war : इजरायल-ईरान संघर्ष के कारण ईरान जाने वाला लगभग 1,00,000 टन बासमती चावल भारतीय बंदरगाहों पर फंसा हुआ है। भारत के कुल बासमती चावल निर्यात में ईरान की 18-20 प्रतिशत की हिस्सेदारी है। निर्यात खेप मुख्य रूप से गुजरात के कांडला और मुंद्रा बंदरगाहों पर रुकी है, जहां पश्चिम एशिया संघर्ष के कारण ईरान जाने वाले माल के लिए न तो जहाज उपलब्ध हैं और न ही बीमा। निर्यात खेप में देरी और भुगतान को लेकर अनिश्चितता गंभीर वित्तीय तनाव पैदा कर सकती है। चावल की कीमतें पहले ही चार-पांच रुपए प्रति किलोग्राम तक गिर चुकी हैं। पहले भी अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के कारण ईरानी बाजार में भुगतान में देरी और मुद्रा संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ा है।
अखिल भारतीय चावल निर्यातक संघ ने सोमवार को यह जानकारी दी। संघ के अध्यक्ष सतीश गोयल ने कहा कि ईरान जाने वाला लगभग 1,00,000 टन बासमती चावल फिलहाल भारतीय बंदरगाहों पर फंसा है। भारत के कुल बासमती चावल निर्यात में ईरान की 18-20 प्रतिशत की हिस्सेदारी है।
गोयल ने बताया कि निर्यात खेप मुख्य रूप से गुजरात के कांडला और मुंद्रा बंदरगाहों पर रुकी है, जहां पश्चिम एशिया संघर्ष के कारण ईरान जाने वाले माल के लिए न तो जहाज उपलब्ध हैं और न ही बीमा। उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय संघर्ष, आमतौर पर मानक शिपिंग बीमा पॉलिसियों के तहत कवर नहीं होते हैं, जिससे निर्यातक अपनी खेप भेजने में असमर्थ हैं।
उन्होंने कहा कि निर्यात खेप में देरी और भुगतान को लेकर अनिश्चितता गंभीर वित्तीय तनाव पैदा कर सकती है। उन्होंने कहा कि घरेलू बाजार में बासमती चावल की कीमतें पहले ही चार-पांच रुपए प्रति किलोग्राम तक गिर चुकी हैं। इस मुद्दे पर संघ, कृषि-निर्यात संवर्धन निकाय एपीडा के संपर्क में है। उन्होंने कहा कि संकट पर चर्चा के लिए 30 जून को केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल के साथ बैठक निर्धारित है।
सऊदी अरब के बाद ईरान भारत का दूसरा सबसे बड़ा बासमती चावल बाजार है। भारत ने मार्च में समाप्त हुए वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान ईरान को लगभग 10 लाख टन सुगंधित अनाज का निर्यात किया। भारत ने 2024-25 के दौरान लगभग 60 लाख टन बासमती चावल का निर्यात किया, जिसकी मांग मुख्य रूप से पश्चिम एशिया और पश्चिम एशियाई बाजारों से प्रेरित थी। अन्य प्रमुख खरीदारों में इराक, संयुक्त अरब अमीरात और अमेरिका शामिल हैं।
हाल के हफ्तों में इजरायल-ईरान संघर्ष काफी बढ़ गया है, जिसमें दोनों पक्षों ने भारी हमले किए हैं और अमेरिका सीधे तौर पर युद्ध में शामिल हो गया है। जहाज के जरिए ढुलाई में व्यवधान से भारतीय चावल निर्यातकों के समक्ष चुनौतियां बढ़ गई हैं, जिन्हें पहले भी अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के कारण ईरानी बाजार में भुगतान में देरी और मुद्रा संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ा है। (भाषा)
Edited By : Chetan Gour