नई दिल्ली, पिछले कई दशकों से उष्णकटिबंधीय हिंद महासागर के तापमान में लगातार वृद्धि हो रही है।
वर्ष 1951-2015 की अवधि में इसके सतह के तापमान में 0.15 डिग्री सेल्सियस प्रति दशक की दर से, लगभग 01 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि दर्ज की गई है।
महासागरों की सतह के जल का औसत तापमान लगभग 27 डिग्री सेल्सियस होता है और यह विषुवत वृत्त से ध्रुवों के ओर क्रमिक ढंग से कम होता जाता है।
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अंतर्गत कार्यरत पुणे स्थित स्वायत्त संस्थान- भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम) के समुद्री ग्रीष्म-लहरों से संबंधित ताजा अध्ययन में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है।
इस अध्ययन में पता चला है कि वर्ष 1982-2018 के दौरान पश्चिमी हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्री ग्रीष्म-लहर घटनाओं में प्रति दशक 1.5 घटनाओं की दर से चार गुना वृद्धि हुई है।
वहीं, बंगाल की उत्तरी खाड़ी में प्रति दशक 0.5 घटनाओं की दर से दो से तीन गुना वृद्धि दर्ज की गई है।
वर्ष 2021 में, 52 दिनों की अवधि में पश्चिमी हिंद महासागर में छह समुद्री ग्रीष्म-लहरें दर्ज की गईं। बंगाल की उत्तरी खाड़ी में, 32 दिनों की अवधि में चार समुद्री हीटवेव थीं।
इन समुद्री ग्रीष्म-लहरों ने पिछले सभी रिकॉर्ड भले धवस्त नहीं किए हों, लेकिन इन ग्रीष्म-लहरों का स्तर सामान्य से ऊपर रहा है। वर्ष 2021 में पश्चिमी हिंद महासागर क्षेत्र ग्रीष्म-लहर घटनाओं की संख्या के मामले में चार वर्षों में शीर्ष पर था।
भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) द्वारा उपयोग किए जाने वाले मानसून पूर्वानुमान मॉडल में इनपुट डेटा के रूप में समुद्र की सतह के तापमान को शामिल किया जाता है। इन पूर्वानुमानों का उपयोग अग्रिम योजना और आपदा प्रबंधन के लिए किया जा सकता है।
केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), प्रधानमंत्री कार्यालय, कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन और परमाणु ऊर्जा एवं अंतरिक्ष राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह द्वारा यह जानकारी बृहस्पतिवार को राज्यसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में प्रदान की गई है। (इंडिया साइंस वायर)