किताबों की रॉयल्टी अदा करने का मसला इन दिनों साहित्य जगत में हंगामा बरपा रहा है। इस मुद्दे को लेकर लेखक, साहित्यकार और कवि आपस में बंट गए हैं। सोशल मीडिया से लेकर न्यूज चैनल्स तक में ये बहस का मुद्दा बना हुआ है।
दरअसल, रॉयल्टी की इस बहस के केंद्र में प्रसिद्ध लेखक और कवि विनोद कुमार शुक्ल हैं और ये विषय फिल्म मेकर, थिएटर डायरेक्टर और लेखक मानव कौल की वजह से सुर्खियों में आया।
कैसे उठा रायल्टी विवाद
दरअसल, मानव ने रॉयल्टी का यह मुद्दा सोशल मीडिया के माध्यम से उठाया था। जिसमें उन्होंने लिखा था कि किस तरह बडे प्रकाशक लेखकों की रॉयल्टी नहीं देते हैं, वहीं दूसरी तरफ लोकप्रिय लेखकों की चर्चित किताबों और उपन्यासों से वे कमाई करते रहते हैं।
उन्होंने यह मुद्दा रायपुर में रहने वाले ख्यात लेखक विनोद कुमार शक्ल से मिलने के बाद उठाया था। विवाद बढने लगा तो खुद विनोद कुमार शुक्ल ने वीडियो बनाकर प्रकाशकों द्वारा रॉयल्टी नहीं दिए जाने की बात कही थी।
विनोद कुमार शुक्ल ने जारी किया था वीडियो
विनोद कुमार शुक्ल के वीडियो और उनके चाहने वाले लेखकों के साथ उनकी बातचीत से यह सामने आया कि वाणी प्रकाशन और राजकमल प्रकाशन से उनके पूरे समग्र साहित्य के बदले रॉयल्टी के तौर पर साल के महज 10-15 हज़ार रुपए आते हैं।
इस दौरान ये भी पता चला कि इनकी किताबें Kindle पर भी उपलब्ध हैं। लेकिन शुक्ल जी या उनके परिवार को इनकी जानकारी ही नहीं है। मतलब बिना किसी अनुबंध के ही इनके e-book के जरिए प्रकाशक धन कमा रहे हैं।
विनोद कुमार शुक्ल के बेटे शाश्वत गोपाल के मुताबिक इस संबंध में किए गए पत्रों के भी कोई जवाब प्रकाशक की तरफ से नहीं आते हैं। सिर्फ एक पत्र का उत्तर आया था वो भी करीब चार साल बाद।
यह भी कहा जा रहा है कि विनोद कुमार शुक्ल ने वाणी प्रकाशन को तो चिट्ठी लिखकर उनकी किताबों का प्रकाशन बंद करने के लिए कहा, लेकिन प्रकाशक अब भी उनकी किताबें बेच रहे हैं। इसमें वाणी और राजकमल दोनों शामिल हैं।
वाणी प्रकाशन ने फेसबुक पर लिखा
लेखक विनोद कुमार शुक्ल को रॉयल्टी नहीं देने का जब मामला बढा तो वाणी प्रकाशन की तरफ से फेसबुक पर सफाई दी गई। वाणी प्रकाशन के आधिकारिक फेसबुक पेज पर शुक्ल जी की किताबों को लेकर विस्तार से लिखा गया है। इसके साथ ही वेबदुनिया ने वाणी प्रकाशन के प्रबंधक अरुण माहेश्वरी से चर्चा की।
उन्होंने बताया कि हमारा रॉयल्टी का कोई इशू नहीं है, जहां तक विनोद जी के प्रति बहुत सम्मान है। वे हमारे आदरणीय लेखक हैं। दोनों पक्षों के बीच अनुबंध होता है और हम उनका सम्मान करते हैं, वो हमारे वरिष्ठ लेखक हैं, जैसा वे चाहेंगे, वैसा ही होगा। हालांकि हमने अनुबंध किया उन्हें एडवॉन्स भी दिया। आगे भी हमारे लिए वे सम्मानीय रहेंगे।
कौन हैं विनोद कुमार शुक्ल?
विनोद कुमार शुक्ल का जन्म 1 जनवरी 1937 को वर्तमान छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में हुआ था। उनके उपन्यास 'दीवार में एक खिड़की रहती थी' को वर्ष 1999 के साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। 'नौकरी की कमीज' , 'खिलेगा तो देखेंगे' 'लगभग जयहिंद', 'सब कुछ होना बचा रहेगा', 'अतिरिक्त नहीं' और 'पेड़ पर कमरा' इत्यादि उनकी प्रमुख कृतियां हैं। उनके उपन्यास 'नौकरी की कमीज' एवं कहानी 'बोझ' पर फिल्मकार मणि कौल फिल्म बना चुके हैं। उनकी कहानियों 'आदमी की औरत' एवं 'पेड़ पर कमरा' पर फिल्मकार अमित दत्ता फिल्म का निर्माण कर चुके हैं।