RSS 100 years Mohan Bhagwat Speech : संघ प्रमुख मोहन भागवत ने नागपुर के रेशम बाग में RSS के स्थापना दिवस समारोह में हिंदू राष्ट्र, ऑपरेशन सिंदूर, नेपाल हिंसा और विदेशी संबंंधों जैसे अहम मुद्दों पर अपनी बात रखी। मोहन भागवत के भाषण की 10 खास बातें...
हिंदू राष्ट्र पर क्या बोले भागवत : संघ प्रमुख ने कहा कि सभी विविधताओं के साथ हमें एक सूत्र में पिरोने वाली भारतीय राष्ट्रीयता है, हिंदू राष्ट्रीयता है। जिसे हिंदू शब्द से आपत्ति है, वह हिंदवी कहे, आर्य कहे। हमारा राष्ट्र राज्य पर आधारित कल्पना नहीं है। हमारी संस्कृति राष्ट्र बनाती है। देश आते जाते रहते हैं, राष्ट्र सदा विद्यमान होते हैं। हमने गुलामी झेली, आक्रमण झेले लेकिन इनके बावजूद सनातन, हम आज भी मौजूद हैं। वसुधैव कुटम्बकम की धारणा इसी समाज ने दी है। संघ, हिंदू समाज को संगठित करने का काम कर रहा है। एक बार समाज संगठित हो गया तो वह अपने बल पर सारे काम कर सकता है।
हिंदुओं का शील और बल जरूरी : नागपुर के रेशम बाग मैदान में मोहन भागवत ने कहा कि हिंदू समाज ने दुनिया को बहुत कुछ दिया। जो हिंदुओं ने दुनिया को दिया, दूसरे धर्मों ने नहीं दिया। हिंदुओं का शील और बल जरूरी है।
संगठित हिंदू समाज की सुरक्षा की गारंटी : संघ प्रमुख ने कहा कि हिन्दुओं का संगठित होना जरूरी है। संगठित हिन्दू समाज सुरक्षा की गारंटी है। विकास की गारंटी है। संघ पिछले 100 साल से हिन्दुओं को एक करने का काम कर रहा है। उन्होंने आगे कहा कि समाज के आचरण में परिवर्तन आना चाहिए। समाज को अपने आप को नए आचरण में ढालकर खड़ा होना पड़ता है। ये व्यवस्था परिवर्तन की शर्त है।
विश्व की व्यवस्था में परिवर्तन आवश्यक: भागवत ने विश्व की मौजूदा व्यवस्था में बदलाव की भी वकालत की है। उन्होंने कहा कि विश्व की व्यवस्था में परिवर्तन आवश्यक है। विपरीत व्यवस्था में इतना आगे बढ़ गए, अब एक दम पीछे मुड़ेंगे तो गाड़ी उलट जाएगी। धीरे-धीरे और छोटे-छोटे कदमों से मुड़ना पड़ेगा। लंबा मोड़ लेकर पीछे आना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय संबंध जरूरी पर मजबूरी नहीं।
विदेशी संबंध जरूरी पर मजबूरी नहीं : आरएसएस प्रमुख ने कहा कि विदेशी संबंध जरूरी है पर मजबूरी नहीं। प्रचलित अर्थ प्रणाली के अनुसार, देश आर्थिक विकास कर रहा है। लेकिन प्रचलित अर्थ प्रणाली के कुछ दोष भी सामने आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि हाल ही में अमेरिका ने जो टैरिफ नीति अपनाई, उसकी मार सभी पर पड़ रही है। ऐसे में हमें मौजूदा अर्थ प्रणाली पर पूरी तरह से निर्भर नहीं होना चाहिए। निर्भरता मजबूरी में न बदलनी चाहिए। अगर निभर्रता को मजबूरी न बनाते हुए जीना है तो स्वदेशी और स्वावलंबी जीवन जीना पड़ेगा।
ऑपरेशन सिंदूर में सरकार ने दिखाई दृढ़ता : उन्होंने पहलगाम हमले और ऑपरेशन सिंदूर पर कहा कि एक दुर्घटना पहलगाम की हुई। हमला आतंकियों द्वारा हुआ। 26 लोगों की धर्म पूछकर हत्या की गई। सारे देश में क्रोध की लहर पैदा हुई। पूरी तैयारी करके सरकार और सेना ने उसका पुरजोर उत्तर दिया। हमारे नेतृत्व की दृढ़ता का उत्तम चित्र प्रस्तुत हुआ। उन्होंने कहा कि पहलगाम हमले ने बताया कौन हमारा दोस्त है और कौन दुश्मन?
पड़ोसी देशों में उथल पुथल पर क्या बोले भागवत : आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने पड़ोसी देशों में मची उथल-पुथल का जिक्र करते हुए कहा कि प्रजातांत्रिक मार्गों से भी परिवर्तन आता है। कुछ समय से शुरू हुई उथल-पुथल और तथाकथित क्रांतियों से उद्देश्य प्राप्त नहीं होगा। हमारे पड़ोसी देशों में जो उथल-पुथल हो रही है, वो हमारे लिए चिंता का विषय है। हम सिर्फ उनके पड़ोसी नहीं हैं, बल्कि वे हमारे ही हैं। हममें आत्मीयता का भाव है। भारत में भी इस तरह की ताकतें अपनी शक्ति बढ़ा रही। भारत इसका कोई उपाय निकाले ऐसा विश्व में भी अपेक्षा है। मानव का भौतिक विकास होता है, नैतिक विकास नहीं होता। सबका विकास होना जरूरी।
क्यों जरूरी है संघ की शाखाएं : पूरी दुनिया में परिवार व्यवस्था थी, लेकिन आज वह भारत को छोड़कर हर देश में ध्वस्त हो चुका है। परिवार व्यवस्था से ही समाज और व्यक्ति का निर्माण होता है। केवल आदत बदलने से ही परिवर्तन आता है, सिर्फ सोचने से ही बदलाव नहीं आता। संघ की शाखा आदत बदलने की ही व्यवस्था है। संघ को लालच देकर बदलने की कोशिश की गई, लेकिन संघ ने इसे कभी नहीं बदलने दिया। संघ के स्वयंसेवक वर्षों से शाखा का आयोजन कर रहे हैं क्योंकि ये उनकी आदत है। संघ की शाखा से ही स्वयंसेवकों में भक्ति का, राष्ट्र निर्माण की भावना पैदा होती है। हमारी परंपरा है कि हम हर विचारधारा का सम्मान करते हैं और उन्हें स्वीकार करते हैं।
देश में विविधतायें भेद का कारण बन रही है : संघ प्रमुख ने कहा कि आज अपने देश में विविधताएं भेद का कारण बन रही है। ये सब होने के बाद भी हम एक बड़े समाज के अंग हैं। हम एक ही हैं, हम विविध भी नहीं हैं। विविधता तो खानपान के साथ ही रहने की जगह की है। आपस का व्यवहार सद्भाव पूर्ण रहना चाहिए। इसकी अवमानना नहीं होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि कानून हाथ में लेकर निकल आना ये प्रवृत्ति ठीक नहीं है। किसी समुदाय विशेष को उकसाने की प्रवृति पर रोकथाम आवश्यक है। समाज की सज्जन शक्ति को सजग होना पड़ेगा।
गुरु तेग बहादुर और गांधी पर क्या कहा : उन्होंने कहा कि यह वर्ष गुरु तेग बहादुर के बलिदान का 350वां वर्ष है। हिंद की चादर बनकर गुरु तेग बहादुर ने सांप्रदायिक सद्भाव के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। आज 2 अक्टूबर है तो स्वर्गीय महात्मा गांधी की जयंती है। स्वतंत्रता की लड़ाई में उनका योगदान अविस्मरणीय है।
गौरतलब है कि केशव बलिराम हेडगेवार ने 1925 में विजयादशमी के दिन 17 लोगों की उपस्थिति में आरएसएस की स्थापना की थी।
edited by : Nrapendra Gupta