सभी फोटो : धर्मेंद्र सांगले
RSS प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि दुनिया में 'भगवान' एक हों या अनेक, दोनों में टकराव होता है। हमारे दार्शनिक कहते हैं कि ऐसे टकराव में पड़ने की कोई ज़रूरत नहीं है; सिर्फ 'भगवान' हैं और कोई नहीं। तब सारे टकराव बेकार हो गए।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि (ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री) विंस्टन चर्चिल ने एक बार कहा था कि (ब्रितानी शासन से) स्वतंत्र होने पर तुम (भारत) टिक नहीं सकोगे और बंट जाओगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अब खुद इंग्लैंड बंटने की स्थिति में आ रहा है, पर हम नहीं बंटेगे। हम आगे बढ़ेंगे। हम कभी बंट गए थे, लेकिन वह भी हम मिला लेंगे फिर से।
हमारा जीवन ऐसा है कि हम मानते हैं कि हम सब एक हैं। लेकिन क्या हम सबके साथ एक जैसा व्यवहार करते हैं? नहीं। दुनिया में टकराव इसलिए होते हैं क्योंकि एक सोचता है कि वह दूसरे से श्रेष्ठ है। आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत ने रविवार को कहा कि ज्ञान, कर्म और भक्ति की संतुलित त्रिवेणी के पारंपरिक दर्शन पर श्रद्धा रखने की बदौलत भारत सबकी भविष्यवाणियां झूठी साबित करके लगातार आगे बढ़ रहा है।
उन्होंने यह बात ऐसे वक्त कही जब देश की आर्थिक वृद्धि दर चालू वित्त वर्ष की अप्रैल-जून तिमाही में उम्मीद से बेहतर 7.80 प्रतिशत रही है। अमेरिका की ओर से भारी शुल्क लगाए जाने से पहले की पांच तिमाहियों में यह सबसे अधिक है। भागवत ने मध्यप्रदेश के काबीना मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल की पुस्तक परिक्रमा कृपा सार का इंदौर में विमोचन किया।
संघ प्रमुख ने इस मौके पर आयोजित समारोह में कहा कि भारतीय नागरिकों के पूर्वजों ने अनेक पंथ-संप्रदायों के माध्यम से कई रास्ते दिखाकर सबको बताया है कि ज्ञान, कर्म और भक्ति की संतुलित त्रिवेणी जीवन में कैसे बहाई जाती है। भागवत ने कहा कि भारत जीवन जीने के इस पारंपरिक दर्शन पर आज भी श्रद्धा रखता है, इसलिए सबकी भविष्यवाणियां झूठी साबित करके देश विकास के पथ पर लगातार आगे बढ़ रहा है।
संघ प्रमुख ने कहा कि (ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री) विंस्टन चर्चिल ने एक बार कहा था कि (ब्रितानी शासन से) स्वतंत्र होने पर तुम (भारत) टिक नहीं सकोगे और बंट जाओगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अब खुद इंग्लैंड बंटने की स्थिति में आ रहा है, पर हम नहीं बंटेगे। हम आगे बढ़ेंगे। हम कभी बंट गए थे, लेकिन वह भी हम मिला लेंगे फिर से।
भागवत ने कहा कि निजी स्वार्थों के कारण ही दुनिया में अलग-अलग संघर्ष चलते हैं और सारी समस्याएं सामने आती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि भारत जब 3,000 वर्षों तक दुनिया का सिरमौर था, तब दुनिया में कोई कलह नहीं थी।
भागवत ने कहा कि भारत में गौ माता, नदियों और पेड़-पौधों की पूजा के जरिये प्रकृति की आराधना की जाती है और प्रकृति से देश का नाता जीवंत और चैतन्य अनुभूति पर आधारित है। उन्होंने कहा कि आज की दुनिया (प्रकृति से) इस नाते को तरस रही है। पिछले 300-350 वर्षों से उन्हें (दुनिया के देशों) को बताया जा रहा है कि सब लोग अलग-अलग हैं और जो बलवान है, वही जिएगा। उन्हें बताया जा रहा है कि अगर वे किसी के पेट पर पैर रखकर या किसी का गला काट कर भी बलवान बनते हैं, तो कोई बात नहीं है।
भागवत ने कहा कि पहले (कपड़ों का) गला और जेब काटने का काम केवल दर्जी करते थे। अब सारी दुनिया कर रही है। वे जानते हैं कि इससे गड़बड़ हो रही है, लेकिन वे रुक नहीं सकते क्योंकि उनके पास विश्वास और श्रद्धा नहीं है। उन्होंने जोर देकर यह भी कहा कि भारतीय संस्कृति 'तेरे-मेरे के भेद' से ऊपर उठने का संदेश देती है और सभी मनुष्यों में परस्पर आत्मीयता और अपनापन आवश्यक है।
संघ प्रमुख ने कहा कि मनुष्य के लिए ज्ञान और कर्म, दोनों मार्ग जरूरी हैं, लेकिन निष्क्रिय ज्ञानी किसी काम के नहीं होते। भागवत ने कहा,ज्ञानी लोगों के निष्क्रिय होने के कारण ही सब गड़बड़ होती है और अगर कर्म करने वाले किसी व्यक्ति को ज्ञान नहीं है, तो यह कर्म पागलों का कर्म हो जाता है। प्रदेश के काबीना मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल की पुस्तक के विमोचन के कार्यक्रम में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव और उनके मंत्रिमंडल के कई सदस्यों समेत समाज के अलग-अलग तबकों के लोग बड़ी तादाद में मौजूद थे। कार्यक्रम का आयोजन नर्मदाखंड सेवा संस्थान ( मंगरोन, दमोह ) द्वारा आयोजित किया गया।
पटेल की पुस्तक उनकी दो नर्मदा परिक्रमा यात्राओं से प्रेरित है। भागवत ने पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में कहा,नर्मदा नदी की परिक्रमा सर्वत्र श्रद्धा का विषय है। हमारा देश श्रद्धा का देश है। यहां कर्मवीर भी हैं और तर्कवीर भी हैं। दुनिया श्रद्धा और विश्वास पर चलती है। संघ प्रमुख ने यह भी कहा कि भारत में जो श्रद्धा है, वह प्रत्यक्ष प्रतीति (ज्ञान) और प्रमाणों पर आधारित है।
पूजनीय सरसंघचालकजी ने कहा कि नर्मदा परिक्रमा सर्वत्र श्रद्धा का विषय है। कर्मवीर और तर्कवीरों के देश में श्रद्धा और विश्वास का बड़ा स्थान है। जनरल मोटर्स के उदाहरण के द्वारा आपने बताया कि दुनिया विश्वास पर चलती है। हमारे यहाँ का श्रद्धा, ठोस आधार और प्रत्यक्ष प्रतीती के आधार पर बनी है। हमारे यहाँ के प्रत्यक्ष प्रमाणों की अनुभूति के लिये प्रसार करना पड़ेगा। हमारे यहाँ श्रद्धा और विश्वास को भवानी-शंकर माना गया है। हमारे यहाँ ज्ञानेंद्रियों से परे भी सत्य की खोज होती रही है। सत्य और सुख, बाहर नहीं मिलता है, सुख अपने अंदर है। हमारे पूर्वजों ने सुख की आंतरिक खोज की, जिसमें सत्य का ज्ञान हुआ।
सबमें एक ब्रह्म है, बाह्य विविधता मिथ्या है। शाश्वत स्तर एकत्व का है। सबमें भगवान है और भगवान में सब है।
हमारे पूर्वजों ने सत्य बताया कि मै, मेरा एक स्तर तक ही है, ये स्तर से जाना भी पड़ता है। इस स्तर का नाटक भी करना पड़ता है। इसके लिये साधना आवश्यक है। मैं और मेरे भाव से अलग होकर संसार की यात्रा करना है। इस हेतु हमारे पूर्वजों ने साधना के विविध मार्ग बताये हैं। हमारे पूर्वजों ने ईश्वर के द्वार सभी लिये खोले है। भक्ति भाव के साथ नर्मदा के दर्शन भी ऐसी साधना है। अपने बोध का बोध कराने वाली नर्मदा मैया है, वो योग्यता नहीं देखती है।
भाव और भक्ति की कमी से संसार में पारिवारिक, सामाजिक, पर्यावरण और मानसिक विकृति आ रही है। अत: भक्ति-भाव के द्वारा ही संसार में सुख-शांति संभव है। दुनिया धर्म से चलती है, धर्म रक्षण के लिये अपनापन और भक्ति आवश्यक है।
कार्यक्रम में महामंडलेश्वर श्री ईश्वरानंद उत्तमस्वामीजी महाराज भी उपस्थिति थे। भारतमाता, माँ नर्मदा, लोकमाता देवी अहिल्याबाई होल्कर एवं श्री श्रीबाबाश्री जी को पुष्पार्पण और नर्मदाष्टकम् से प्रारंभ हुए कार्यक्रम में श्री प्रह्लाद पटेल ने अपनी नर्मदा परिक्रमा के संस्मरणों के साथ स्वागत भाषण दिया। श्री पटेल ने पुस्तक को अपने गुरूदेव की कृपासार निरूपित किया। कार्यक्रम में नर्मदा परिक्रमा के संकलित अंशों पर आधारित भावपूर्ण चलचित्र का प्रदर्शन किया गया। Edited by : Sudhir Sharma