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शूटर दादी चंद्रो, जिनका चूकता नहीं था निशाना, कोरोना का निशाना बन गईं...

हमें फॉलो करें शूटर दादी चंद्रो, जिनका चूकता नहीं था निशाना, कोरोना का निशाना बन गईं...
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हिमा अग्रवाल

, शनिवार, 1 मई 2021 (00:15 IST)
शूटर दादियों का जोड़ा बिछड़ गया। चंद्रो तोमर और प्रकाशो तोमर की जोड़ी देश के जिस शूटिंग रेंज में पहुंच जाती, वहां उनको सटीक निशाने लगाते हुए लोग देखकर हैरत करते। शुक्रवार को चंद्रो दादी को निष्ठुर और क्रूर कोविड ने निगल लिया। मेरठ के आनंद हॉस्पिटल में उन्होंने अंतिम सांस ली, जहां उन्हें कोरोना संक्रमण के बाद इलाज के लिए दाखिल कराया गया था।
 
उनके निधन पर खेल प्रेमियों के बीच शोक की लहर व्याप्त हो गई। उनके निधन पर उनकी देवरानी और शूटिंग की जोड़ीदार प्रकाशी तोमर ने अपने ट्विटर हैंडल पर लिखा- मेरा साथ छूट गया, चंद्रो कहां चली गई। 26 अप्रैल को निशानेबाज दादी का कोविड टेस्ट पॉजिटिव आया था। उन्हें बागपत से मेरठ के आनंद अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उनकी हालत बिगड़ने लगी।
 
60 की उम्र में शुरू की निशानेबाजी : डॉक्टरों ने मेरठ मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया। बीते गुरुवार को मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया, जहां आज उपचार के दौरान ब्रेन हैमरेज से दादी चंद्रो की सांसें थम गईं। दादी के निधन से खेल प्रेमियों और उनके चाहने वालों में मायूसी फैल गई। 
 
चंद्रो और प्रकाशी तोमर ने 60 साल की उम्र में निशानेबाजी सीखना शुरू किया था। इसके बाद कभी उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने साबित किया कि सीखने की शुरुआत करने की कोई उम्र नहीं होती। चंद्रो दादी कहती थीं कि दिल बचपन का होना चाहिए। सच है कि सीखने की उम्र बचपन ही होती है, लेकिन जब दिल बचपन का हो तो क्या पचपन और क्या साठ! चंद्रो और प्रकाशी की जोड़ी ने निशानेबाजी में अनेक मैडल जीते।
 
राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने वह जब शूटिंग रेंज में पहुंचती तो लोग हतप्रभ होकर देखते और उनके अचूक निशाने लगते देखकर दांतों तले उंगली दबा लेते। प्रकाशी और चंद्रो मूल रूप से शामली की रहने वाली थीं और आज प्रकाशी की बेटी सीमा तोमर अंतरराष्ट्रीय निशानेबाज हैं।

50 से ज्यादा पदक जीते : दादी चंद्रो का जन्म उत्तर प्रदेश के शामली जिले के गांव मखमूलपुर में 1 जनवरी 1932 को हुआ। 16 साल की उम्र में चंद्रो की शादी जौहड़ी के काश्तकार भंवरसिंह से हो गई। दादी की ससुराल भरी-पूरी थी, बेटे-बेटियां, पोते-पोती के बीच रहकर उन्होंने अपने हुनर को अंतरराष्ट्रीय स्तर पहुंचाया। जब लोग रिटायर्ड होकर घर में आराम करते हैं, उस उम्र में 60 साल की दादी निशानेबाजी सीखी और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर धूम मचाई। वहीं, राष्ट्रीय स्तर पर 50 से ज्यादा पदक जीतकर देश का नाम भी रोशन किया।
 
कुछ वर्ष पहले मुझे चंद्रो तोमर शूटर दादी से साक्षात्कार का अवसर मिला। जब मैने दादी से पूछा कि घाघरा और हाथों में चूडिय़ां पहनने वाली इस दादी ने कहां से शूटिंग सीखी और मन में कैसे विचार आया निशानेबाजी का? दादी ने तपाक से जबाव दिया कि उम्र 60 की और दिल बचपन का।
 
शूटर दादी ने बताया कि जब वह 60 साल की थी तो उन्होंने शूटिंग करने की इच्छा गांव और परिवार के लोगों को बताई। गांव के लोगों ने उनका मजाक उड़ाया, लेकिन परिवार में बच्चों ने उनका मनोबल बढ़ाया। गांव की हंसी को दरकिनार करते हुए उन्होंने परिवार के सहयोग से शूटिंग रेंज जाकर निशानेबाजी शुरू कर दी।

इस तरह हुई शुरुआत : चंद्रो दादी ने बातचीत में बताया था कि उनकी पोती शैफाली 1998 में शूटिंग करने के लिए शूटिंग रेंज में जाया करती थी, लड़कों के शूटिंग रेंज में पोती अकेले न जाए, जिसके चलते वह भी साथ जाती थीं। शूटिंग रेंज में पेड़ के पीछे खड़े होकर सबको निशाना लगाते देखती रहती थीं। एक दिन चंद्रो तोमर अपनी पोती को पिस्तौल में गोली डालने में मदद करने लगी।
 
इसी एयर पिस्टल से उन्होंने पहला निशाना 10 पर लगाया, जिसके बाद चारों तरफ से तालियों की गड़गड़ाहट सुनाई दी। बिना कोच के उनकी निशानेबाजी को देखकर शूटिंग रेंज के सभी लोग हैरत में रह गए। दादी की प्रतिभा को देखकर शूटिंग रेंज के कोच ने उन्हें प्रतिदिन रेंज में प्रैक्टिस के लिए प्रोत्साहित किया। यहीं से शुरू हुआ 60 साल की चंद्रो दादी का शूटिंग सफरनामा।

आमिर खान ने भी चंद्रो के जज्बे को सलाम करते हुए सम्मानित किया था। चंद्रो और प्रकाशो तोमर को लेकर 'सांड की आंख' फिल्म भी बनी थी। आज 89 साल की शूटर दादी दुनिया को अलविदा कह गई है। चंद्रो दादी जैसी शख्सियत को वेबदुनिया अपनी विन्रम श्रद्धांजलि अर्पित करता है।

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