पिछले तीन से चार दिनों से सोशल मीडिया पूरी तरह से तालिबानमय हो गया है। आलम यह है कि हर दूसरी पोस्ट या फोटो तालिबान और अफगानिस्तान के हालातों को लेकर शेयर की जा रही है। कमाल की बात है कि यहां कोई कविता पोस्ट की जा रही है तो ज्यादातर पोस्ट में तालिबान को लेकर व्यंग्य है। इस पूरे मामले में कई तरह के दिलचस्प मीम्स बनाए जा रहे हैं।
कोई तालिबान में महिलाओं और बच्चों के लिए चिंता जाहिर कर रहा है तो कोई वहां शुरू हो चुके अत्याचार को लेकर खौफ में है।
शुचेंद्र मिश्रा लिखते हैं
अपने को तालिबान की यह अदा बहुत पसंद है कि वो डिजीटल लिबिड सिबिड नहीं करते, जो करते हैं जमीन पर करते हैं..!!
आनंद अधिकारी ने लिखा,
अगर तालिबानियों को अफ़ग़ानिस्तान में उपराष्ट्रपति पद के लिये कोई योग्य व्यक्ति ना मिल पा रहा हो तो वो हमारे यहां से "हामिद अंसारी जी" को ले जा सकते हैं। इन्हें दस साल तक उपराष्ट्रपति पद पर रहने का अनुभव है और उससे भी मजेदार बात यह है कि उन्हें भारत में डर भी लगता है।
अनुशक्ति सिंह ने व्यंग्य करते हुए लिखा है,
तालिबानियों के बढ़िया ऑफ़िस, प्रेज़िडेंट हाउस के जिम, हर जगह से वीडियो आ रहे हैं। उनकी हरकतों को देखकर लग रहा जैसे बंदरों के हाथ में उस्तरा आ गया है। जैसे दिल्ली पर पड़ोस के किसी जंगल से आये लंगूरों के दल ने क़ब्ज़ा जमा लिया हो। उनकी हरकतें देखकर जितनी हंसी आती है, उससे अधिक दुःख होता है!
आशीष तिवारी ने लिखा,
20 साल से अमेरिकी खैरात पर पल रहे अफगानी 20 दिन भी अपनी हिफाजत नहीं कर पाये। खैरात पर पलने वाली कौम कभी अपने भविष्य को सलामत नहीं रख सकती।
साहित्यिक पत्रिका सदानीरा ने अफगानी कवियों की कविताओं का प्रकाशन किया है। इसमें जाहिदा गनी, नफीसा अजहर, नूजर इल्यास की कविताओं को शामिल किया गया है।
अमित तिवारी ने लिखा, इमरान ख़ान कह रहे हैं कि अफ़ग़ानियों ने आज ग़ुलामी की ज़ंजीरें तोड़ दी हैं.. इनको कोई झापड़ मार दे तो कहेंगे बहुत प्राउड फील हो रहा है।
ठीक इसी तरह से ट्विटर और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भी इसी तरह की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। कोई मीम्स शेयर कर रहा है तो कोई अपने ही अंदाज में तालिबान की आलोचना। कुल मिलाकर पिछले एक हफ्ते से सोशल मीडिया पूरी तरह से तालिबानमय हो गया है।