सोनू सूद एक बार फिर से चर्चा में हैं। निसर्ग तुफान में वे निस्वार्थ सेवा कर रहे हैं। ठीक उसी तरह जैसे कुछ दिनों पहले लॉकडाउन में फंसे प्रवासी मजदूरों को घर भेजने का पावन काम कर रहे थे।
सोनू ने और उनकी टीम ने तटीय इलाकों के नजदीक रहने वाले चक्रवात ‘निसर्ग’ से प्रभावित करीब 28 हजार लोगों को रहने की जगह और खाने-पीने का सामान मुहैया कराया है।
सोनू ने एक बयान में कहा,
‘आज, हम सब कठिन समय का सामना कर रहे हैं और इससे निपटने का सबसे सही तरीका एक-दूसरे का साथ देना ही है। मेरी टीम और मैंने मुम्बई के तटीय इलाकों में रहने वाले 28 हजार से ज्यादा की जिंदगी सुनिश्चित और सुरक्षित कर रहे हैं’
सोनू सूद को इतना कुछ करते हुए एक ही ख्याल मन में आता है आखिर क्यों और किस प्रेरणा से यह शख्स लोगों की इतनी मदद कर पा रहा है। इसके पीछे आखिर है क्या।
उनके बारे में मीडिया में चल रही तमाम खबरों के बीच उनकी इमोशनल कर देने वाली कहानी सामने आ रही है।
दरअसल यह कहानी सोनू सूद की बहन मल्विका ने ही शेयर की है।
मल्विका बताती हैं कि जब उनका भाई सोनू नागपुर में इंजीनियरिंग का छात्र था, जब वह ट्रेन में सफर करता था तो ट्रेन के कंपार्टमेंट में टॉयलेट के पास जो छोटी सी खाली जगह होती है उसी पर सोकर घर आता था। उन्होंने बताया कि पिता उसे पैसे भेजते थे, लेकिन उसकी कोशिश हमेशा पैसे बचाने की होती थी। वह पिताजी की कड़ी मेहनत को जाया नहीं करना चाहता था। इसलिए जब भी ट्रेन में सफर करता था वो इसी तरह आना जाना करता था
मल्विका अपने भाई के संघर्ष की कहानी आगे बयां करते हुए कहती हैं…
जब सोनू मुंबई में मॉडलिंग में स्ट्रगल कर रहा था तो एक ऐसे कमरे में रहता था, जहां करवट बदलने की भी जगह नहीं होती थी। कई बार उसे करवट बदलने के लिए खड़ा होकर एडजस्ट होना पड़ता था।
सबसे खास बात तो यह है कि सोनू सूद ने घर वालों को कभी पता नहीं चलने दिया कि वो मुंबई में किस हाल में रहते हैं।
बहन मल्विका के मुताबिक ऐसा नहीं है कि पिताजी उसे पैसे नहीं भेजते थे, लेकिन वह पिता के पैसों को व्यर्थ खर्च नहीं करना चाहता था। बल्कि उन्हें संभालकर रखता था।
बहुत दिनों बाद जब उनकी पहली फिल्म रिलीज हुई तो घर आकर उन्होंने कहा था कि आज वो ट्रेन की सीट पर बैठकर आए हैं। इसी दौरान सोनू ने घरवालों को बताया था कि इसके पहले वो अक्सर ट्रेन में पेपर शीट पर बैठकर ट्रैवल करता थे।
बता दें कि अब तक सोनू सूद कई हजार मजदूरों को बसों में बैठाकर उनके घर भेज चुके हैं। उन्होंने लाखों लोगों को भोजन करवाया। अपनी होटल को क्वेरेंटाइन सेंटर के लिए सरकार के लिए खोल दिया। और अब वे निसर्ग चक्रवात में फंसे लोगों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने का काम कर रहे हैं।
(नोट: इस लेख में व्यक्त विचार लेखक की निजी अभिव्यक्ति है। वेबदुनिया का इससे कोई संबंध नहीं है।