नई दिल्ली। चेन्नई के अंतरिक्ष 'स्टार्ट-अप' अग्निकुल कॉसमॉस ने गुरुवार को श्रीहरिकोटा स्थित अपने प्रक्षेपण स्थल से अपने स्वदेश निर्मित '3डी-प्रिंटेड सेमी-क्रायोजेनिक रॉकेट अग्निबाण का उप-कक्षीय परीक्षण सफलतापूर्वक किया। अग्निकुल कॉसमॉस यह उपलब्धि हासिल करने वाली भारत की दूसरी निजी इकाई बन गई है।
4 असफल प्रयासों के बाद गुरुवार को सुबह 7 बजकर 15 मिनट पर परीक्षण बिना किसी लाइव स्ट्रीमिंग के, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के श्रीहरिकोटा में स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र में कुछ गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति में किया गया।
अग्निकुल कॉसमॉस ने कहा कि श्रीहरिकोटा में स्थित अपने प्रक्षेपण स्थल से अग्निबाण SORTED के हमारे पहले उड़ान - मिशन 01 के सफल समापन की घोषणा करते हुए हमें बेहद खुशी हो रही है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दुनिया के पहले सिंगल-पीस थ्रीडी प्रिंटेड सेमी-क्रायोजेनिक इंजन द्वारा संचालित रॉकेट के सफल प्रक्षेपण को भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर बताया। उन्होंने कहा कि एक उल्लेखनीय उपलब्धि जो पूरे देश को गौरवान्वित करेगी!
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो ने सोशल मीडिया मंच 'एक्स' पर एक पोस्ट में कहा, 'अग्निबाण सॉर्टेड-01 मिशन के उनके प्रक्षेपण स्थल से सफल प्रक्षेपण के लिए अग्निकुल कॉसमॉस को बधाई। यह एक बड़ी उपलब्धि है।'
स्टार्ट अप ने सोशल मीडिया मंच एक्स पर कहा, 'यह उपलब्धि हमने अपने और भारत के पहले तथा एकमात्र निजी प्रक्षेपक स्थल से हासिल की गई जो श्रीहरिकोटा में एसडीएससी-एसएचएआर में है।'
इसने कहा कि इस नियंत्रित उड़ान में मिशन के सभी लक्ष्य हासिल किए गए। स्टार्ट अप के अनुसार, प्रक्षेपक वाहन पूरी तरह स्वदेश में डिजाइन किया गया था और यह दुनिया के पहले 3डी प्रिंटेड सिंगल इंजन से संचालित था। यह सेमी क्रायो इंजन से भारत की पहली उड़ान है।
भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन एवं प्राधिकरण केंद्र (आईएन-स्पेस) के अध्यक्ष पवन गोयनका ने सोशल मीडिया मंच 'एक्स' पर कहा कि अग्निकुल कॉसमॉस द्वारा अग्निबाण एसओआरटीईडी के सफल प्रक्षेपण से बहुत प्रसन्न हूं। यह भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र के लिए ऐतिहासिक क्षण है।
अग्निकुल द्वारा अग्निबाण सब-ऑर्बिटल टेक्नोलॉजी डेमोंस्ट्रेटर (एसओआरटीईडी) को प्रक्षेपित करने का 22 मार्च से यह 5वां प्रयास था। अग्निबाण एक अनुकूलन योग्य दो-चरणीय प्रक्षेपण यान है जो 300 किलोग्राम तक का पेलोड (भार) लगभग 700 किलोमीटर की कक्षा में ले जा सकता है।
यह रॉकेट तरल और गैस प्रणोदकों के मिश्रण के साथ एक अर्ध-क्रायोजेनिक इंजन का उपयोग करता है। यह एक ऐसी तकनीक है जिसे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा अपने किसी भी रॉकेट में अभी तक प्रदर्शित नहीं किया गया है।
Edited by : Nrapendra Gupta