EVM विशेषज्ञ बोले, खारिज करने के अधिकार के बिना नोटा औचित्यहीन
उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद ईवीएम पर नोटा बटन जोड़ा
Statement of EVM experts regarding NOTA button : उच्चतम न्यायालय के आदेश पर चुनाव के लिए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) में नोटा का विकल्प शामिल करने के 10 साल से अधिक समय के बाद भी इसका इस्तेमाल करने वालों की संख्या अब तक कम है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह (NOTA) 'दंतहीन शेर' की तरह है क्योंकि इसका असर नतीजों पर नहीं पड़ता।
उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद नोटा (उपरोक्त में से कोई नहीं) बटन को सितंबर 2013 में ईवीएम में शामिल किया गया था। इसे दलों द्वारा दागी उम्मीदवारों को मैदान में उतारने से हतोत्साहित करने के लिए शामिल किया गया था। उच्चतम न्यायालय ने निर्वाचन आयोग को मतपत्रों/ईवीएम में आवश्यक प्रावधान करने का निर्देश दिया था ताकि मतदाता मैदान में किसी भी उम्मीदवार को वोट न देने का फैसला कर सकें।
फॉर्म 49-ओ भरने से मतदाता की गोपनीयता भंग होती थी : सितंबर 2013 में उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद निर्वाचन आयोग ने अंतिम विकल्प के रूप में ईवीएम पर नोटा बटन जोड़ा। एक मतपत्र इकाई में 16 बटन होते हैं। शीर्ष अदालत के आदेश से पहले जो लोग किसी भी उम्मीदवार को वोट देने के इच्छुक नहीं होते थे उनके पास फॉर्म 49-ओ भरने का विकल्प था। लेकिन चुनाव संचालन नियम, 1961 के नियम 49-ओ के तहत मतदान केंद्र पर फॉर्म भरने से मतदाता की गोपनीयता भंग होती थी।
उन सांसदों का अनुपात बढ़ा है जिनके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं : पिछले पांच वर्षों में राज्य विधानसभा चुनावों और लोकसभा चुनावों में संयुक्त रूप से नोटा को 1.29 करोड़ से अधिक वोट मिले हैं। इसके बावजूद आम और विधानसभा दोनों चुनावों में आपराधिक रिकॉर्ड वाले उम्मीदवारों की संख्या में वृद्धि हुई है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले दशक में उन सांसदों का अनुपात बढ़ा है जिनके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं।
लोकसभा की 543 सीट के लिए 2009 में हुए चुनाव के आंकड़ों का विश्लेषण करने के बाद एडीआर ने खुलासा किया कि जीत दर्ज करने वाले 543 सांसदों में से 162 (30 प्रतिशत) ने घोषित किया था कि उनके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज थे जबकि 76 (14 प्रतिशत) के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज थे।
एडीआर के मुताबिक 2019 में आपराधिक और गंभीर आपराधिक मामलों वाले सांसदों की हिस्सेदारी बढ़कर क्रमश: 43 प्रतिशत और 29 प्रतिशत हो गई। एडीआर के प्रमुख मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) अनिल वर्मा ने बताया, जहां तक आपराधिकता का सवाल है तो नोटा से कोई फर्क नहीं पड़ा है, वास्तव में आपराधिक रिकॉर्ड वाले उम्मीदवारों की संख्या में वृद्धि हुई है।
उन्होंने कहा, नोटा की अवधारणा यह थी कि दलों पर कुछ दबाव पड़ेगा कि वे दागी उम्मीदवारों को मैदान में न उतारें। लेकिन ऐसा नहीं हुआ है। डीआर द्वारा संकलित आंकड़ों के मुताबिक विभिन्न राज्यों और आम चुनावों में नोटा को 0.5 प्रतिशत से 1.5 प्रतिशत के बीच मत मिले हैं।
दुर्भाग्य से नोटा एक दंतहीन शेर निकला : एडीआर के मुताबिक 2019 के लोकसभा चुनाव में लगभग 1.06 प्रतिशत वोट नोटा को मिले जबकि राज्यों में सबसे अधिक 1.98 प्रतिशत नोटा मत 2018 के छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों में मिले। मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) वर्मा ने कहा, दुर्भाग्य से, यह एक दंतहीन शेर निकला। इसने केवल राजनीतिक दलों के प्रति असहमति या किसी के गुस्से को व्यक्त करने का एक मंच प्रदान किया और इससे अधिक कुछ नहीं।
उन्होंने हालांकि रेखांकित किया कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों पर नोटा के पक्ष में मतदान का प्रतिशत थोड़ा अधिक रहा है, जो यह संकेत दे सकता है कि इन समूहों के बीच अधिक शिकायतें हैं। उन्होंने कहा, आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों में हमने देखा है कि नोटा वोटों का प्रतिशत अधिक है। शायद आदिवासियों और अनुसूचित जातियों को अधिक शिकायतें हैं इसलिए वे बड़ी संख्या में नोटा का विकल्प चुनते हैं।
नोटा को और ताकतवर बनाने की जरूरत : एक्सिस इंडिया के अध्यक्ष प्रदीप गुप्ता ने कहा कि नोटा को और ताकतवर बनाने की जरूरत है। उन्होंने कहा, मेरा मानना है कि जो उम्मीदवार नोटा से हार गए हैं, उन्हें दोबारा चुनाव लड़ने का मौका नहीं मिलना चाहिए। चूंकि ऐसा कोई नियम नहीं है, इसलिए कई मतदाता सोचते हैं कि नोटा चुनने का क्या मतलब है।
नोटा को खत्म करने की भी मांग की जा रही है। छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने पिछले साल नोटा को खत्म करने की मांग करते हुए कहा था कि कुछ मामलों में इसे जीत के अंतर से अधिक वोट मिले। उच्चतम न्यायालय ने 2018 में फैसला सुनाया था कि राज्यसभा चुनाव में नोटा का विकल्प नहीं दिया जाना चाहिए। (भाषा)
Edited By : Chetan Gour