नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने रियल एस्टेट कंपनी जेपी इन्फ्राटेक को सोमवार को करारा झटका देते हुए उसे 27 अक्टूबर तक 2000 करोड़ रुपए जमा कराने का निर्देश दिया। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने जेपी के प्रबंध निदेशक और अन्य निदेशकों को देश छोड़ने से मना कर दिया।
न्यायालय ने राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) द्वारा गठित संस्था अंतरिम रेजॉलुशन प्रोफेशनल्स (आईआरपी) को जेपी इन्फ्राटेक के प्रबंधन की जिम्मेदारी लेने को कहा। साथ ही उसने आईआरपी को फ्लैट खरीददारों और देनदारों के हितों की रक्षा के लिए 45 दिनों के भीतर एक समाधान योजना सौंपने का निर्देश दिया।
खंडपीठ ने कहा कि हम घर खरीदारों की दुर्दशा समझते हैं और यह इंसानों की बड़ी समस्या है। हम कंपनियों के हितों को लेकर चिंतित नहीं हैं, बल्कि हमें किस्त का भुगतान कर रहे मध्यमवर्गीय घर खरीदारों की चिंता है। शीर्ष अदालत ने यह निर्देश चित्रा शर्मा और 23 अन्य फ्लैट खरीदारों की ओर से दाखिल याचिका की सुनवाई के दौरान दिए।
जेपी के 35 हजार घर खरीदारों के सामने तब बड़ी समस्या खड़ी हो गई थी, जब एनसीएलटी ने 10 अगस्त को आईडीबीआई बैंक की उस याचिका को स्वीकार कर लिया जिसमें बैंक ने 526 करोड़ रुपए की बकाया राशि पर जेपी इन्फ्राटेक के खिलाफ इनसॉल्वेंसी प्रक्रिया शुरू करने की मांग की थी।
इसके बाद फ्लैट खरीदारों ने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था और इसने एनसीएलटी के आदेश पर गत 4 सितंबर को रोक लगा दी थी। उसके अगले दिन बैंक ने न्यायालय से अपने आदेश में संशोधन का अनुरोध किया था। (वार्ता)