नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे राज्य, जहां हिन्दुओं की संख्या काफी कम है, उन्हें अल्पसंख्यक का दर्जा देने के संबंध में महत्वपूर्ण निर्देश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने पैनल से इस पर अध्ययन कर रिपोर्ट देने का निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा कि जिन राज्यों में संख्या के लिहाज से हिन्दू कम हैं, क्या उन्हें अल्पसंख्यकों को मिलने वाले सरकारी लाभ दिए जा सकते हैं।
अल्पसंख्यक की परिभाषा और अल्पसंख्यकों की पहचान के दिशा-निर्देश तय करने की मांग के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अल्पसंख्यक आयोग को निर्देश दिया है कि 3 महीने के भीतर वह अल्पसंख्यक की परिभाषा तय करे। भाजपा नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने जनहित याचिका दाखिल कर सिर्फ वास्तव में अल्पसंख्यकों को 'अल्पसंख्यक संरक्षण' दिए जाने की मांग की है।
याचिका में मांग की गई है कि राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम की धारा 2(C) को रद्द किया जाए क्योंकि यह धारा मनमानी, अतार्किक और अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन करती है।
इस धारा में केंद्र सरकार को किसी भी समुदाय को अल्पसंख्यक घोषित करने के असीमित और मनमाने अधिकार दिए गए हैं। याचिका में यह भी कहा गया है कि हिन्दू जो राष्ट्रव्यापी आंकड़ों के अनुसार एक बहुसंख्यक समुदाय है, वह पूर्वोत्तर के कई राज्यों और जम्मू कश्मीर में अल्पसंख्यक है।
याचिका में कहा गया कि हिन्दू समुदाय उन लाभों से वंचित है जो कि इन राज्यों में अल्पसंख्यक समुदायों के लिए मौजूद हैं। अल्पसंख्यक पैनल को इस संदर्भ में 'अल्पसंख्यक' शब्द की परिभाषा पर फिर से विचार करना चाहिए।
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई के नेतृत्व वाली पीठ ने भाजपा नेता एवं वकील अश्विनी उपाध्याय से अल्पसंख्यक पैनल में अपने प्रतिवेदन को फिर से दाखिल करने के भी निर्देश दिए हैं। इस पर 3 महीने के भीतर फैसला लिया जाएगा।
उपाध्याय ने 2017 में आठ राज्यों में हिन्दुओं को अल्पसंख्यक बताते हुए राज्यवार अल्पसंख्यकों की पहचान करने की मांग याचिका दाखिल की थी, उस वक्त कोर्ट ने उनसे इस बारे में आयोग को ज्ञापन देने को कहा था। सोमवार को बहस सुनने के बाद कोर्ट ने कहा कि याचिका पर अभी आदेश देने की बजाय फिलहाल आयोग को उस लंबित ज्ञापन पर निर्णय लेना चाहिए। कोर्ट ने उपाध्याय से कहा है कि आयोग का फैसला आने के बाद वह कानून में प्राप्त उपाय अपना सकते हैं।
उपाध्याय की मांग है कि नेशनल कमीशन फॉर माइनेरिटी एक्ट की धारा 2(सी) रद्द की जाए क्योंकि यह मनमानी और अतार्किक है। इसमें केन्द्र को किसी भी समुदाय को अल्पसंख्यक घोषित करने के असीमित अधिकार हैं। साथ ही मांग है कि केंद्र की 23 अक्टूबर 1993 की वह अधिसूचना रद्द की जाए जिसमें पांच समुदायों मुसलमान, ईसाई, बौद्ध, सिख और पारसी को अल्पसंख्यक घोषित किया गया है।