नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक ऐतिहासिक फैसले में कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत बहू को अपने सास-ससुर के घर में रहने का अधिकार है।
जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली 3 जजों की पीठ ने यह टिप्पणी करते हुए घरेलू हिंसा कानून, 2005 की धारा 2 (एस) का दायरा विस्तारित किया है।
शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि परिवार की साझा संपत्ति और रिहायशी घर में भी घरेलू हिंसा की शिकार पत्नी को हक मिलेगा। पीड़ित पत्नी को अपने ससुराल की पैतृक और साझा संपत्ति यानी घर में रहने का कानूनी अधिकार होगा। पति द्वारा अलग से बनाए हुए घर पर भी उसका अधिकार होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक महिला अपने पति के रिश्तेदार के घर में भी रहने का दावा कर सकती है, अगर वहां वह घरेलू संबंध में रह चुकी हो।
शीर्ष अदालत ने कहा कि महिला ने पूरे जीवन एक बेटी, बहन, पत्नी, मां और साथी या अकेली औरत के तौर पर कभी भी खत्म नहीं होने वाली हिंसा और भेदभाव के चक्र का त्याग कर दिया है।
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि वर्ष 2005 में लागू हुआ कानून इस देश की महिलाओं की रक्षा के लिए मील का पत्थर है। अदालत ने कहा कि इस देश में घरेलू हिंसा बढ़ी है और कई महिलाएं किसी न किसी रूप में या लगभग रोजाना हिंसा का सामना करती हैं। हालांकि, इस क्रूर व्यवहार की सबसे कम रिपोर्ट दर्ज होती है।