Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

तीन तलाक खत्म, मुस्लिम महिलाओं के हक में बड़ा फैसला

हमें फॉलो करें तीन तलाक खत्म, मुस्लिम महिलाओं के हक में बड़ा फैसला
नई दिल्ली , मंगलवार, 22 अगस्त 2017 (10:30 IST)
उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को बहुमत के फैसले में तलाक-ए-बिदअत (लगातार तीन बार तलाक कहने की प्रथा) को असंवैधानिक करार दिया।
 
पांच सदस्यीय संविधान पीठ के तीन सदस्यों (न्यायमूर्ति रोहिंगटन एफ नरीमन, न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित और न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ) ने तलाक-ए-बिदअत को असंवैधानिक करार देते हुए कहा कि यह प्रथा गैर-इस्लामिक है। हालांकि संविधान पीठ की अध्यक्षता कर रहे मुख्य न्यायाधीश जेएस केहर और न्यायमूर्ति ए. अब्दुल नजीर ने तलाक-ए-बिदअत को गैर-कानूनी ठहराने के तीन अन्य न्यायाधीशों के फैसले से असहमति जताई।
 
न्यायमूर्ति केहर ने पहले अपना फैसला सुनाते हुए सरकार को तीन तलाक के मामले में कानून बनाने की सलाह दी और छह माह तक तलाक-ए-बिदअत पर रोक लगाने का आदेश दिया। उच्चतम न्यायालय ने इस्लामिक देशों में तीन तलाक खत्म किए जाने का हवाला दिया और पूछा कि स्वतंत्र भारत इससे निजात क्यों नहीं पा सकता। न्यायमूर्ति केहर ने कहा कि यदि सरकार छह महीने में कानून नहीं बना पाती है तो उसकी यह रोक जारी रहेगी। 
 
लेकिन, न्यायमूर्ति नरीमन, न्यायमूर्ति ललित और न्यायमूर्ति जोसेफ ने बाद में अपना फैसला सुनाते हुए तलाक-ए-बिदअत को मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन करार दिया। तीनों न्यायाधीशों ने इस प्रथा को असंवैधानिक और गैर-इस्लामिक करार दिया।
 
शीर्ष अदालत ने बहुमत के फैसले में कहा कि तलाक-ए-बिदअत महिलाओं की समानता के अधिकारों का उल्लंघन है। न्यायमूर्ति जोसेफ ने कहा कि तीन तलाक इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है और इस प्रथा को संविधान के अनुच्छेद 25 (मौलिक अधिकारों से संबंधित) का संरक्षण हासिल नहीं है। इसलिए इसे निरस्त किया जाए। 
 
न्यायमूर्ति नरीमन ने कहा कि तीन तलाक को संवैधानिकता की कसौटी पर कसा जाना जरूरी है। गौरतलब है कि शीर्ष अदालत ने गत 18 मई को मुस्लिम महिलाओं से जुड़े तीन तलाक के मुद्दे पर सुनवाई पूरी करके फैसला सुरक्षित रख लिया था। संविधान पीठ ने ग्रीष्मावकाश के दौरान मैराथन सुनवाई करते हुए सभी संबंधित पक्षों की व्यापक दलीलें सुनी थी।

उच्चतम न्यायालय ने राजनीतिक दलों से अपने मतभेदों को दरकिनार रखने और तीन तलाक के संबंध में कानून बनाने में केन्द्र की मदद करने को कहा। उच्चतम न्यायालय ने उम्मीद जताई कि केंद्र जो कानून बनाएगा उसमें मुस्लिम संगठनों और शरिया कानून संबंधी चिंताओं का खयाल रखा जाएगा। 
 
संविधान पीठ में हिन्दू (न्यायमूर्ति ललित), मुस्लिम (न्यायमूर्ति नजीर), सिख (मुख्य न्यायाधीश केहर) , ईसाई (न्यायमूर्ति जोसेफ) और पारसी (न्यायमूर्ति नरीमन) समुदाय के न्यायाधीशों को रखा गया था। (एजेंसियां)
 
शाह बानो प्रकरण के बाद बड़ा फैसला: उल्लेखनीय है कि शाहबानो प्रकरण के बाद मुस्लिम समुदाय को लेकर यह एक बड़ा फैसला है। इंदौर की रहने वाली शाहबानो के कानूनी तलाक भत्ते पर देशभर में राजनीतिक बवाल मच गया था। तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने एक साल के भीतर मुस्लिम महिला (तलाक में संरक्षण का अधिकार) अधिनियम, (1986) पारित कर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया था। शाहबानो को उसके पति मोहम्मद खान ने 1978 में तलाक दे दिया था। 
 
पांच बच्चों की मां 62 वर्षीय शाहबानो ने गुजारा भत्ता पाने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ी और पति के खिलाफ गुजारे भत्ते का केस जीत भी लिया था। दुर्भाग्य से केस जीतने के बाद भी शाहबानो को पति से हर्जाना नहीं मिल सका। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पुरजोर विरोध किया था।

 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

अमेरिका की इस हरकत से फिर भड़का उत्तर कोरिया, दी यह चेतावनी