नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के उस आदेश में हस्तक्षेप करने से सोमवार को इनकार कर दिया, जिसमें पुलिस को पश्चिम बंगाल में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी के खिलाफ आपराधिक मामले में पुलिस के कोई कठोर कार्रवाई करने पर रोक लगा दी गई थी। इन मामलों में अधिकारी के अंगरक्षक की असमय मृत्यु की सीआईडी जांच भी शामिल है।
हालांकि न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना की पीठ ने उच्च न्यायालय से मामले के अंतिम निस्तारण में तेजी लाने का अनुरोध किया है। पीठ ने कहा, विशेष अनुमति याचिका संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत दायर की गई थी और छह सितंबर 2021 के कलकत्ता उच्च न्यायालय के एक अंतरिम आदेश से संबद्ध है।
एकल न्यायाधीश ने चार हफ्ते के अंदर प्रतिवादियों को एक हलफनामा दाखिल करने की अनुमति दी थी। आज की तारीख तक, पश्चिम बंगाल और जांच अधिकारी ने कोई जवाब दाखिल नहीं किया है। पीठ ने कहा, उच्च न्यायालय का आदेश मौजूदा स्तर पर अंतरिम स्थगन के समर्थन में है, जो दिया गया है।
चूंकि उच्च न्यायालय के पास यह मामला विचाराधीन है और यह विशेष अनुमति याचिका एक अंतरिम आदेश से संबंधित है, ऐसे में हम संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत इस न्यायालय के अधिकार क्षेत्र का उपयोग करने को इच्छुक नहीं हैं। हालांकि न्यायालय ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि उसने मामले की विषयवस्तु पर कोई विचार नहीं व्यक्त किया है।
सुनवाई की शुरूआत में पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कल्याण बंधोपाध्याय ने दलील दी कि इस न्यायालय की किसी भी शर्त के दायरे में राज्य पुलिस को इस सारे मामले की जांच की अनुमति दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि अधिकारी के खिलाफ कोई दुर्भावना नहीं है।
बंधोपाध्याय ने दलील दी, एक ऐसा आदेश जारी किया गया है कि भविष्य में कुछ नहीं किया किया जा सकता। मैंने अपने 41 साल के वकालत के पेशे में उच्च न्यायालय का इस तरह का आदेश कभी नहीं देखा। कई लोग भाजपा में शामिल हुए और उनके खिलाफ मामले दर्ज नहीं किए गए। यदि संज्ञेय अपराध है, तो मामले दर्ज होने चाहिए।
अधिकारी के (दिवंगत) अंगरक्षक की पत्नी सुपर्णा कांजीलाल चक्रवर्ती की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद ग्रोवर ने कहा कि आत्महत्या की जांच नहीं की गई। उन्होंने कहा कि अधिकारी के खिलाफ मामले में जांच होनी चाहिए और जांच में भारी खामियां हैं। यह राजनीतिक मामला नहीं है।
उन्होंने कहा कि मेरा किसी राजनीतिक दल से कोई लेना-देना नहीं है। वह जब सत्ता में थे, तब मैं शिकायत नहीं कर सकी...मैं एक बेसहारा महिला हूं, मेरे पति एक सुरक्षा अधिकारी थे। प्राथमिकी में प्रतिवादी का नाम नहीं है। मैं भाजपा और तृणमूल कांग्रेस की लड़ाई के बीच क्यों पीसूं।
उल्लेखनीय है कि सीआईडी ने अधिकारी को हत्या के मामले में जांच के सिलसिले में अपने समक्ष उपस्थित होने को कहा था लेकिन भाजपा विधायक कई मामलों में अपने खिलाफ लंबित मामलों से संबद्ध प्राथमिकियों को उच्च न्यायालय में चुनौती दिए होने का हवाला देते हुए उपस्थित नहीं हुए। हत्या का मामला सुरक्षा अधिकारी की पत्नी ने 2021 में दर्ज कराया था।(भाषा)