Takshak Naag found in Jharkhand: झारखंड की राजधानी रांची के नामकुम स्थित आरसीएच परिसर (RCH campus Namkum) में एक दवा के कार्टून से मिले दुर्लभ सांप ऑरनेट फ्लाइंग स्नेक (Ornate Flying Snake) को देखकर लोग चौंक गए। यह बहुत ही दुर्लभ प्रजाति का सांप है। हवा में उड़ने वाले इस सांप को 'तक्षक नाग' के नाम से भी जाना जाता है।
घने जंगलों में पाया जाने वाले यह सांप 100 फुट की ऊंचाई से छलांग लगा सकता है। तक्षक नाग का उल्लेख महाभारत काल में भी मिलता है। कहानी के मुताबिक अर्जुन के पौत्र और अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित की मृत्यु तक्षक नाग के दंश से ही हुई थी। हालांकि करीब 5000 वर्ष पुरानी कहानी का इस तक्षक नाग से कोई लेना देना नहीं है।
पहली बार झारखंड में मिला है यह दुर्लभ सांप : जानकारी के मुताबिक इस सांप का रेस्क्यू पिठोरिया निवासी स्नेक रेस्क्यूवर रमेश कुमार महतो ने किया। यह सांप लगभग 3 फुट का है। इसकी अधिकतम लंबाई 5.5 फुट तक होती है। रमेश के मुताबिक यह सांप दुर्लभ प्रजाति का है और झारखंड में पहली बार इसे रेस्क्यू किया गया है। यह सांप जमीन पर बहुत कम आता है। ज्यादातर समय यह पेड़ पर ही रहता है।
इसका भोजन मुख्य रूप से छिपकली एवं कीड़े-मकोड़े होते हैं। यह सांप दुर्लभ प्रजाति का है और विलुप्ति की कगार पर है। इसे बिरसा जैविक उद्यान को सुपुर्द किया गया है। आम बोलचाल की भाषा में इसे हवा में उड़ने वाला सांप भी कहा जाता है। नाग प्रजाति से जुड़ा यह सांप ज्यादा जहरीला नहीं होता है।
क्या महाभारतकालीन तक्षक नाग की कहानी : पांडवों के स्वर्गारोहण के बाद अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित ने शासन किया। उसके राज्य में सभी सुखी और संपन्न थे। एक बार राजा परीक्षित शिकार खेलते-खेलते बहुत दूर निकल गए। उन्हें प्यास लगी तो वे वन में स्थित एक आश्रम में चले गए। वहां उन्हें मौन अवस्था में बैठे शमीक नामक ऋषि दिखाई दिए। राजा परीक्षित ने उनसे बात करनी चाहिए, लेकिन मौन और ध्यान में होने के कारण ऋषि ने कोई जबाव नहीं दिया। ये देखकर परीक्षित बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने एक मरा हुआ सांप उठाकर ऋषि के गले में डाल दिया और वहां से चले गए।
यह बात जब शमीक ऋषि के पुत्र श्रृंगी को पता चली तो उन्होंने शाप दिया कि आज से सात दिन बात तक्षक नाग राजा परीक्षित को डंस लेगा, जिससे उनकी मृत्यु हो जाएगी। बाद में जब शमीक ऋषि का ध्यान टूटा तो उन्हें इस घटनाक्रम का पता चला तो उन्होंने अपने पुत्र से कहा कि तुमने राजा परीक्षित को शाप देकर अच्छा नहीं किया। वह राजा न्यायप्रिय और जनता का सेवक है। उसकी मृत्यु हो जाने से राज्य का बहुत नुकसान होगा। उसने इतना बड़ा अपराध भी नहीं किया था कि उसे इतना बड़ा शाप दिया जाए।
शमीक को बहुत पश्चाताप हुआ। परंतु शाप को वापस नहीं लिया जा सकता था। ऋषि शमीक तुरंत ही राजमहल जाकर राजा परीक्षित को यह बता बताते हैं कि मेरे पुत्र ने भावना में बहकर तुम्हें शाप दिया है। इसमें तुम्हारा दोष नहीं, दोष तो समय का है। इसलिए हमारे मन में यह सोचकर पीड़ा हो रही है कि जिसका दोष है उसे दंड नहीं मिलेगा लेकिन तुम्हें मिलेगा।
ऋषि शमीक अपने पुत्र ऋषि श्रृंगी के शाप के बारे में बताते हैं कि आज से सातवें दिन तक्षक नाग के काटने से तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी राजन। यह सुनकर रानी रोने लगती है। शमीक ऋषि कहते हैं कि विधि के लेख को मिटाया नहीं जा सकता। मैं यही बताने आया हूं कि अब तुम्हारे पास जितना समय बचा है उसका उपयोग करो। अपने गुरुजनों से परामर्श करो, जिससे वह तुम्हें सन्मार्ग दिखाएं।
तब राजा परीक्षित रात्रि में ही अपने गुरु के पास पहुंचते हैं और अपनी व्यथा बताकर कहते हैं कि मैं 7 दिन में ऐसा क्या करूं कि मेरा परलोक सुधर जाए। तब गुरु कहते हैं कि भक्ति करो। जो फल योग, तपस्या और समाधि से नहीं मिलता कलियुग में वह फल श्री हरिकीर्तन अर्थात श्रीकृष्ण लीला का गान करने से सहज ही मिल जाता है। इसलिए तुम श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण और कीर्तन करो। उसमें श्रीकृष्ण की दिव्य लीलाओं का पवित्र वर्णन है। उसी के श्रवण से उत्पन्न हुई भक्ति ही तुम्हारे मोक्ष का कारण होगी। तुम वेदव्यासजी के पुत्र शुकदेवजी के पास जाओ वे तुम्हें यह कथा सुनाएंगे। तब राजा परीक्षित बालक शुकदेव के पास जाकर उनके चरणों को धोकर उनसे श्रीमद्भागवत कथा सुनते हैं। इसके बाद 7वें दिन तक्षक नाग राजा परीक्षित को डंस लेता है।
Edited by: Vrijendra Singh Jhala