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भयानक सर्दी के बीच तलाशी अभियानों से भड़के कश्मीरी

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सुरेश डुग्गर

श्रीनगर , गुरुवार, 22 दिसंबर 2016 (18:00 IST)
श्रीनगर। कश्मीर में भयानक सर्दी के बीच कश्मीरियों को सुरक्षाबलों के तलाशी अभियानों पर जो गुस्सा भड़क रहा है उसका नतीजा यह है कि दोनों पक्षों में झड़पें बढ़ती जा रही हैं। दरअसल सुरक्षाबलों ने आतंकियों के खिलाफ अपने अभियानों को रोका इसलिए नहीं है क्योंकि पहाड़ों से नीचे उतरते आतंकी सुरक्षाबलों पर हमलों को बढ़ा रहे हैं।
यही कारण था कि आज भी उत्तरी कश्मीर के हाजिन बांडीपोरा में गुरुवार सुबह उस समय लोग सड़कों पर उतर आए, जब सुरक्षाबलों ने आतंकियों के छिपे होने की सूचना पर घेराबंदी कर तलाशी अभियान चलाया। इसके बाद ग्रामीणों ने सुरक्षाबलों के खिलाफ नारेबाजी करते हुए पथराव भी किया।
 
ग्रामीणों द्वारा सुरक्षाबलों का विरोध किए जाने के मौके का फायदा उठाकर आतंकी भाग निकले। लेकिन संबधित अधिकारियों ने इससे इंकार करते हुए कहा कि घेराबंदी जारी है। तीन विदेशी आतंकी गुरुवार सुबह ही हाजिन गांव के पारे मोहल्ले में स्थित अपने एक संपर्क सूत्र के पास मिलने आए थे। बताया जाता है कि आतंकियों ने मोहम्मद मकबूल नामक एक ग्रामीण के मकान में पनाह ली थी। इसका पता चलते ही सुरक्षाबलों ने भी घेराबंदी करते हुए तलाशी अभियान शुरू किया।
 
सुरक्षाबल जैसे ही आतंकी ठिकाना बने मकान के पास पहुंचे, वहां छिपे आतंकियों ने घेराबंदी तोड़ भागने के लिए जवानों पर गोलियां चलाईं। जवानों ने खुद को इस फायरिंग से बचाया और जवाबी कार्रवाई की, लेकिन तब तक ग्रामीण अपने घरों से बाहर निकल आए। उन्होंने सुरक्षाबलों के खिलाफ नारेबाजी करते हुए उन पर पथराव शुरू कर दिया।
 
ग्रामीणों ने सुरक्षाबलों को तलाशी अभियान बंद करने व घेराबंदी हटाने के लिए कहा। इस बीच पुलिस भी मौके पर पहुंच गई। पुलिस ने हिंसक ग्रामीणों पर हल्का बल प्रयोग कर, स्थिति पर काबू पाने का प्रयास किया। लेकिन तब तक कथित तौर पर आतंकी घेराबंदी तोड़कर भाग चुके थे। इस खबर के लिखे जाने तक हाजिन में सुरक्षाबलों के खिलाफ प्रदर्शन जारी थे।
 
भयानक सर्दी में सुरक्षाबलों ने सिर्फ हाजिन के ही लोगों को ‘परेशान’ नहीं किया था, बल्कि पूरी वादी में अब यह रूटीन हो चुका है कि प्रतिदिन आतंकियों की तलाश में चलाए जाने वाले 8 से 10 तलाशी अभियानों में आम कश्मीरियों को ही भुगतना पड़ रहा है और भयानक सर्दी में लाइनों में खड़े होने, घरों के बाहर देर-सवेर निकाला जाना उन्हें 1990 के कश्मीर की याद जरूर दिला रहा है जो आक्रोश का कारण बनता जा रहा है।


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