History of Madhya Pradesh Assembly elections: मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में बड़ी संख्या में निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतरते हैं। 1957 से चुनाव-दर-चुनाव इनकी संख्या में वृद्धि ही देखने को मिली है। लेकिन, जीतने वाले निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या में लगातार गिरावट दर्ज की गई। 1962 के विधानसभा चुनाव में सर्वाधिक 39 निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव जीते थे। उस समय विधानसभा की 288 सीटें थीं।
अविभाजित मध्यप्रदेश की 288 सीटों के लिए हुए इस विधानसभा चुनाव में सर्वाधिक 142 सीटें कांग्रेस ने जीती थीं, जबकि भारतीय जनसंघ 41 सीटें जीतकर दूसरे स्थान पर रहा था। स्वतंत्र रूप से चुनाव मैदान में उतरे 374 प्रत्याशियों में से 39 निर्दलीय उम्मीदवार जीतने में सफल रहे थे। इनमें से 279 की तो जमानत ही जब्त हो गई।
हालांकि इस चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवारों को दूसरे नंबर रहे दल जनसंघ के मुकाबले ज्यादा वोट मिले थे। जनसंघ 10 लाख 92 हजार 237 (16.66 फीसदी) वोट मिले थे, जबकि निर्दलीय उम्मीदवारों को 11 लाख 51 हजार 955 (17.57 प्रतिशत) वोट मिले थे।
मध्यप्रदेश के पहले चुनाव 1957 में 20 निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव जीते थे। 1967 में 22, 1972 में 18, 1977 में 5, 1980 में 8, 1985 में 6, 1990 में 10, 1993 में 8 एवं 1998 में उम्मीदवार चुनाव जीतने में सफल रहे थे। 1990 में अब तक के सर्वाधिक 2730 निर्दलीय उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा था। इसके बाद 1993 में यह संख्या 1814 थी।
बाद के चुनावों में निर्दलीय रूप से चुनाव मैदान में उतरने वाले उम्मीदवारों की संख्या तो 1000 से ज्यादा थी, लेकिन जीतने वालों की संख्या नहीं के बराबर रह गई। 2003 में 2, 2008 में 3, 2013 में तीन और 2018 के विधानसभा चुनाव में मात्र 4 निर्दलीय उम्मीदवार ही विधानसभा पहुंच पाए। 2018 में 1094 उम्मीदवारों ने नामांकन दाखिल किया था। इनमें से 1074 उम्मीदवारों ने तो अपनी जमानत ही गंवा दी।
सबसे ज्यादा बस्तर इलाके में जीते : 1962 के चुनाव में सर्वाधिक निर्दलीय प्रत्याशी बस्तर (वर्तमान में छत्तीसगढ़) से जीतने में रहे थे। क्षेत्र की 10 में 9 सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवार विजयी रहे थे। मात्र बीजापुर सीट से कांग्रेस के हीरा शाह ही चुनाव जीत पाए थे।
भानुप्रताप देव (कांकेर), मनकूराम सोढ़ी (केशकाल), मंगल सिंह (भानपुरी), चैतू महरा (जगदलपुर), पाकलू जोगा (चित्रकोट), बेटीजोगा हदमा (कोंटा), लच्छू (दंतेवाड़ा), रामभरोसे (नारायणपुर) और भानुप्रतापपुर से रामप्रसाद स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीते थे। बालाघाट, छिंदवाड़ा, दमोह और राजगढ़ जिले से भी 3-3 निर्दलीय उम्मीदवारों ने चुनाव जीता था।
झाबुआ जिले में एक भी सीट नहीं मिली थी कांग्रेस को : इस चुनाव में भले ही राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी थी, लेकिन पश्चिमी निमाड़ और झाबुआ में कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली थी। पश्चिमी निमाड़ की 7 सीटों पर जनसंघ प्रत्याशी निर्वाचित हुए थे, जबकि 1 सीट पर स्वतंत्र उम्मीदवार चुना गया था। इसी तरह आदिवासी बहुल झाबुआ की चारों सीटों से सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार विधानसभा पहुंचे थे। मंदसौर जिले की 7 में से 6 सीटों पर जनसंघ के उम्मीदवार निर्वाचित हुए थे, जबकि कांग्रेस एकमात्र मंदसौर सीट ही जीत पाई थी।