देश और दुनिया में टाइगर स्टेट के रूप में अपनी पहचान रखने वाला मध्यप्रदेश आज से चीता स्टेट के रूप में जाना पहचाना जाने लगा है। देश में 75 साल बाद एक बार चीता मध्यप्रदेश के धरती पर दौड़ने लगा। आज प्रधानमंत्री नरेंद्र ने श्योपुर के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में नामीबिया से लाए गए चीतों को छोड़ा। चीतों के नेशनल पार्क में छोड़ने के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीतों की तस्वीरों को अपने कैमरे में कैद किया। इस दौरान प्रधानमंत्री काफी खुश दिखाई दिए।
कूनो नेशनल पार्क में चीतों को छोड़ने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीतों की सुरक्षा के लिए बनाए गए चीता मित्रों के साथ संवाद किया। चीतों को कूनों में छोड़ने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि चीते हमारे मेहमान हैं, उनको देखने के लिए कुछ समय का धैर्य और रखना होगा। प्रधानमंत्री ने कहा कि कूनो नेशनल पार्क में चीते इसलिए छोड़े गए, क्योंकि मुझे आप पर भरोसा है और आप लोगों ने मेरे भरोसे को कभी नहीं तोड़ा है।
चीतों की सुरक्षा के लिए कूनो अभ्यारण्य के वन विभाग के अधिकारियों के दल ने नामीबिया की चीता प्रबंधन तकनीक का प्रशिक्षण प्राप्त किया है। कूनो राष्ट्रीय उद्यान के 750 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र को लगभग दो दर्जन चीतों के रहने के लिए उपयुक्त पाया गया है। इसके अतिरिक्त करीब 3 हजार वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र दो जिलों श्योपुर और शिवपुरी में चीतों के स्वच्छंद विचरण के लिए उपयुक्त है।
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कहते है कि वह मध्यप्रदेश का सौभाग्य मानते है कि जो टाइगर स्टेट और लेपर्ड स्टेट के बाद अब चीता स्टेट होने जा रहा है। 20 साल पहले कूनो नेशनल अभ्यारण्य को वाइल्ड लाइफ के लिए तैयार किया गया था। कूनो को सुरक्षित सेंचुरी बनाने के लिए कई गांवों को हटाया गया था। कूनो में चीता आना असाधारण घटना है क्योंकि देश में 1952 के आस-पास चीतों का अस्तित्व समाप्त हो गया था और अब अब दूसरे महाद्वीप से चीते लाकर उनको यहां पुनर्स्थापित कर रहे हैं, शायद यह वाइल्ड लाइफ की इस सदी की सबसे बड़ी घटना है। दूसरा महाद्वीप से चीतों को लाकर बसाने के साथ कोशिश करेंगे कि स्वाभाविक रूप से चीते का परिवार बढ़े।
चीतों की सुरक्षा के लिए बनाए गए चीता मित्र- कूनो अभयारण्य में चीतों की सुरक्षा करना सबसे बड़ा चुनौती का काम है। चीतों की सुरक्षा के लिए सेंचुरी से सटे गांव में विशेष प्रकार के चीता मित्र तैयार किए गए है। श्योपुर कूनो वन मंडल के डीएफओ पीके वर्मा के मुताबिक अभयारण्य से सटे बेस गांवों में अब तक 450 से अधिक चीता मित्रा तैयार किए गए है, इन चीता मित्रों को वन विभाग की तरफ से विशेष ट्रेनिंग दी गई है। चीता मित्र चीतों की सुरक्षा का काम करेंगे। चीता मित्रों को चीतों के व्यवहार के बारे में बताने के साथ स्थानीय लोगों को चीतों के विषय मे जागरूक करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। विशेष तौर पर अगर चीता गांव के पास पहुंच जाए तो उसपर किसी भी प्रकार का आक्रमण नहीं करे और न ही इसको लेकर डर का माहौल बनाए। चीता मित्र स्थानीय लोगों को इस बात को लेकर जागरूक करेंगे कि ऐसी परिस्थितियों में चीता पर हमला नहीं कर उसके चुपचाप निकलने की जगह प्रदान करे।
चीतों की सुरक्षा बड़ी चुनौती क्यों?–टाइगर स्टेट और तेंदुआ स्टेट का दर्जा रखने वाला मध्यप्रदेश जो आज से चीता स्टेट बनने जा रहा है, उसके समाने सबसे बड़ी चुनौती चीतों की सुरक्षा का है। वन्य प्राणी सरंक्षण को लेकर कैग ने रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में 2014 से 2018 के बीच 115 बाघों और 209 तेंदुओं की अलग-अलग कारणों से मृत्यु हुई। चिंता वाली बात यह है कि प्रदेश के सात वन मंडल में ही 80 बाघों की मृत्यु हुई, जिसमें 16 का शिकार किया गया है। ऐसे 16 बाघ और 21 तेंदुए के शव मिले है जिनकी मौत बिजली के करंट से हुई है।
अगर बीते सालों में बाघों की मौत के आंकड़ों पर नजर डाले तो गत 6 सालों में 175 बाघों की मौत हो चुकी है। जनवरी 2022 से 15 जुलाई 2022 तक मध्यप्रदेश में 27 बाघों की मौत दर्ज की गई है जोकि देश में सबसे ज्या है। वहीं मध्यप्रदेश में 2021 में 44, 2020 में 30, 2019 में 29, 2018 में 19, 2017 में 27 और 2016 में 34 बाघों की मौत हुई थी। नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (एनटीसीए) की रिपोर्ट के मुताबिक जनवरी 2022 में 15 जुलाई तक 74 बाघों की मौत हुई जिसमें 27 बाघ मध्यप्रदेश के थे।
प्रदेश में लगातार हो रही बाघों की मौत में सबसे आश्चर्यजनक पहलू यह है कि नेशनल पार्क में रहने वाले बाघ भी सुरक्षित नहीं है। एक रिपोर्ट के मुताबिक बाघों की सबसे ज्यादा मौतें टाइगर रिजर्व क्षेत्र में हुई है। कान्हा टाइगर रिजर्व में सबसे ज्यादा 30 और बांधवगढ़ में 25 मरे थे।
ऐसे में कूनो नेशनल पार्क में आने वाले चीतों की सुरक्षा करना वन विभाग के लिए बड़ी चुनौती है। चीतों को पूरी तरह सुरक्षा देने के लिए कूनो नेशनल पार्क प्रबंधन रिटायर्ड सैनिकों को चीतों की सुरक्षा में तैनात किया है।