Trump H1B Visa effect on India : अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच की 'दोस्ती' की मिसालें तो दुनिया ने खूब सुनी हैं। 'हाउडी मोदी' से लेकर 'नमस्ते ट्रंप' तक, दोनों नेताओं ने एक-दूसरे को गले लगाकर वैश्विक मंच पर भारत-अमेरिका संबंधों को मजबूत करने का दावा किया है। लेकिन हाल की घटनाएं इस 'दोस्ती' पर सवाल खड़े कर रही हैं। ट्रंप प्रशासन की नई नीतियां—चाहे वह भारत पर लगाए गए 50 प्रतिशत टैरिफ हों या एच-1बी वीजा पर 1 लाख डॉलर की वार्षिक फीस—भारतीय अर्थव्यवस्था और पेशेवरों के लिए भारी पड़ रही हैं। विपक्ष इसे ट्रंप का 'रिटर्न गिफ्ट' बता रहा है, जो प्रधानमंत्री मोदी के जन्मदिन के ठीक बाद आया है।
वीजा का वज्रपात: भारतीय सपनों पर 'अमेरिका फर्स्ट' की चोट
अगर टैरिफ से अर्थव्यवस्था को झटका लगा, तो एच-1बी वीजा पर नई फीस ने भारतीय आईटी पेशेवरों के सपनों पर पानी फेर दिया। 19 सितंबर 2025 को ट्रंप ने एक घोषणा पर हस्ताक्षर किए, जिसमें एच-1बी वीजा आवेदन पर प्रति वर्ष 1,00,000 डॉलर (करीब 88 लाख रुपये) की फीस लगाई गई। यह फीस 21 सितंबर 2025 से प्रभावी हो जाएगी। ट्रंप का दावा है कि यह 'अमेरिकी नौकरियों की रक्षा' के लिए है, लेकिन भारत सबसे अधिक प्रभावित देश होगा, क्योंकि 70 प्रतिशत से ज्यादा एच-1बी वीजा भारतीयों को जाते हैं।
टीसीएस, इंफोसिस, अमेजन और माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियां सबसे ज्यादा प्रभावित होंगी, जिन्होंने 2025 में हजारों एच-1बी वीजा के लिए आवेदन किए थे। यह फीस ज्यादातर एच-1बी वीजा धारकों की वार्षिक सैलरी से भी ज्यादा है, जो औसतन 80,000-90,000 डॉलर होती है। विपक्षी नेता इसे 'मोदी के जन्मदिन का रिटर्न गिफ्ट' बता रहे हैं, क्योंकि यह 17 सितंबर को घोषित हुआ। कांग्रेस ने सरकार पर 'रणनीतिक चुप्पी' का आरोप लगाया।
ALSO READ: ट्रंप ने मोदी को दोस्त बोल कर किया वार, H1B वीजा पर सबसे बड़ा प्रहार
टैरिफ का तमाचा: जब 'दोस्ती' पर व्यापार भारी पड़ा
ट्रंप प्रशासन ने अगस्त 2025 में भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगा दिया, जो मुख्य रूप से रूसी तेल की खरीद को लेकर 'सजा' के रूप में देखा जा रहा है। 27 अगस्त 2025 से प्रभावी यह टैरिफ भारत से अमेरिका को होने वाले अधिकांश निर्यातों पर लागू हो गया, जिसमें वस्त्र, फार्मास्यूटिकल्स और आईटी हार्डवेयर जैसे क्षेत्र शामिल हैं। पहले ही 25 प्रतिशत का अतिरिक्त टैरिफ रूसी तेल खरीद के लिए लगाया गया था, जिससे कुल प्रभाव 50 प्रतिशत तक पहुंच गया।
विश्लेषकों का अनुमान है कि इन टैरिफ से भारत की जीडीपी वृद्धि 30-80 आधार अंकों से कम हो सकती है। भारतीय निर्यातक भारी नुकसान की आशंका जता रहे हैं, जबकि अमेरिका-भारत व्यापार वार्ताएं ठप हो चुकी हैं। ट्रंप ने इसे 'पारस्परिक' नीति बताया, लेकिन भारत सरकार का कहना है कि यह रूसी तेल खरीद पर आधारित अनुचित सजा है। यही नहीं ट्रंप ने यूरोपीय संघ से भी भारत और चीन पर 100 प्रतिशत टैरिफ लगाने की मांग की थी, जो वैश्विक व्यापार युद्ध को और भड़का सकता है।
मोदी सरकार ने प्रतिक्रिया में चीन के साथ संबंधों पर पुनर्विचार की बात कही है, लेकिन निर्यातकों का कहना है कि अमेरिकी बाजार बंद होने से लाखों नौकरियां खतरे में हैं।
'दोस्त ट्रंप' का यह 'दगा': भारत-अमेरिका संबंधों पर सेंध
ट्रंप-मोदी की 'ब्रोमांस' के बावजूद, ये कदम अमेरिका-भारत संबंधों को नई ऊंचाई देने के बजाय गहरा संकट पैदा कर रहे हैं। फरवरी 2025 में अमेरिका दौरे पर मोदी ने 'मेगा' साझेदारी की बात की थी, लेकिन अब टैरिफ और वीजा फीस ने सबको चौंका दिया। ट्रंप की 'गुड कॉप-बैड कॉप' रणनीति भारत पर दबाव बनाने के लिए इस्तेमाल हो रही है, चाहे वह चाबहार पोर्ट पर सैंक्शन हों या वीजा प्रतिबंध।
अब समय आ गया है कि भारत सरकार व्यक्तिगत प्रशंसा और दिखावटी समारोहों के मोह से बाहर निकले। कूटनीति ऑप्टिक्स और इवेंट मैनेजमेंट से नहीं, बल्कि ठोस राष्ट्रीय हितों की रक्षा से चलती है। बेशक, कुछ विशेषज्ञ इसे 'ब्रेन ड्रेन' को उलटने का एक अवसर मान सकते हैं, लेकिन यह तभी संभव है जब हम रातोंरात एक मजबूत घरेलू आईटी इकोसिस्टम बना सकें, जो लाखों महत्वाकांक्षी युवाओं को अवसर दे सके।