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NRC का सच, लोग मतदाता सूची में अपना बाप खरीद रहे हैं : Ground Report

देश मे आने से पहले ही तैयार हो जाते हैं वोटर कार्ड, लाइसेंस

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, सोमवार, 14 अक्टूबर 2019 (15:21 IST)
- गुवाहाटी से दीपक असीम और संजय वर्मा
 
भारत और बांग्लादेश की बॉर्डर उसी तरह सील होनी चाहिए जैसी पंजाब में की गई है। सरकार को पुराने बांग्लादेशी पकड़ने से ज्यादा चिंता इस बात की होनी चाहिए कि नए घुसपैठिए अंदर न आने पाएं। मगर सरकार के लिए शायद यह घुसपैठिए राजनीति करने का साधन हैं।
 
करोड़ों रुपया एनआरसी पर बर्बाद किया गया और किया जा रहा है। इसका नतीजा पता नहीं क्या निकलेगा, मगर बॉर्डर पर चौकसी बढ़ाने से बहुत कुछ हो सकता है।
 
वेबदुनिया से यह बात कही फॉरेन ट्रिब्यूनल के दो रिटायर डिस्ट्रिक्ट मेंबर हरदीप सिंह और एके सोहरिया ने। अब यह दोनों बॉर्डर पुलिस ब्रांच असम में लीगल सलाहकार के तौर पर काम कर रहे हैं।
 
ये बताते हैं कि सबसे ज्यादा बांग्लादेशी त्रिपुरा और धुबरी के इलाके से घुसते हैं। यहां पर सैकड़ों किलोमीटर तक तो कांटेदार तार ही नहीं लगाए गए हैं। कई जगह ब्रह्मपुत्र नदी ही सीमा का काम करती है। लोग आसानी से नदी पार करके इधर आ जाते हैं और यहां के लोगों में घुलमिल जाते हैं। क्योंकि बोलचाल कपड़े-लत्ते सब एक जैसे ही हैं।
 
यह धारणा बहुत गलत है कि बांग्लादेश से सिर्फ मुस्लिम ही आते हैं। यह धारणा भी ठीक नहीं कि मुस्लिम यहां फायदा उठाने आते हैं और हिंदू अत्याचार से पीड़ित होकर शरण लेते हैं। सभी यहां रहने बसने और अच्छे भविष्य के लिए आते हैं।

यहां पर कागजों के दलाल सक्रिय हैं पिछले दिनों हमने 21 लोगों के जत्थे को सीमा पर पकड़ा था। भारत की सीमा में घुसने से पहले उनके पास यहां का आधार कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, पैन कार्ड, वोटर कार्ड था।
 
यहां पर इतना भ्रष्टाचार है कि 'गांवबूढ़ा' जिसे आप लोग कोटवार कहते हैं, हमारे सामने आकर झूठी गवाही देता है। जिन लोगों के पास कागजात नहीं है उन पुराने लोगों के लिए सुप्रीम कोर्ट ने यह व्यवस्था दी है कि गांव का कोटवार आकर गवाही देगा कि मैं इन्हें निजी तौर पर इतने सालों से जानता हूं तो उसे नागरिक मान लिया जाएगा। हो यह रहा है की कोटवार पैसा लेकर गवाही देता है।
 
हरदीप सिंह ने बताया कि मेरे सामने एक कोटवार ने आकर कहा जो आदमी सामने खड़ा है, मैं इसे बचपन से जानता हूं और इसके बाप को भी पहचानता हूं। मैंने पूछा कोटवार साहब आपकी उम्र क्या है? उसने बताया 33 साल। मैंने कहा 33 साल के आप हो और आप 45 साल के आदमी को बचपन से जानते हो? और तो और उसके बाप को भी आप बचपन से जानते हो? क्या यह अजीब नहीं है? मगर नियम यही है कि कोटवार की गवाही माननी होगी। यहां बाप भी बिकते हैं।
 
सन 66 की मतदाता सूची में से किसी का नाम लेकर आदमी कहता है यह मेरा बाप है और मतदाता सूची दिखाने वाला आदमी पैसा ले लेता है। यह भी ध्यान रखा जाता है कि किसी पुराने आदमी को ज्यादा लोगों का बाप ना बनाया जाए। यह सब 100-200 रुपए में हो जाता है। इन रिटायर फॉरेन ट्रिब्यूनल मेम्बरान ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने 1000 फॉरेन ट्रिब्यूनल अदालतें बनाने को बोला है।
 
फॉरेन ट्रिब्यूनल के लिए रिटायर्ड जजों की जरूरत होगी और रिटायर जज मिल ही नहीं रहे। इसलिए जिन्होंने 7 साल से ज्यादा वकालत की है उन्हें फौरन ट्रिब्यूनल का मेंबर यानी जज बना रहे हैं। इनकी ट्रेनिंग चल रही है एक जज को 85 हजार महीना भुगतान किया जा रहा है। अस्थाई अदालत के लिए मकान किराए पर लिए जा रहे हैं। गाड़ी दे रहे हैं। ड्राइवर दे रहे हैं। स्टेनो दे रहे हैं ऑफिस का स्टाफ दे रहे हैं। चपरासी और चौकीदार भी दे रहे हैं।
 
एक अदालत पर 15 लाख रुपए महीने का खर्चा आ रहा है और यहां होगा क्या? एनआरसी में जिस आदमी का नाम नहीं आया वह आकर बताएगा कि मेरा नाम अमुक कारणों से छूट गया है। वह आदमी सबूत पेश करेगा। इसके बाद फॉरेन ट्रिब्यूनल फैसला नहीं देगी बस अपना ओपिनियन देगी। यह ओपिनियन स्टेट लेवल कमेटी के पास जाएगा और वो तय करेगी कि किसका दावा सही है। इसके बाद भी अगर आदमी भारत का नागरिक घोषित नहीं होता है तो उसके पास हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट जाने का रास्ता खुला है।
 
तब तक वह वोट डाल सकता है, चुनाव में खड़ा हो सकता है और जमीन जायदाद बना सकता है, धंधा कर सकता है। सोचिए इसमें कितना वक्त और पैसा बर्बाद होगा? इसकी क्या कहीं कोई सीमा है? इन दोनों की राय यह है कि एनआरसी के नाम पर चल रही यह फिजूल कवायद बंद होनी चाहिए। सीमा को अच्छी तरह सील किया जाना चाहिए और अंतिम रूप से बाहरी साबित होने वाले लोगों को वर्क परमिट देकर खाने कमाने देना चाहिए। इतने लोगों को जेल में बैठाकर खिलाने का कोई मतलब नहीं है।
 
बांग्लादेश से बात होनी चाहिए कि वह अपने यहां से आने वालों को रोके। मगर लगता है सरकार यह बात नहीं करेगी क्योंकि बांग्लादेश मित्र देशों में आता है और भारत के पास अपने अड़ोस-पड़ोस में मित्र देश कम हैं।

 (इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)

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