जम्मू। हालांकि जम्मू-कश्मीर प्रशासन प्रदेश में पहली बार संपत्ति कर लगाने के अपने निर्देश के 'फायदे' गिना रहा है, पर इस पर मचा हुआ बवाल जबरदस्त विरोध में बदल चुका है। अगर श्रीनगर नगर निगम इसके विरुद्ध उठ खड़ा हुआ है तो जम्मू नगर निगम के मेयर अपनी उस घोषणा से पीछे हट गए हैं जिसमें उन्होंने निगम के पार्षदों की आधिकारिक बैठक में इसे लागू न करने की बात कही थी।
भाजपा को छोड़ प्रत्येक राजनीतिक और सामाजिक दल प्रदेश में संपत्ति कर लगाने का विरोध इन तर्कों के साथ कर रहा है कि प्रदेश में ऐसे निर्णय लेने का अधिकार सिर्फ चुनी हुई सरकार या चुने हुए प्रतिनिधियों को ही होना चाहिए।
यह सच है कि करीब 28 महीनों की सुगबुगाहट और माथापच्ची के बाद प्रदेश प्रशासन ने अध्यादेश के जरिए एक अप्रैल से संपत्ति कर लगाने का आदेश जारी किया है। विरोध में लोग और राजनीतिक दल सड़कों पर हैं। आज तो जम्मू के सभी वकील भी कामकाज छोड़कर सड़कों पर हैं।
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के प्रधान एमके भारद्वाज इसे जनता विरोधी करार देते हुए कहते हैं कि पहले ही प्रदेश में बाबा का बुलडोजर कहर बरपा रहा था और अब प्रशासन ने जनता पर नया बम फोड़ दिया है।
श्रीनगर पार्षद मोर्चा के प्रधान दानिश शफी बट कहते हैं कि चुने हुए प्रतिनिधियों से सलाह किए बिना ऐसे आदेश जारी करना गैरकानूनी है। जम्मू के मेयर राजेंद्र शर्मा भाजपा से हैं और वे चाहकर भी इस आदेश का विरोध नहीं कर पा रहे हैं और न ही वे उस वीडियो का खंडन कर रहे, जिसमें उन्होंने दावे के साथ कहा कि वे जम्मू में संपत्ति कर लागू नहीं होने देंगे।
इतना जरूर था कि यह पहला ऐसा मुद्दा था जिस पर कश्मीर और जम्मू संभाग के नेता और लोग एकसाथ खड़े थे सिवाय भाजपा नेताओं के। यह बात अलग है कि भाजपा कार्यकर्ता भी अप्रत्यक्ष रूप से इस पर विरोध जरूर जता रहे थे।