नई दिल्ली। अपने विदाई कार्यक्रम में एक साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा की गई टिप्पणी का मुद्दा उठाते हुए पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने कहा है कि कई लोगों ने उनके उस बयान को इस तरह के मौके पर स्वीकृत परिपाटी से भटकाव माना।
10 अगस्त 2017 अंसारी का उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति के तौर पर दूसरे कार्यकाल का आखिरी दिन था। परंपरा के अनुसार, राजनीतिक दल और सदस्य पूर्वाह्न सत्र में सभापति को धन्यवाद देते हैं। अंसारी ने कहा कि प्रधानमंत्री ने इसमें भाग लिया और मेरी पूरी तारीफ करने के दौरान उन्होंने मेरे दृष्टिकोण में एक निश्चित झुकाव के बारे में भी संकेत दिया।
उन्होंने मुस्लिम देशों में राजनयिक के तौर पर मेरे पेशेवर कार्यकाल और कार्यकाल समाप्त होने के बाद अल्पसंख्यक संबंधी सवालों की चर्चा की। उन्होंने कहा कि इसका संदर्भ संभवत: बेंगलुरु में मेरे भाषण के बारे में था, जिसमें मैंने असुरक्षा की बढ़ी हुई भावना का जिक्र किया था और टीवी साक्षात्कार में मुस्लिमों और कुछ अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों में असहजता की भावना के बारे में बात की थी।
पद से मुक्त होने से पहले अपने आखिरी साक्षात्कार में अंसारी ने इस बात की ओर इशारा किया था कि देश में मुसलमान असहज महसूस कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया पर वफादारों के हंगामे ने बाद में इसे विश्वसनीयता देने की कोशिश की। दूसरी तरफ संपादकीय टिप्पणी और कई गंभीर लेखनों में प्रधानमंत्री की टिप्पणी को इस तरह के मौकों पर स्वीकृत परिपाटी से भटकाव माना गया।
उन्होंने अपनी बातों को बयां करने के लिए उर्दू के एक शेर की पंक्तियों का इस्तेमाल किया। उन्होंने कहा, 'भरी बज्म में राज की बात कह दी'।' अंसारी यह भी मानते हैं कि राष्ट्रवाद और भारतीयता के व्यापक रूप से स्वीकार्य बहुलवादी विचार को अब 'सांस्कृतिक राष्ट्रवाद' के विचार के माध्यम से 'विशिष्टता को शुद्ध करने' के दृष्टिकोण से चुनौती दी जा रही है।
उन्होंने कहा कि 'सांस्कृतिक राष्ट्रवाद' साझा संस्कृति की संकीर्ण परिभाषा पर आधारित है। अंसारी ने इन मुद्दों का उल्लेख अपनी नई पुस्तक 'डेयर आई क्वेश्चन? रिफ्लेक्शंस ऑन कंटेपररी चैलेंजेज' में किया है। इस पुस्तक में उनके भाषणों और उपराष्ट्रपति के तौर पर कार्यकाल के आखिरी वर्ष और हाल के महीनों में उनके लेखों का संकलन है। इसे हर-आनंद प्रकाशन ने प्रकाशित किया है।