भारतीय बैंकों का कर्ज लेकर विदेश भागा शराब कारोबारी विजय माल्या ने कहा कि बैंकों से कहा कि वह कर्ज चुकाने को तैयार है। उसने ट्वीट कर कहा कि वह कर्ज का सारा रुपया देने को तैयार है, मगर वह ब्याज नहीं चुका सकता है। विजय माल्या ने भारतीय नेताओं और मीडिया पर पक्षपात का आरोप लगाया है। विजय माल्या पर भारतीय बैंकों का करीब 9000 करोड़ रुपए का कर्ज है।
एक वक्त था जब बॉलीवुड, खेल जगत, कॉर्पोरेट लॉबी तक में विजय माल्या की तूती बोलती थी। माल्या की बर्बादी की कहानी किसी बॉलीवुड फिल्म की कहानी की तरह है। आइए हम आपको बताते हैं कौनसी गलती ने 'किंग ऑफ गुड टाइम्स' को बनाया 'किंग ऑफ बैड टाइम्स'।
विजय माल्या को शराब का व्यवसाय अपने पिता पिता विट्ठल माल्या से विरासत में मिला था। माल्या शराब कारोबारी नहीं कहलाना चाहता था। माल्या ने देश के प्रतिष्ठित मैनेजमेंट संस्थानों से लोगों को चुना और इस शराब उद्योग को एक कार्पोरेट रूप दिया।
बिना सोचे-समझे झटके में नई कंपनियां खरीदने माल्या की आदत हो गई थी। माल्या ने किंगफिशर एयरलाइन इस उद्देश्य से शुरू कि उसे शराब कारोबारी नहीं बल्कि शराब उद्योगपति समझा जाए। यही कारण है कि वह अपनी एयरलाइन में यात्रियों को वे सारे सुख देना चाहता था, जो दूसरी कंपनियां उस समय सोचती भी नहीं थी।
किंगफिशर को बड़ा ब्रांड बनाने का सपना : 2005 विजय माल्या ने किंगफिशर एयरलाइंस शुरुआत इस सपने को लेकर की थी कि वह एक दिन इसे एक बड़ा ब्रांड बनाएगा। इसी ख्वाब को पूरा करने के लिए वर्ष 2007 में माल्या ने पहली लो कॉस्ट एविएशन कंपनी एयर डेक्कन का 30 करोड़ डॉलर यानी 1,200 करोड़ रुपए (2007 में 1 डॉलर लगभग 40 रुपए के बराबर था) का भारी-भरकम खर्च कर टेकओवर किया।
शुरू में हुआ लाभ, लेकिन : एयर डेक्कन को टेकओवर करने में माल्या को तत्काल फायदा तो हुआ और 2011 में किंगफिशर देश की दूसरी बड़ी एविएशन कंपनी भी बन गई, लेकिन कंपनी एयर डेक्कन को खरीदने के पीछे के लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाई और बढ़ती फ्यूल कॉस्ट ने ऑपरेशन लागत बढ़ा दी। इससे कंपनी को बड़ा घाटा हुआ। माल्या के लिए यह सौदा सबसे बड़ी गलती बना और पांच वर्ष के अंदर ही किंगफिशर एयरलाइंस बंद होने के साथ ही पूरा कारोबारी साम्राज्य समाप्त हो गया।
उलटी पड़ी रणनीति : माल्या ने एयर डेक्कन के साथ गोद लिए हुए बेटे की तरह व्यवहार किया। विलय के बाद माल्या सोचा था कि एयर डेक्कन के ग्राहक किंगफिशर की ओर रुख करेंगे, लेकिन हुआ इसका उलट। आखिर में एयर डेक्कन (किंगफिशर रेड) के ग्राहक सस्ती एयरलाइंस की ओर रुख करने लगे।
एयरलाइंस की तरफ यात्रियों को आकर्षित करने के लिए माल्या ने विदेशों से मंहगी पत्र-पत्रिकाएं मंगवाईं, लेकिन वे गोदामों से निकल ही नहीं पाईं। इसका असर प्रॉफिट पर पढ़ा और इसके लिए समय-समय माल्या को कर्ज लेना पड़ा। यह घाटा इतना हो गया कि अक्टूबर 2012 में किंगफिशर एयरलाइंस बंद हो गई और उसका कारोबारी साम्राज्य खत्म होने की कगार पर आ गया। यह कर्ज की रकम इतनी बढ़ गई कि उसे देश छोड़कर भागना पड़ा।