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क्‍या होती है Genome Sequencing, कैसे होती है कोरोना वैरिएंट की पहचान, क्‍या BF 7 वैरिएंट में भी आएगी काम?

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नवीन रांगियाल

चीन में कोरोना ने कहर मचा रखा है, वहीं अमेरिका और ब्राजील में इसके संक्रमण की रफ्तार बढ़ गई है। जबकि भारत में ऐहतियात के तौर पर कोविड मॉकड्रिल की प्रैक्‍टिस की जा रही है। ऐसे में इन दिनों मेडिकल की दुनिया में जीनोम सिक्‍वेंसिंग की भी खूब चर्चा है। क्‍या होती है जीनोम सिक्‍वेंसिंग, कैसे काम करती है और वायरस के दौर में इसका क्‍या महत्‍व है। क्‍या जीनोम सिक्‍वेंसिंग की मदद से वायरस के बारे में पता लगाया जा सकता है। अगर ऐसा है तो क्‍या है वो तकनीक।

आइए जानते हैं कोरोना वायरस को पहचानने और उसके बारे में पता लगाने में जीनोम सिक्‍वेंसिंग की क्‍या और कितनी अहम भूमिका है।

आखिर क्‍या होते हैं जीनोम?
सवाल उठता है कि आखिर जीनोम क्‍या होते हैं। दरअसल में, मनुष्य  कोशिकाओं के भीतर आनुवंशिक पदार्थ होता है, जिसे डीएनए, आरएनए भी कहा जाता है। इन सभी पदार्थों के ग्रूप या समूह को जीनोम कहा जाता है। वहीं स्ट्रेन को विज्ञान की भाषा में जेनेटिक वैरिएंट कहते हैं। इनकी क्षमता और रिएक्‍शन अलग-अलग होते हैं।

कैसे म्‍यूटेट होकर वायरस खुद को जिंदा रखता है?
दरअसल, वायरस का एक स्‍वभाव होता है खुद को जिंदा रखना। वो लंबे समय तक जिंदा और सक्रिय रह सके इसके लिए वो लगातार अपने अंदर बदलाव करता रहता है। वो खुद को प्रभाव में रखने के लिए अपनी जेनेटिक संरचना में समय- समय पर बदलाव लाता रहता है। यह उसके सर्वाइव करने का एक तरीका है। ठीक उसी तरह जैसे हम मनुष्‍य बेहतर बनने के लिए लगातार अपने भीतर बदलाव करते हैं। या खुद को सक्षम बनाने के लिए लगातार कोशिश करते रहते हैं। जैसे हम भाषाएं सीखते हैं, कम्‍प्‍यूटर चलाना सीखते हैं, जो भी नई तकनीक आती है उसे ऑपरेट करना सीखते हैं ताकि हम उस दौर में एक सक्षम और योग्‍य मनुष्‍य कहलाएं, ठीक इसी तरह वायरस अपने आप को सक्षम, सक्रिय और जिंदा रखने के लिए अपने आप  को एक तरह से अपडेट करते हैं। जैसे मानव का जिंदा रहने का फार्मूला है ठीक वही फार्मूला वायरस भी अपनाते हैं। इसी बदलाव को म्यूटेशन कहा जाता है।

क्‍या होती है जीनोम सिक्‍वेंसिंग?
दरअसल, जीनोम सिक्वेंसिंग जिससे नए स्ट्रेन का पता लगाया जा सकता है। आसान भाषा में कहें तो जीनोम सीक्वेंसिंग एक तरह से किसी वायरस का बायोडाटा होता है। जिसमें सारी डिटेल होती है, उसका पूरा रिकॉर्ड उसमें छुपा होता है। मसलन, कोई वायरस कैसा है, किस तरह दिखता है और वो कैसे रिएक्‍ट करता है, कैसे हमला करता है, उसे मारने या उसके इलाज के लिए क्‍या किया जा सकता है आदि सारी जानकारी जीनोम से मिलती है। वायरस के ग्रूप को जीनोम कहा जाता है। जबकि वायरस के बारे में जानने और पहचानने के तरीके या तकनीक को जीनोम सीक्वेंसिंग कहा जाता है। ऐसे में इस वक्‍त जब वायरस संक्रमण का दौर चल रहा है, जीनोम सिक्‍वेंसिंग की भूमिका भी बहुत अहम हो गई है।
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कैसे होती है जीनोम सिक्वेंसिंग?
जहां तक सवाल है कि क्‍या होती है जीनोम सिक्‍वेंसिंग तो इस प्रक्रिया में संक्रमित लोगों का सैंपल लेकर जीनोम सिक्वेंसिंग के लिए लैब में भेजा जाता है। लैब में बेहद ताकतवर कंप्यूटर के जरिए वायरस की आनुवंशिक संरचना का पता लगाया जाता हैं। इस जांच में उसका जेनेटिक कोड निकल आता है और वैज्ञानिकों को ये समझने में मदद मिलती है कि वायरस में म्यूटेशन कहां पर हुआ। इसके साथ ही लैब में डीएनए एनालाइजर में वायरस के किसी भी स्ट्रेन की पहचान की जा सकती है। यानी कोरोना वायरस के डीएनए में किसी भी तरह का बदलाव हुआ तो डीएनए एनालाइजर मशीन में डिेडेक्‍ट हो जाता है। इसमें किसी भी अज्ञात म्यूटेशन की पहचान हो सकती है और उसी आधार पर इसका इलाज भी होता है।

ऐसे समझे जीनोम सिक्‍वेंसिंग की प्रोसेस
सबसे पहले पॉज़िटिव मरीज का सैम्पल GBRC की माइक्रोबायोलॉजी लैब में लाया जाता है, जहां बायो सेफ्टी कैबिनेट में पूरी सावधानी के साथ इसमें से RNA (Ribonucleic acid) एक्सट्रेक्ट किया जाता है।  इसमें एक घंटा लग जाता है।
बाद में RNA को रिवर्स ट्रांस्क्रिप्शन तकनीक की मदद से PCR लैब में ले जाकर उसमे से C-DNA यानि कॉम्प्लिमेंट्री DNA तैयार किया जाता है, क्योंकि कोई भी सिक़्वेन्सिंग स्टडी DNA पर ही हो सकती है। इसमें करीब 30 मिनट लगते हैं।
DNA के सैंपल को एम्पलिकोन लाइब्रेरी में ले जाकर उसको कई टुकड़ों में बांटकर उनके एम्पलिकोन तैयार किए जाते हैं, उन एम्पलिकोन को प्यूरीफाई करके उन्हें इमल्सीफायर PCR में मल्टीप्लाई किया जाता है। इस प्रक्रिया में करीब 2 -3 घंटे लगते हैं।
इन एम्पलिकोन को चिप में ट्रांसफर कर सिक्क्बेंसार में रखा जाता है, जिसके बाद सिक्वेंसिंग डाटा प्राप्त होता है, जिसको अनलाइज़ करके उस सैंपल का जीनोम पैटर्न तैयार किया जाता है। इस प्रक्रिया में कुल 15 से 16 घंटे लगते हैं।

कया है और कैसे होती है जीनोम सिक्‍वेंसिंग?
  • सिक्वेंसिंग के जरिए डॉक्टर पता लगा लेते हैं कि कोरोना का नया वेरिएंट कौन सा है।
  • फिलहाल नए वेरिएंट ओमिक्रॉन का पता लगाने के लिए जीनोम सिक्वेंसिंग की जा रही है।
  • जीनोम में वायरस का पूरा बायोडाटा छुपा होता है।
  • GBRC की माइक्रोबायोलॉजी लैब में लाया जाता है मरीज का सैंपल।
  • लैब में डीएनए एनालाइजर में वायरस के किसी भी स्ट्रेन की पहचान की जा सकती है
  • जीनोम सिक्‍वेंसिंग से पता चलता है कैसा वायरस है, कैसा दिखता है और वो कैसे रिएक्‍ट और कैसे हमला करता है
  • सिक्वेंसिंग के जरिए डॉक्टर पता लगा लेते हैं कि कोरोना का नया वेरिएंट कौन सा है
देश में कहां है जीनोम सिक्‍वेंसिंग की सुविधा?
गुजरात के बायोटेक्नोलॉजी रिसर्च सेंटर वैज्ञानिकों ने देश में पहली बार कोरोना वायरस के पूरे जीनोम सिक्वेंस को खोजा था। वैसे भारत में जीनोम सिक्वेंसिंग की सुविधा बहुत ज्‍यादा नहीं है। लेकिन देश में इसके लिए इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी (नई दिल्ली), सीएसआईआर-आर्कियोलॉजी फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (हैदराबाद), डीबीटी - इंस्टीट्यूट ऑफ लाइफ साइंसेज (भुवनेश्वर), डीबीटी-इन स्टेम-एनसीबीएस (बेंगलुरु), डीबीटी - नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ बायोमेडिकल जीनोमिक्स (NIBMG), (कल्याणी, पश्चिम बंगाल), आईसीएमआर- नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (पुणे) जैसे चुनिंदा प्रयोगशालाएं हैं।

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