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मोहम्मद शमी एनर्जी ड्रिंक विवाद : रोजा तोड़ने पर भड़के मौलाना, इस पर क्या कहता है मुस्लिम समुदाय?

शमी का एनर्जी ड्रिंक विवाद खेल और मजहब के बीच संतुलन की चुनौती को उजागर करता है। मौलाना का बयान कट्टरता को बढ़ावा दे सकता है। शमी के समर्थन में उठी आवाजें व्यक्तिगत स्वतंत्रता और राष्ट्रीय कर्तव्य की

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हमें फॉलो करें मोहम्मद शमी एनर्जी ड्रिंक विवाद : रोजा तोड़ने पर भड़के मौलाना, इस पर क्या कहता है मुस्लिम समुदाय?

वेबदुनिया न्यूज डेस्क

, गुरुवार, 6 मार्च 2025 (17:09 IST)
Mohammed Shami Roza Controversy : दुबई में खेले जा रहे ICC चैंपियंस ट्रॉफी 2025 के सेमीफाइनल में भारत ने ऑस्ट्रेलिया को हराकर फाइनल में जगह बनाई। जीत में तेज गेंदबाज मोहम्मद शमी की महत्यपूर्ण भूमिका रही, जिन्होंने 10 ओवर में 48 रन देकर 3 विकेट लिए। लेकिन उनकी इस शानदार उपलब्धि से ज्यादा चर्चा उनकी एक तस्वीर को लेकर हो रही है। इसमें वे मैदान पर एनर्जी ड्रिंक पीते नजर आए। रमजान का महीना होने के कारण इस तस्वीर ने एक नया विवाद खड़ा कर दिया। ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने इसे 'गुनाह' करार दिया, वहीं आम लोग और कुछ मुस्लिम रहनुमा इसके पक्ष-विपक्ष में बंट गए। यह घटना खेल और मजहब के बीच संतुलन पर एक गहरे सवाल को जन्म देती है।
 

मौलाना का बयान और उसका आधार : मौलाना शहाबुद्दीन ने शमी के रोजा न रखने को लेकर कड़ा रुख अपनाया। उनका कहना है कि रोजा इस्लाम के अनिवार्य कर्तव्यों में से एक है। अगर कोई स्वस्थ पुरुष रोजा नहीं रखता तो वह बड़ा अपराधी है। शमी ने मैच के दौरान एनर्जी ड्रिंक पीकर गलत संदेश दिया। वे शरीयत की नजर में मुजरिम हैं।
 
मौलाना का तर्क यह है कि शमी अगर खेल रहे हैं तो वे स्वस्थ हैं और स्वस्थ होने के बावजूद रोजा न रखना इस्लामिक नियमों का उल्लंघन है। उनके इस बयान ने सोशल मीडिया पर तीखी बहस छेड़ दी। कुछ लोगों ने इसे सही ठहराया, तो कुछ ने इसे अतिवाद करार दिया।
 
मौलाना के इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई। कुछ लोगों ने कहा, 'शमी एक खिलाड़ी हैं, उन्हें मैदान पर हाइड्रेट रहना जरूरी है। इसमें गलत क्या है?' तो कुछ ने मौलाना का समर्थन करते हुए कहा कि 'रमजान में रोज़ा तोड़ना गलत है, चाहे कोई क्रिकेटर ही क्यों न हो।' लेकिन सवाल ये है - क्या शमी का ऐसा करना वाकई गुनाह था? या फिर ये सिर्फ एक खेल का हिस्सा था?
 
हमने इस बारे में आम मुस्लिम समुदाय और कुछ जानकारों से बात की। एक शख्स ने कहा कि 'अगर कोई बीमार है या मुश्किल हालात में है, तो शरीयत में रोज़ा छोड़ने की इजाजत है। शमी गर्मी में 10 ओवर गेंदबाजी कर रहे थे, शायद उनकी मजबूरी थी।' वहीं एक मौलवी ने कहा कि 'अगर शमी स्वस्थ थे, तो रोज़ा रखना उनका फर्ज था। लेकिन ये उनका निजी मामला है, इसे इतना तूल देना ठीक नहीं।
 

शमी का पक्ष और समर्थन : शमी ने अभी तक इस विवाद पर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है, लेकिन उनके समर्थकों का कहना है कि एक खिलाड़ी के लिए मैदान पर प्रदर्शन सबसे जरूरी है। NCP-SCP विधायक रोहित पवार ने कहा, अगर शमी को लगता है कि रोजा रखने से उनकी परफॉर्मेंस प्रभावित होगी तो वे देश के लिए खेलते हुए इसे छोड़ सकते हैं। वे कट्टर भारतीय हैं और हर मुस्लिम उन पर गर्व करता है। खेल में धर्म को नहीं लाना चाहिए।" इसी तरह, शिया मौलवी यासूब अब्बास ने मौलाना के बयान को सस्ती लोकप्रियता का हथकंडा बताया और कहा कि रोजा न रखना निजी मामला है। शमी के भाई मोहम्मद जैद ने भी कहा कि यात्रा के दौरान रोजा छोड़ने की शरीयत में इजाजत है। शमी देश के लिए खेल रहे हैं, इसमें गलत क्या है? 
 
मुस्लिम समुदाय और आम लोगों की राय : इस मामले में मुस्लिम समुदाय के भीतर भी मतभेद उभरे हैं। कुछ का मानना है कि रमजान में रोजा तोड़ना गलत है, खासकर जब शमी जैसे प्रभावशाली शख्स ऐसा करें। एक सोशल मीडिया यूजर ने लिखा, "फुटबॉलर 90 मिनट तक रोजा रखकर खेलते हैं, शमी भी ऐसा कर सकते थे।" वहीं, दूसरों का कहना है कि शरीयत में बीमारी या कठिन परिस्थितियों में रोजा छोड़ने की छूट है। एक विद्वान ने कहा कि 10 ओवर गेंदबाजी करना आसान नहीं, खासकर दुबई की गर्मी में। यह मजबूरी हो सकती है।" आम लोगों में भी बहस जारी है - कुछ इसे निजी आजादी मानते हैं, तो कुछ इसे धार्मिक नियमों का उल्लंघन।
 
खेल और मजहब का टकराव : यह पहली बार नहीं है जब खेल और मजहब के बीच टकराव सामने आया हो। पहले भी राशिद खान, मोईन अली और हाशिम अमला जैसे खिलाड़ियों ने रमजान के दौरान खेलते हुए अपने फैसले को लेकर चर्चा बटोरी है। हाशिम अमला ने रोजा रखकर खेला, जबकि कई खिलाड़ियों ने परिस्थितियों के अनुसार इसे छोड़ा। शमी का मामला इसलिए बड़ा हो गया क्योंकि वे भारत जैसे देश से हैं, जहां खेल को भावनाओं और पहचान से जोड़ा जाता है। सवाल यह है - क्या एक खिलाड़ी का पहला कर्तव्य देश के लिए प्रदर्शन है, या अपने मजहब के नियमों का पालन?
क्या है सही? इस विवाद के दो पहलू हैं। पहला, धार्मिक नियमों की कठोरता। मौलाना का बयान इस्लामिक शरीयत पर आधारित है, लेकिन यह आधुनिक संदर्भों को नजरअंदाज करता प्रतीत होता है। दूसरा, खेल की मांगें। क्रिकेट जैसे खेल में शारीरिक और मानसिक मजबूती जरूरी है, और निर्जलीकरण (dehydration) खिलाड़ी के लिए खतरनाक हो सकता है। शमी ने भारत को जीत दिलाई, और यह उनके पेशेवर कर्तव्य का हिस्सा था। शरीयत में भी यात्रा या स्वास्थ्य के आधार पर छूट का प्रावधान है, जिसे मौलाना ने अनदेखा किया। यह विवाद यह भी दर्शाता है कि सार्वजनिक हस्तियों पर समाज की अपेक्षाएं कितनी जटिल हो सकती हैं।



मोहम्मद शमी का एनर्जी ड्रिंक विवाद खेल और मजहब के बीच संतुलन की चुनौती को उजागर करता है। मौलाना का बयान कट्टरता को बढ़ावा दे सकता है, वहीं शमी के समर्थन में उठी आवाजें व्यक्तिगत स्वतंत्रता और राष्ट्रीय कर्तव्य की बात करती हैं। सच यह है कि यह मामला निजी फैसले का है, जिसे अनावश्यक रूप से तूल दिया गया। शमी ने देश के लिए जो किया, वह उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। समाज को चाहिए कि वह उनकी उपलब्धियों पर गर्व करे, न कि उनकी निजी पसंद को निशाना बनाए। क्या आप सहमत हैं? अपनी राय जरूर साझा करें। Edited by : Sudhir Sharma 

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