पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे चुके नवजोत सिंह सिद्धू का अगला कदम क्या होगा इसका अनुमान लगाना अभी तो कठिन है। लेकिन, उन्होंने पंजाब कांग्रेस को उस दोराहे पर लाकर जरूर खड़ा कर दिया है, जहां उसके लिए कोई रास्ता ही नहीं सूझ रहा है। पंजाब में सिद्धू के साथ उनके कुछ समर्थकों ने भी इस्तीफे का दांव चल दिया है।
हालांकि नवजोत सिद्धू का इस्तीफा तो मंजूर नहीं हुआ है, लेकिन आलाकमान ने गेंद पंजाब कांग्रेस के कोर्ट में ही डाल दी है कि वे अपने स्तर पर ही इस पूरे मामले को निपटाएं। इस बीच, सिद्धू भी आरपार की लड़ाई के लिए तैयार हो गए हैं। उनका कहना है कि अंतिम समय तक लड़ाई जारी रहेगी। इस मामले में किसी तरह का समझौता नहीं किया जाएगा।
इस पूरे प्रकरण में यह भी ध्यान रखने की बात है कि सिद्धू ने 40 विधायकों के साथ आप में जाने की परोक्ष रूप से धमकी दी थी, इसके बाद ही कैप्टन अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटाया गया था। हालांकि आम आदमी पार्टी ने भी सिद्धू की यह कहकर आलोचना की है कि वे स्वार्थी हैं और एक दलित व्यक्ति को मुख्यमंत्री के रूप में नहीं देखना चाहते हैं।
अब भले ही आम आदमी पार्टी सिद्धू को पार्टी में शामिल न भी करे तो भी सिद्धू ने उनका काम तो कर ही दिया है। क्योंकि ताजा घटनाक्रम से पंजाब कांग्रेस की बुरी तरह भद पिटी है। एंटी इन्कमबेंसी के साथ ही इस घटनाक्रम का भी आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के वोटों पर असर जरूर पड़ेगा। यदि कांग्रेस के थोड़े वोट भी खिसकते हैं तो इसका सीधा फायदा आप को ही मिलने वाला है।
पिछले दिनों सी-वोटर का एक सर्वे भी आया था इसमें आम आदमी पार्टी को सबसे ज्यादा 51 से 57 सीटें मिलने का अनुमान जताया गया था, वहीं कांग्रेस को 38 से 46 सीटें मिलने की उम्मीद जताई थी। कैप्टन अमरिंदर की नाराजी और सिद्धू की हरकत के बाद संभव है कांग्रेस की सीटों और वोटों में और गिरावट आ जाए। पंजाब की 117 सदस्यीय विधानसभा में सरकार बनाने के लिए 59 सीटों की दरकार होती है।
इस सर्वेक्षण में आम आदमी पार्टी को 35.1 फीसदी वोट मिलने का अनुमान जताया गया है, वहीं कांग्रेस 28.5 फीसदी वोटों के आसपास सिमटती दिख रही है। वहीं, अकाली दल को 21.8 फीसदी वोट मिल सकते हैं। ऐसे में कांग्रेस नेतृत्व का रुख और आम आदमी पार्टी के बयान से यह स्पष्ट नजर आ रहा है कि सिद्धू आने वाले विधानसभा चुनाव के बाद न 'घर' के रहेंगे और न ही 'घाट' के।
हालांकि कुछ समय पहले अरविन्द केजरीवाल ने यह भी कहा था कि यदि नवजोत सिद्धू आप में आते हैं तो उनका स्वागत है। उसके बाद ही कांग्रेस ने उन्हें पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया था। आप द्वारा पहले सिद्धू से करीबी दिखाना और फिर उन्हें झटक देना बताता है कि आप ने तगड़ा दांव चला है। अब यदि सिद्धू आप में आएं या न आएं, दोनों ही स्थिति में फायदा तो केजरीवाल एंड पार्टी का ही होगा।
दूसरी ओर, नवजोत सिद्धू और आप सांसद भगवंत मान की मुलाकात भी इन दिनों चर्चा में है। माना जा रहा है कि दोनों पंजाब में किसी नए राजनीतिक समीकरण को जन्म दे सकते हैं। ये दोनों ही नेता अपनी-अपनी पार्टियों से नाखुश हैं। आने वाले समय में पंजाब की राजनीति कौनसी करवट लेगी, इसकी झलक केजरीवाल के पंजाब दौरे के बाद भी दिखाई दे सकती है।