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F-35A बनाम Su-57E: भारत की रक्षा रणनीति के लिए कौन सा स्टील्थ फाइटर है बेहतर?

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वेबदुनिया न्यूज डेस्क

, गुरुवार, 26 जून 2025 (12:21 IST)
भारत, जो अपनी रक्षा क्षमताओं को मजबूत करने और क्षेत्रीय चुनौतियों का सामना करने के लिए तेजी से कदम उठा रहा है, अब एक महत्वपूर्ण रणनीतिक निर्णय के मोड़ पर खड़ा है। रूस ने भारत को अपने पांचवीं पीढ़ी के स्टील्थ फाइटर जेट Su-57E के साथ 100% तकनीकी हस्तांतरण और भारत में निर्माण का प्रस्ताव दिया है, जबकि अमेरिका अपने अत्याधुनिक F-35A स्टील्थ फाइटर जेट की पेशकश कर रहा है। यह प्रस्ताव भारत के लिए केवल एक रक्षा सौदा नहीं, बल्कि भविष्य की रणनीति, आत्मनिर्भरता, और वैश्विक रक्षा बाजार में उसकी स्थिति को परिभाषित करने वाला कदम हो सकता है। जानते हैं 5 पॉइंट में दोनों विमानों की तुलना, तकनीकी हस्तांतरण, भारत में निर्माण की संभावनाएं, और भारत की रणनीतिक आवश्यकताओं का विश्लेषण।

F-35A की ताकत: उन्नत स्टील्थ: F-35A की ऑल-एस्पेक्ट स्टील्थ तकनीक इसे रडार के लिए लगभग "अदृश्य" बनाती है, जो इसे जमीनी हमलों और विवादित हवाई क्षेत्र में प्रवेश के लिए आदर्श बनाता है।

सेंसर फ्यूजन और नेटवर्क वॉरफेयर: F-35A का AN/APG-81 रडार और सेंसर फ्यूजन सिस्टम इसे इलेक्ट्रॉनिक युद्ध, टोही, और नेटवर्क-सेंट्रिक युद्ध में श्रेष्ठ बनाता है।

वैश्विक स्वीकार्यता: NATO और जापान, ऑस्ट्रेलिया जैसे देश इसे बड़े पैमाने पर उपयोग करते हैं, जिससे इसका उत्पादन और लॉजिस्टिक्स सपोर्ट विश्वसनीय है।

F-35A की कमजोरियां: उच्च लागत: प्रति यूनिट 80-100 मिलियन डॉलर की लागत, साथ ही मेंटेनेंस, अपग्रेड, और लॉजिस्टिक्स की अतिरिक्त लागत इसे महंगा बनाती है।

सीमित तकनीकी हस्तांतरण: अमेरिका F-35A की तकनीक साझा नहीं करता, जिससे भारत केवल खरीदार बनकर रह जाएगा।

सीमित मैन्यूवरेबिलिटी: हवा-से-हवा युद्ध (डॉगफाइट) में इसकी क्षमता Su-57E की तुलना में कम है।
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Su-57E की ताकत: लागत-प्रभावी: भारत में निर्मित होने पर इसकी अनुमानित लागत 60-75 मिलियन डॉलर प्रति यूनिट हो सकती है, जो F-35A से काफी कम है।

उच्च मैन्यूवरेबिलिटी: थ्रस्ट वेक्टरिंग और सुपरक्रूज़ क्षमता इसे हवाई युद्ध में बेहतर बनाती है।

तकनीकी हस्तांतरण: रूस ने 100% तकनीकी हस्तांतरण और भारत में निर्माण का प्रस्ताव दिया है, जो भारत की आत्मनिर्भरता को बढ़ाएगा।

भारतीय हथियारों का एकीकरण: Su-57E में भारतीय रडार (उत्तम या विरुपाक्ष) और हथियारों को एकीकृत करने की संभावना है।

Su-57E की कमजोरियां: सीमित स्टील्थ: इसका रडार क्रॉस-सेक्शन F-35A की तुलना में अधिक है, जिससे यह कुछ रडारों द्वारा पकड़ा जा सकता है।

उत्पादन की गति: रूस ने अभी तक सीमित संख्या में Su-57 का उत्पादन किया है, और भारत में तेजी से उत्पादन शुरू करने की क्षमता पर सवाल उठते हैं।

रडार की सीमाएं: N036 बेल्का रडार F-35 के AN/APG-81 की तुलना में कम उन्नत है। भारत ने इसे भारतीय उत्तम या विरुपाक्ष रडार से बदलने की शर्त रखी है।

2. तकनीकी हस्तांतरण और भारत में निर्माण
F-35A: अमेरिका ने F-35A के लिए कोई तकनीकी हस्तांतरण या भारत में निर्माण का प्रस्ताव नहीं दिया है। इसका मतलब है कि भारत को इसकी आपूर्ति, रखरखाव, और अपग्रेड के लिए पूरी तरह अमेरिका पर निर्भर रहना होगा। इसके अतिरिक्त, F-35A के संचालन के लिए नए लॉजिस्टिक्स, प्रशिक्षण, और बुनियादी ढांचे की आवश्यकता होगी, जो लागत और समय दोनों बढ़ाएगा।

Su-57E: रूस का प्रस्ताव भारत के लिए गेम-चेंजर हो सकता है। 100% तकनीकी हस्तांतरण, सॉफ्टवेयर सोर्स कोड तक पहुंच, और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) के नासिक प्लांट में निर्माण की पेशकश भारत को न केवल खरीदार, बल्कि निर्माता बनने का अवसर देती है। HAL का Su-30MKI निर्माण में अनुभव इस प्रक्रिया को और सुगम बनाएगा। यह भारत को वैश्विक रक्षा बाजार में एक निर्यातक के रूप में स्थापित कर सकता है, विशेष रूप से दक्षिण-पूर्व एशिया, अफ्रीका, और लैटिन अमेरिका जैसे क्षेत्रों में।
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3. भारत की IACCS प्रणाली और रणनीतिक प्रभाव
भारत की इंटीग्रेटेड एयर कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम (IACCS) ने हाल ही में त्रिवेंद्रम हवाई क्षेत्र में ब्रिटिश रॉयल नेवी के F-35B को डिटेक्ट और ट्रैक करके अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया। यह घटना भारत की उन्नत रडार तकनीक और निगरानी क्षमताओं को दर्शाती है, जिसने "अदृश्य" माने जाने वाले F-35 को पकड़ लिया। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भी IACCS ने पाकिस्तानी हवाई घुसपैठ को नाकाम किया था। यह भारत की रक्षा प्रणाली की मजबूती को दर्शाता है और दोनों विमानों की स्टील्थ क्षमताओं पर सवाल उठाता है। विशेष रूप से, Su-57E की कम प्रभावी स्टील्थ तकनीक को भारतीय रडार जैसे उत्तम या विरुपाक्ष के साथ अपग्रेड करने की मांग भारत की रणनीतिक सोच को दर्शाती है।

4. भारत की रणनीतिक आवश्यकताएं
भारत का सामना क्षेत्रीय शक्तियों जैसे चीन (J-20 स्टील्थ जेट) और पाकिस्तान (J-35A की संभावित खरीद) से है। इन खतरों का मुकाबला करने के लिए भारत को निम्नलिखित की आवश्यकता है:

तात्कालिक तैनाती: AMCA (एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट) का प्रोटोटाइप 2028 तक और उत्पादन 2030 के दशक में शुरू होने की उम्मीद है। तब तक भारत को एक अंतरिम समाधान की आवश्यकता है, जिसमें Su-57E तेजी से तैनाती का विकल्प प्रदान करता है।

आत्मनिर्भरता: भारत की "आत्मनिर्भर भारत" नीति रक्षा क्षेत्र में स्वदेशी तकनीक और उत्पादन पर जोर देती है। Su-57E का प्रस्ताव इस नीति के अनुरूप है, क्योंकि यह भारत को तकनीकी संप्रभुता और निर्यात की संभावना देता है।

लागत-प्रभावी समाधान: F-35A की उच्च लागत और रखरखाव खर्च भारत के रक्षा बजट पर दबाव डाल सकते हैं, जबकि Su-57E की कम लागत और स्थानीय उत्पादन इसे अधिक आकर्षक बनाता है।

भारतीय हथियारों का एकीकरण: भारत चाहता है कि उसके फाइटर जेट्स में स्वदेशी रडार (उत्तम/विरुपाक्ष) और हथियार (जैसे ब्रह्मोस) एकीकृत हों। Su-57E इस लिहाज से अधिक लचीलापन प्रदान करता है।

5. रणनीतिक और कूटनीतिक विचार
रूस के साथ संबंध: भारत का रूस के साथ लंबे समय से रक्षा सहयोग रहा है, जिसमें Su-30MKI और S-400 जैसे सिस्टम शामिल हैं। Su-57E का चयन इस साझेदारी को और मजबूत करेगा।

अमेरिका के साथ संबंध: QUAD और अन्य रणनीतिक गठबंधनों के कारण अमेरिका के साथ सहयोग महत्वपूर्ण है, लेकिन F-35A की खरीद भारत को तकनीकी रूप से अमेरिका पर निर्भर बना सकती है।

चीन और पाकिस्तान का खतरा: पाकिस्तान को चीन से J-35A मिलने की संभावना भारत के लिए चिंता का विषय है। विशेषज्ञों का सुझाव है कि AMCA तैयार होने तक Su-57E एक बेहतर अंतरिम समाधान हो सकता है।

भारत के सामने एक रणनीतिक दुविधा है: तात्कालिक रक्षा जरूरतों को पूरा करने के लिए F-35A जैसे उन्नत लेकिन महंगे और सीमित नियंत्रण वाले जेट को चुनना, या Su-57E के साथ दीर्घकालिक आत्मनिर्भरता और तकनीकी संप्रभुता की दिशा में कदम उठाना। F-35A की स्टील्थ और सेंसर तकनीक इसे तकनीकी रूप से बेहतर बनाती है, लेकिन इसकी उच्च लागत, तकनीकी हस्तांतरण की कमी, और भारत की IACCS द्वारा इसकी "अदृश्यता" को भेदने की घटना इसके आकर्षण को कम करती है। दूसरी ओर, Su-57E की पेशकश भारत को न केवल एक उन्नत फाइटर जेट देती है, बल्कि तकनीकी स्वतंत्रता, लागत-प्रभावी उत्पादन, और वैश्विक रक्षा बाजार में एक निर्यातक के रूप में स्थापित होने का अवसर प्रदान करती है।

सिफारिश: भारत को Su-57E के साथ आगे बढ़ना चाहिए, बशर्ते रूस भारतीय रडार और हथियारों के एकीकरण की शर्तों को स्वीकार करे। यह सौदा न केवल तात्कालिक रक्षा जरूरतों को पूरा करेगा, बल्कि भारत को AMCA परियोजना के पूर्ण होने तक एक मजबूत रक्षा ढांचा प्रदान करेगा। साथ ही, यह भारत की "मेक इन इंडिया" और "आत्मनिर्भर भारत" नीतियों को बढ़ावा देगा, जिससे भारत वैश्विक रक्षा बाजार में एक निर्माता और निर्यातक के रूप में उभरेगा।

भारत को AMCA परियोजना पर तेजी से काम करना चाहिए, क्योंकि यह दीर्घकालिक आत्मनिर्भरता का आधार बनेगा। तब तक, Su-57E का चयन भारत को क्षेत्रीय खतरों (चीन और पाकिस्तान) से निपटने और रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करने में सक्षम बनाएगा। यह निर्णय भारत को केवल एक ग्राहक से कहीं आगे ले जाएगा—एक ऐसी शक्ति जो अपनी शर्तों पर वैश्विक रक्षा परिदृश्य को आकार दे सकती है।
Edited By: Navin Rangiyal

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