कौन बनेगा 18वीं लोकसभा का अध्यक्ष, अब भी असमंजस बरकरार
भाजपा ने रक्षामंत्री राजनाथ सिंह को दिया आम सहमति बनाने का जिम्मा
Election of the 18th Lok Sabha Speaker: 18वीं लोकसभा के अध्यक्ष पद के लिए अभी किसी भी नाम पर मुहर नहीं लग पाई है। हालांकि इसकी दौड़ में 2 नाम सबसे ऊपर चल रहे हैं। पहला नाम निवर्तमान लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला का है, जबकि दूसरा नाम आंध्र प्रदेश से भाजपा की नेता दग्गुबती पुरंदेश्वरी का नाम भी चल रहा है। दरअसल, भाजपा स्पीकर का पद अपने किसी सहयोगी दल को देना नहीं चाहती। लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव 26 जून को हो सकता है।
हालांकि केन्द्र में सत्तारूढ़ भाजपा अपने सहयोगियों को लोकसभा उपाध्यक्ष का पद देने के लिए तैयार है। सबसे बड़ी सहयोगी पार्टी होने के नाते उपाध्यक्ष पद पर चंद्रबाबू की टीडीपी का दावा सबसे मजबूत है। दूसरी ओर, विपक्ष की नजर भी लोकसभा के उपाध्यक्ष पद पर है। भाजपा ने अपने वरिष्ठ नेता और रक्षामंत्री राजनाथ सिंह को अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पद पर आम सहमति बनाने का जिम्मा सौंपा है। राजनाथ एनडीए के सहयोगी दलों के साथ ही विपक्ष के नेताओं से भी मिलेंगे। दरअसल, एनडीए की सदस्य तेलुगू देशम पार्टी की भी लोकसभा अध्यक्ष पद पर नजर है।
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दौड़ में बिरला सबसे आगे : अध्यक्ष पद के लिए भाजपा यूं तो ओम बिरला को ही लोकसभा अध्यक्ष के रूप में दोहराने के पक्ष में हैं, यदि एनडीए सहयोगियों से बात नहीं बनती है तो डी. पुरंदेश्वरी का नाम भी आगे किया जा सकता है। पुरंदेश्वरी के नाम पर टीडीपी मुखिया चंद्रबाबू नायडू को भी आपत्ति नहीं होगी। क्योंकि पुरंदेश्वरी नायडू की पत्नी की बहन और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री एनटी रामाराव की बेटी हैं। हालांकि भाजपा के लिए बिरला ही पहली पसंद हैं।
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कैसे चुना जाता है स्पीकर : स्पीकर के चुनाव से पहले लोकसभा के सबसे वरिष्ठ संसद को प्रोटेम स्पीकर बनाया जाता है। प्रोटेम स्पीकर की देखरेख में ही लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव होता है। यदि एक से ज्यादा उम्मीदवार हैं तो चुनाव होता है, अन्यथा लोकसभा निर्विरोध भी चुना जा सकता है। आम तौर पर लोकसभा चुनाव का कार्यकाल उसके चुनाव से लेकर अगले लोकसभा अध्यक्ष के चयन तक होता है। आम तौर पर सत्तारूढ़ दल का सांसद ही लोकसभा का अध्यक्ष चुना जाता है।
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क्या हैं लोकसभा अध्यक्ष के अधिकार : लोकसभा अध्यक्ष का पद संवैधानिक होता है और वह सदन का सबसे प्रमुख व्यक्ति होता है। सदन में लोकसभा अध्यक्ष की मंजूरी के बिना कुछ भी नहीं हो सकता। सदन में मर्यादा और व्यवस्था बनाए रखने का जिम्मा स्पीकर का ही होता है। कोई बिल इकोनॉमिक बिल है या नहीं, इस पर अंतिम निर्णय स्पीकर का ही होता है। इस निर्णय को अदालत में भी चुनौती नहीं दी जा सकती। सदन की मर्यादा का उल्लंघन करने वाले सांसदों को स्पीकर निलंबित भी कर सकते हैं।
आमतौर लोकसभा अध्यक्ष सत्तारूढ़ दल का ही होता है। लेकिन, अटलजी के कार्यकाल में टीडीपी के जीएमसी बालयोगी एवं शिवसेना के मनोहर जोशी भी स्पीकर के पद पर रह चुके हैं। जब सदन में बहुमत साबित करने की बात आती है या फिर दलबदल कानून लागू होता है तो अध्यक्ष की भूमिका काफी अहम हो जाती है। सांसदों के पाला बदलने की स्थिति में उनकी अयोग्यता पर फैसला लेने का अधिकार अध्यक्ष को ही होता है। यदि अध्यक्ष सरकार समर्थक नहीं होगा तो सत्तारूढ़ दल को नुकसान हो सकता है।
Edited by: Vrijendra Singh Jhala