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केन्द्र सरकार से क्यों नाराज हैं CJI बीआर गवई? इसी माह है रिटायरमेंट

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वेबदुनिया न्यूज डेस्क

, मंगलवार, 4 नवंबर 2025 (15:27 IST)
what is Tribunal Reforms Act: सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और विनोद चंद्रन की पीठ ने केन्द्र सरकार की उस अर्जी पर नाराजगी जाहिर की जिसमें एक मामले को बड़ी पीठ को भेजने का निर्देश देने का अनुरोध किया था। गवई और चंद्रन की पीठ ने कहा कि लगता है सरकार मौजूदा बेंच से बचने की कोशिश कर रही है। सीजेआई गवई इसी माह 23 नवंबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं जस्टिस सूर्यकांत उनका स्थान लेंगे। 
 
क्या कहा पीठ ने : याचिकाकर्ता ने 'ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स एक्ट' की वैधता को चुनौती दी है। दरअसल, यह कानून देशभर के ट्रिब्यूनल्स के चेयरपर्सन और मेंबर्स के लिए एक जैसी सेवा शर्तें तय करता है। याचिकाकर्ताओं की दलीलें पूरी हो चुकी थीं। अटॉर्नी जनरल (AG) आर वेंकटरमणि अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता में व्यस्त थे, इसलिए सुनवाई टाली गई थी। पीठ ने कहा कि पिछली सुनवाई में आपने (अटॉर्नी जनरल) ने ये आपत्तियां नहीं उठाई थीं। पीठ ने कहा कि आप सुनवाई के बाद ये आपत्तियां नहीं उठा सकते। 
 
सीजेआई गवई ने कहा कि यह ऐसे समय हुआ है जब हमने एक पक्ष की पूरी बात सुन ली है और अटॉर्नी जनरल को निजी कारणों से छूट दी है। हालांकि अटॉर्नी जनरल वेंकटरमणी ने पीठ से अपील की कि वे बड़ी पीठ से सुनवाई करने के अनुरोध संबंधी केन्द्र की अर्जी को गलत नहीं समझे। उन्होंने कहा कि इस पहलू पर शुरुआती आपत्तियां पहले ही केन्द्र सरकार द्वारा दाखिल जवाब का हिस्सा हैं। 
 
कोर्ट ने उठाए सवाल : कोर्ट ने अपील की टाइमिंग पर भी सवाल उठाए। न्यायमूर्ति चंद्रन ने कहा कि इस मामले को बड़ी पीठ के पास भेजने का मुद्दा पहले नहीं उठाया गया था। अत: इतनी देरी से ऐसा ‍नहीं किया जा सकता। अटॉर्नी जनरल ने कहा कि यह अधिनियम काफी सोच-समझकर लाया गया है। हमारा कहना सिर्फ इतना ही है कि क्या इन मुद्दों की वजह से अधिनियम को सीधे रद्द कर देना चाहिए। 
   
क्या है ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स एक्ट : ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स एक्ट, 2021 भारत सरकार द्वारा लाया गया एक कानून है जिसका मुख्य उद्देश्य देश में विभिन्न ट्रिब्यूनलों (अधिकरणों) की संरचना, कार्यप्रणाली और सदस्यों की नियुक्ति से जुड़े नियमों में बदलाव लाना है। अधिनियम ने ट्रिब्यूनल के अध्यक्षों और सदस्यों की नियुक्ति और सेवा शर्तों से संबंधित नियमों में संशोधन किया। इसके मुताबिक अध्यक्ष और सदस्यों का कार्यकाल अब चार वर्ष का होगा। अध्यक्ष के लिए अधिकतम आयु 70 वर्ष और सदस्य के लिए 67 वर्ष निर्धारित की गई है। सदस्यों की नियुक्ति के लिए न्यूनतम आयु 50 वर्ष होनी चाहिए।
 
क्यों दी गई चुनौती : यह अधिनियम काफी विवादास्पद रहा है और इसके कई प्रावधानों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। आलोचकों का तर्क है कि कार्यकाल की अवधि को छोटा करने (4 वर्ष) और नियुक्ति प्रक्रिया में केंद्र सरकार को अधिक नियंत्रण देने से ट्रिब्यूनलों की न्यायिक स्वतंत्रता कमजोर होती है। यह अधिनियम सुप्रीम कोर्ट द्वारा पहले रद्द किए गए अध्यादेश के कुछ प्रावधानों को फिर से शामिल करता है, जिसे अदालत की अवमानना या न्यायिक स्वतंत्रता पर हस्तक्षेप माना गया है।

यह अधिनियम भारत में त्वरित और विशिष्ट न्याय प्रदान करने वाले ट्रिब्यूनल सिस्टम में एक महत्वपूर्ण बदलाव लाने का प्रयास है, लेकिन इसकी संवैधानिकता और न्यायिक स्वतंत्रता पर इसके प्रभाव को लेकर कानूनी बहस जारी है।
Edited by: Vrijendra Singh Jhala 

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