Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

कैंसर का बोझ कम करने के लिए स्क्रीनिंग को लेकर जागरूकता जरूरी

हमें फॉलो करें कैंसर का बोझ कम करने के लिए स्क्रीनिंग को लेकर जागरूकता जरूरी
नई दिल्ली , रविवार, 4 फ़रवरी 2018 (14:06 IST)
नई दिल्ली। तम्बाकू सेवन, धूम्रपान, खराब खानपान और शारीरिक निष्क्रियता समेत जीवनशैली में बढ़ती विसंगतियों के कारण देश में कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं और विशेषज्ञों का कहना है कि समय पर यदि रोग की पहचान कर इलाज हो जाए तो इस खतरनाक बीमारी के बोझ को कम किया जा सकता है। भारत में कैंसर के अधिकतर मामले डॉक्टरों के सामने तब आते हैं जब वे तीसरी या चौथी स्टेज में पहुंच चुके होते हैं।
 
 
4 फरवरी को 'विश्व कैंसर दिवस' के मौके पर चिकित्सकों ने कहा कि समय-समय पर स्क्रीनिंग नहीं होने और जल्दी रोग की पहचान न होने से जुड़ी चुनौतियों की वजह से देश में केवल 12.5 प्रतिशत रोगी प्रारंभिक स्तर पर इलाज के लिए आ पाते हैं। इस चुनौती को दूर करने के लिए जागरूकता और सक्रियता जरूरी है।
 
फोर्टिस अस्पताल, शालीमार बाग के कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉ. सुरेन्द्र डबास के अनुसार देश में तम्बाकू के सेवन के कारण सिर, गले और फेफड़े के कैंसर के मामले बड़ी संख्या में सामने आ रहे हैं। तम्बाकू, सिगरेट, पान गुटखा, पान मसाला और सुपारी के टुकड़ों के साथ खुला तम्बाकू भारत में कैंसर का प्रमुख कारण है। तम्बाकू के सेवन में कमी और रोग की जल्द पहचान से इस भयावह बीमारी के बोझ को कम किया जा सकता है।
 
पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. विकास मौर्य ने बताया कि लंग कैंसर की बात करें तो 80 से 90 प्रतिशत खतरा अकेले तम्बाकू सेवन से होता है। भारत में 80 प्रतिशत लंग कैंसर के रोगियों को बीमारी का पता बाद के स्तर पर चलता है और तब तक इलाज करना मुश्किल हो जाता है। अगर लोग जागरूक रहें तो समय पर रोग का पता लगाकर इलाज संभव है।
 
रेडिएशन आंकोलॉजी की सीनियर कंसल्टेंट डॉ. सपना नांगिया के अनुसार महिलाओं के मामले में स्तन कैंसर और गर्भाशय कैंसर बड़े खतरे के तौर पर उभरे हैं। रोग की जल्द पहचान से सफल इलाज की संभावना बढ़ जाती है। इसके लिए सतर्कता, जागरूकता और सक्रियता जरूरी है तथा लोग खुद को थोड़ा समय दें और नियमित जांच कराएं। कैंसर का उपचार संभव है, बशर्ते हम समय पर चेत जाएं।
 
राजधानी स्थित वेंकटेश्वर हॉस्पिटल के सर्जिकल आंकोलॉजिस्ट डॉ. दिनेश चन्द्र कटियार कहते हैं कि बेहतर है कि गर्भाशय कैंसर से बचाव के लिए वैक्सीन लगवाई जाए। अगर किशोरावस्था के शुरुआती दौर में ही लड़कियोँ को इसकी वैक्सीन दे दी जाए तो उन्हें बीमारी के खतरे से काफी हद तक बचाया जा सकता है।
 
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने 2016 में अपने एक अनुमान में कहा था कि साल 2020 तक देश में कैंसर के 17.3 लाख नए मामले सामने आ सकते हैं और इस भयावह बीमारी से 8.8 लाख लोगों की मौत हो सकती है। इसमें स्तन कैंसर, फेफड़े का कैंसर और गर्भाशय कैंसर के मामले शीर्ष पर होंगे। (भाषा)

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

बंगाल के आमों का स्वाद जल्द 'माजा' में