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लेखक उदय प्रकाश ने 'राम मंदिर के चंदे' की रसीद शेयर की तो सोशल मीडि‍या में बवाल हो गया

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नवीन रांगियाल

फेसबुक से लेकर ट्वि‍टर तक लेखक और कहानीकार उदय प्रकाश के नाम पर बवाल हो रहा है। उदय प्रकाश ने हाल ही में फेसबुक पर अयोध्‍या में राम मंदिर के निर्माण के लिए दिए गए चंदे की रसीद शेयर की थी।

उन्‍होंने राम मंदिर निर्माण के लिए 5 हजार 400 रुपए का चंदा दिया है। चंदे की यह रसीद उन्‍होंने खुद ही सार्वजनिक की है, इस साथ उन्‍होंने लिखा--- 'आज की दान-दक्षिणा। अपने विचार अपनी जगह पर सलामत’ 

रसीद पोस्‍ट करने के बाद लेखक और साहित्‍य जगत में इसे लेकर बहस चल रही है।

दरअसल, यह इसलिए हो रहा है क्‍योंकि साल 2015 में लेखक उदय प्रकाश ने कन्नड़ साहित्यकार एमएम कलबुर्गी की हत्या के बाद विरोध स्‍वरुप साहित्य अकादमी अवॉर्ड लौटा दिया था। उन्‍होंने लेखकों पर होने वाले हमलों का विरोध किया था। 30 अगस्त 2015 में साहित्यकार एमएम कलबुर्गी को उनके कर्नाटक के धरवाड शहर के कल्याण नगर स्थित घर के पास ही गोली मार दी थी। उन्हें भी साहित्य अकादमी अवॉर्ड दिया गया था।

अब ऐसे में साहित्‍य जगत के दूसरे लेखकों और उनके प्रशंसकों को समझ नहीं आ रहा है कि उदय प्रकाश ऐसा क्‍यों कर रहे हैं। एक तरफ उन्‍होंने सरकार का विरोध कर अवार्ड लौटाया था और अब राम मंदिर के निर्माण के लिए चंदा दे रहे हैं।

प्रकाश के रे ने लिखा शायद यह साहित्यकार उदय प्रकाश की ताज़ा सिनिकल प्रैंकिशनेस है. इसे पोस्ट-मॉडर्निस्ट टीज़ भी कहा जा सकता है या ब्लंट सबवर्सन. मिसगाइडेड रिवेंज भी हो सकता है या फिर मिथ में प्लेसमेंट के लिए ओल्ड मैंस ट्रिक्स. हिंदी के कैंसिल कल्चर को पोक करने का इरादा भी हो सकता है. जो भी हो, इंटरेस्टिंग है. हो सकता है कि वे अकबर इलाहाबादी से मोटिवेटेड हो गए होंगे...

मय भी होटल में पियो, चन्दा भी दो मस्जिद में
शेख़ भी ख़ुश रहे, शैतान भी बेज़ार न हो।

रजनीश के झा ने लिखा--- उदय प्रकाश सर ने चंदा दिया तो गुनाह कर लिया। जब पुरस्कार वापसी के अगुआ थे तो सर आंखों पर बिठाया। बड़े दोगले हो कॉमरेड।

शशि‍ सिंह ने लिखा---  जिन्हें हमारे दौर के श्रेष्ठ कथाकारों में से एक उदय प्रकाश द्वारा राम के नाम पर चंदा देने से तकलीफ़ हुई है उनके लिए राम जी से प्रार्थना है कि उन सबके जीवन से नकारात्मकता का नाश हो। हम सब भारतवासी हैं। राम हम सबके हैं। आप चाहे जिस ओर, जिस छोर पर खड़े हों, राम तो सर्वत्र हैं।

अजीत साहनी ने लिखा--- उदय प्रकाश सूरज बनना चाहते थे। 'चंदा' बन गए।

मानवेंद्र जय ने लिखा--- उदयजी ने जो किया मुझे बिल्कुल फर्क नहीं पड़ा और न ही कोई हैरानी हुई? क्योंकि यह उनका निजी मसला है कि उनके किचन में क्या बनता है। वे किसके रिश्तेदार हैं? वे किस धर्म में आस्था रखते हैं? वे कब किसको चंदा देते हैं? क्योंकि हमने उनके बारे कोई मुगालते नहीं पाल रखे हैं।

लेकीन इस पूरे मसले पर मजेदार यह है कि उन्होने चंदे के पर्चे का मीना बाजार क्यों लगाया? यह उनका खिलंदड़पन है या बदमाश दिमाग की हरकत...!!

मुझे उनकी पोस्ट पढ़कर बार बार यही लगा कि वे हिंदी समाज और फेसबुकिया जनता को चिढ़ा रहे हैं। मजे ले रहे हैं कि कर लो जो करना है।

दूसरी बात किसी भी इंसान को आप उस पायदान पर बिठाते क्यों हैं, जिसका वो हकदार है या नहीं? किसी को भी आप हीरो बनाते हैं फिर जब वह आपके मन मुताबिक से इतर कोई हरकत कर बैठता है तो तुरंत आप उसके खिलाफ़ स्खलित होने लगते हैं... किसी के विचलन से इतना दिल क्यों लगाना भई? हां अगली बार के लिए यह सनद जरूर रखें कि उसके किसी लफ्फाजी पर उसे आईना जरूर दिखाएं...!!

डिस्क्लेमर- हां इस सबके बावजूद उदय प्रकाश मेरे प्रिय लेखक रहेगें। उनके किसी भी विचलन या हिपोक्रेसी का हिसाब इतिहास स्वयं करेगा।

वीरू सोनकर ने लिखा--- उदय प्रकाश जी के इस कदम से असहमत हुआ जा सकता है और होना भी चाहिए. पर इससे किसी को भी उदय जी को अपमानित करने का हक नहीं मिल जाता है. उदय जी ने जो किया, खुलेआम किया और उसे छिपाया नहीं. जबकि उन्हें उस किये-धरे को छुपाने की पूरी सुविधा हासिल है. हिंदी के कितने लेखक ऐसा पारदर्शी साहस कर सकते हैं?

जो लोग उदय जी के लेखन के आगे अपना कद बड़ा नहीं कर पाए और व्यक्तिगत प्रहारों में शामिल रहे. जिन्होंने उदय प्रकाश के ‘व्यक्ति’ को हर हद तक जाकर आहत किया. वे अब अपनी कुंठा का सार्वजनिक प्रदर्शन न ही करें तो बेहतर है. दुनिया देख रही है. उनसे असहमत होइए. यह हमारा-आपका अधिकार है पर उन्हें गालियाँ देने से पहले एक बार जरूर देखिए. उदय प्रकाश के जूते का नाप भी आपके सर से बहुत बड़ा है. पुनश्च : असहमत होइए, अपमानित न कीजिये. मैं भी आहत हूँ पर विरोध करने की भाषा नहीं भूला हूँ.

अनु रॉय ने लिखा---
हिंदी के प्रगतशील लेखक गण और कुछ महान पत्रकार पानी पी-पी कर हिंदी के एक नामचीन लेखक उदय प्रकाश जी को कोस रहें हैं. ये वही बुद्धिजीवी लेखकों का झुंड है जिनको अपने हिंदू होने पर शर्मिंदगी होती है. हिंदू धर्म और उससे जुड़े लोग, मंदिर और पूजा पाठ सब ढोंग-ढकोसला लगता है. लेकिन इन्हीं लेखकों और पत्रकारों को अमेरिकी राष्ट्रपति ‘जो बाईडेन’ का चर्च जाना और बाइबल को कोट करना कूल लगता है.
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जब उदय प्रकाश की वॉल पर लोगों ने उनसे इस बारे में पूछा तो एक कमेंट के जवाब में उन्‍होंने लिखा---
जब अन्य समुदाय, जाति, धर्म के लोग इस तरह के दान के लिए आते हैं तो एक बहुत ही वरिष्ठ व्यक्ति होने के नाते और एक पुराने परिवार से संबंधित होने के नाते यह परंपरा है कि उन्‍हें दान दिया जाए।

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