Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia

आज के शुभ मुहूर्त

(द्वादशी तिथि)
  • तिथि- पौष कृष्ण द्वादशी
  • शुभ समय- 7:30 से 10:45, 12:20 से 2:00 तक
  • व्रत/मुहूर्त-सर्वार्थसिद्धि योग, सुरूप द्वादशी
  • राहुकाल-प्रात: 10:30 से 12:00 बजे तक
webdunia
Advertiesment

51 Shaktipeeth : मुक्तिधाम मं‍दिर नेपाल गण्डकी शक्तिपीठ-21

हमें फॉलो करें 51 Shaktipeeth : मुक्तिधाम मं‍दिर नेपाल गण्डकी शक्तिपीठ-21

अनिरुद्ध जोशी

देवी भागवत पुराण में 108, कालिकापुराण में 26, शिवचरित्र में 51, दुर्गा शप्तसती और तंत्रचूड़ामणि में शक्ति पीठों की संख्या 52 बताई गई है। साधारत: 51 शक्ति पीठ माने जाते हैं। तंत्रचूड़ामणि में लगभग 52 शक्ति पीठों के बारे में बताया गया है। प्रस्तुत है माता सती के शक्तिपीठों में इस बार गंडकी मुक्तिधान मंदिर नेपाल शक्तिपीठ के बारे में जानकारी।
 
 
कैसे बने ये शक्तिपीठ : जब महादेव शिवजी की पत्नी सती अपने पिता राजा दक्ष के यज्ञ में अपने पति का अपमान सहन नहीं कर पाई तो उसी यज्ञ में कूदकर भस्म हो गई। शिवजी जो जब यह पता चला तो उन्होंने अपने गण वीरभद्र को भेजकर यज्ञ स्थल को उजाड़ दिया और राजा दक्ष का सिर काट दिया। बाद में शिवजी अपनी पत्नी सती की जली हुई लाश लेकर विलाप करते हुए सभी ओर घूमते रहे। जहां-जहां माता के अंग और आभूषण गिरे वहां-वहां शक्तिपीठ निर्मित हो गए। हालांकि पौराणिक आख्यायिका के अनुसार देवी देह के अंगों से इनकी उत्पत्ति हुई, जो भगवान विष्णु के चक्र से विच्छिन्न होकर 108 स्थलों पर गिरे थे, जिनमें में 51 का खास महत्व है।
 
गण्डकी- गंडकी : नेपाल में गंडकी नदी के तट पर पोखरा नामक स्थान पर स्थित मुक्तिनाथ मंदिर, जहां माता का मस्तक या गंडस्थल अर्थात कनपटी गिरी थी। इसकी शक्ति है गण्डकी चण्डी और शिव या भैरव चक्रपाणि हैं। इस शक्तिपीठ में सती के "दक्षिणगण्ड" (कपोल) का पतन हुआ था।
 
यह मंदिर पोखरा से 125 किलोमीटर दूर है। यह मंदिर पैगोडा आकार का बना हुआ है। विष्णुपुराण में इसका नाम मुक्तिनाथ मंदिर के रूप में वर्णित है। यहां की नदी में से शालिग्राम पत्थर बहुतायत में निकलते हैं। कहा जाता है कि जो भी यहां आकर गंडकी नदी में स्नान करने के बाद माता के दर्शन कर लेता है वह पापमुक्त होकर मुक्त हो जाता है और स्वर्ग को प्राप्त करता है।
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

आश्विन कृष्ण अमावस्या : अधिक मास की अमावस्या में कैसे करें पूजन