17 अक्टूबर 2020 शनिवार से नवरात्रि प्रारंभ
नवरात्रि के प्रत्येक दिन मां भगवती के एक स्वरुप श्री शैलपुत्री, श्री ब्रह्मचारिणी, श्री चंद्रघंटा, श्री कुष्मांडा, श्री स्कंदमाता, श्री कात्यायनी, श्री कालरात्रि, श्री महागौरी, श्री सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है।
यह क्रम अश्विन शुक्ल प्रतिपदा को प्रातःकाल शुरू होता है। प्रतिदिन जल्दी स्नान करके मां भगवती का ध्यान तथा पूजन करना चाहिए। सर्वप्रथम कलश स्थापना की जाती है।
कलश / घटस्थापना विधि
देवी पुराण के अनुसार मां भगवती की पूजा-अर्चना करते समय सर्वप्रथम कलश / घट की स्थापना की जाती है। घट स्थापना करना अर्थात नवरात्रि की कालावधि में ब्रह्मांड में कार्यरत शक्ति तत्व का घट में आवाहन कर उसे कार्यरत करना।
कार्यरत शक्ति तत्व के कारण वास्तु में विद्यमान कष्टदायक तरंगें समूल नष्ट हो जाती है। धर्मशास्त्रों के अनुसार कलश को सुख-समृद्धि, वैभव और मंगल कामनाओं का प्रतीक माना गया है। कलश के मुख में विष्णुजी का निवास, कंठ में रुद्र तथा मूल में ब्रह्मा स्थित हैं और कलश के मध्य में दैवीय मातृशक्तियां निवास करती हैं।
सामग्री:
जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र
जौ बोने के लिए शुद्ध साफ़ की हुई मिटटी
पात्र में बोने के लिए जौ
घटस्थापना के लिए मिट्टी का कलश (“हैमो वा राजतस्ताम्रो मृण्मयो वापि ह्यव्रणः” अर्थात 'कलश' सोने, चांदी, तांबे या मिट्टी का छेद रहित और सुदृढ़ उत्तम माना गया है। वह मंगल कार्यों में शुभकारी होता है )
कलश में भरने के लिए शुद्ध जल, गंगाजल
मौली
इत्र
साबुत सुपारी
दूर्वा
कलश में रखने के लिए कुछ सिक्के
पंचरत्न
अशोक या आम के 5 पत्ते
कलश ढकने के लिए ढक्कन
ढक्कन में रखने के लिए बिना टूटे चावल
पानी वाला नारियल
नारियल पर लपेटने के लिए लाल कपडा
फूल माला
विधि
सबसे पहले जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र लें। इस पात्र में मिट्टी की एक परत बिछाएं। अब एक परत जौ की बिछाएं। इसके ऊपर फिर मिट्टी की एक परत बिछाएं। अब फिर एक परत जौ की बिछाएं। जौ के बीच चारों तरफ बिछाएं ताकि जौ कलश के नीचे न दबे। इसके ऊपर फिर मिट्टी की एक परत बिछाएं। अब कलश के कंठ पर मौली बांध दें।
कलश के ऊपर रोली से ॐ और स्वास्तिक लिखें।
अब कलश में शुद्ध जल, गंगाजल कंठ तक भर दें। कलश में साबुत सुपारी, दूर्वा, फूल डालें। कलश में थोड़ा सा इत्र डाल दें। कलश में पंचरत्न डालें। कलश में कुछ सिक्के रख दें। कलश में अशोक या आम के पांच पत्ते रख दें। अब कलश का मुख ढक्कन से बंद कर दें। ढक्कन में चावल भर दें।
पुराण के अनुसार “पंचपल्लवसंयुक्तं वेदमन्त्रैः सुसंस्कृतम्। सुतीर्थजलसम्पूर्णं हेमरत्नैः समन्वितम्॥”
अर्थात कलश पंचपल्लवयुक्त, वैदिक मन्त्रों से भली भांति संस्कृत, उत्तम तीर्थ के जल से पूर्ण और सुवर्ण तथा पंचरत्नयुक्त होना चाहिए।
नारियल पर लाल कपड़ा लपेट कर मौली लपेट दें। अब नारियल को कलश पर रखें। शास्त्रों में उल्लेख मिलता है:
“अधोमुखं शत्रु विवर्धनाय,ऊर्ध्वस्य वस्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै।
प्राचीमुखं वित विनाशनाय,तस्तमात् शुभं संमुख्यं नारीकेलं”।
अर्थात् नारियल का मुख नीचे की तरफ रखने से शत्रु में वृद्धि होती है।नारियल का मुख ऊपर की तरफ रखने से रोग बढ़ते हैं, जबकि पूर्व की तरफ नारियल का मुख रखने से धन का विनाश होता है। इसलिए नारियल की स्थापना सदैव इस प्रकार करनी चाहिए कि उसका मुख साधक की तरफ रहे। ध्यान रहे कि नारियल का मुख उस सिरे पर होता है, जिस तरफ से वह पेड़ की टहनी से जुड़ा होता है।
अब कलश को उठाकर जौ के पात्र के बीच रख दें। अब कलश में सभी देवी देवताओं का आवाहन करें। "हे सभी देवी देवता और माँ दुर्गा आप सभी नौ दिनों के लिए इसमें पधारें।" अब दीपक जलाकर कलश का पूजन करें। धूपबत्ती कलश को दिखाएं। कलश को माला अर्पित करें। कलश को फल मिठाई अर्पित करें। कलश को इत्र समर्पित करें।
कलश स्थापना के बाद मां दुर्गा की चौकी स्थापित की जाती है।