kanya kise kahate hain: नवरात्रि में कन्या पूजन और कन्या भोज का महत्व माना गया है। प्राचीन भारतीय संस्कृति में खासकर आर्य संस्कृति में कन्या शिशु के जन्म के समय उत्सव का आयोजन होता था। देवताओं ने संकट काल के समय जिन देवियों का आह्वान किया वह पहले कन्या रूप में ही प्रकट हुई थी। पुराण कथा के अनुसार देवताओं के संगठित शक्तिपुंज का जो विग्रह बना वह एक नारी थी।
महत्वपूर्ण प्रश्न है कि इस संस्कृति में शिशु नारी को कन्या नाम क्यों दिया? दरअसलल कन्या शब्द का विकास संस्कृत की कन धातु से होता है, जिसका अर्थ है दीप्त होना। 'कन्या दीप्तये इति', टाप प्रत्यय लगाकर यक के साथ कन धातु कन्या शब्द निष्पन्न करती है।
कोशकारों ने कन्या की एक आयु, एक वय तथा एक स्थिति तय कर दी और उसे नाम दिया गौरी। जिस आयु तक छोटी बच्ची वस्त्ररहित घूम सकती है वही आयु थी कन्या की। अमरकोश में कन्या कुमारी गौरी कहते हुए उसे एक खास आयु वर्ग से बांधकर आयु सीमा 10 वर्ष निर्धारित की गई है।
8 वर्ष की बालिका को शास्त्रों ने नाम दिया गौरी, 9 वर्ष की बालिका का नाम दिया रोहिणी और 10वें वर्ष में शास्त्र ने उसे कन्या कहा है और उससे ऊपर नारी। नारी को भारतीय संस्कृति में लक्ष्मी कहा गया है।
एक अन्य मान्यता के अनुसार-
-
दो वर्ष की कन्या को कौमारी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इसके पूजन से दुख और दरिद्रता समाप्त हो जाती है।
-
तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति मानी जाती है। त्रिमूर्ति के पूजन से धन-धान्य का आगमन और संपूर्ण परिवार का कल्याण होता है।
-
चार वर्ष की कन्या कल्याणी नाम से संबोधित की जाती है। कल्याणी की पूजा से सुख-समृद्धि मिलती है।
-
पांच वर्ष की कन्या रोहिणी कही जाती है। रोहिणी की पूजन से व्यक्ति रोग मुक्त होता है।
-
छह वर्ष की कन्या चण्डिका के पूजन से ऐश्वर्य मिलता है।
-
आठ वर्ष की कन्या शाम्भवी की पूजा से लोकप्रियता प्राप्त होती है।
-
नौ वर्ष की कन्या दुर्गा की अर्चना से शत्रु पर विजय मिलती है तथा असाध्य कार्य सिद्ध होते हैं।
पुस्तक- कन्या यात्रा, लेखक - डॉ. मूल शंकर शर्मा से साभार