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आषाढ़ मास की गुप्त नवरात्रि में प्रकृति से जुड़े इन देवी देवताओं को मना लें

हमें फॉलो करें आषाढ़ मास की गुप्त नवरात्रि में प्रकृति से जुड़े इन देवी देवताओं को मना लें

अनिरुद्ध जोशी

, बुधवार, 14 जुलाई 2021 (14:17 IST)
आषाढ़ और माघ मास की नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहते हैं। इस वर्ष यह पर्व 11 जुलाई 2021 रविवार से आषाढ़ शुक्र प्रतिपदा से गुप्त नवरात्रि का प्रारंभ हो हुआ जो आषाढ़ शुक्ल नवमी अर्थात 18 जुलाई 2021 रविवार तक रहेगा। आषाढ़ माह में प्रकृति हरिभरी हो जाती है और चारों ओर हरियाली छायी रहती है। चातुर्मास के चारों माह प्रकृति को समर्पित माह भी माने गए हैं क्योंकि इन माह में प्रकृति नया रूप धारण करती है। आओ जानते हैं कि प्रकृति से जुड़े कौनसे देवी और देवताओं की पूजा करते हैं।

 
मुख्यत: पांच देवियां संपूर्ण प्रकृति का संचालन करती हैं- माता दुर्गा, महालक्ष्मी, सरस्वती, सावित्री व राधा।
 
देवी तुलसी : देवी तुलसी का नाम वृंदा है। कहते हैं कि यह भगनाव नारायण की अंश है। उनमें संपूर्ण विश्व की वाटिकाएं, वृक्ष, कदली निवास करते हैं। तुलसी सभी वनस्पतियों का प्रितिनिधित्व करती है। वही सभी की पालिनी, संधारिणी है। ‘यन्मूले सर्वतीर्थानि यन्मध्ये ब्रह्म देवताः।’ अर्थात उनके मुलभाग में सभी तीर्थ और उनमें सारे देवी-देवता वास करते हैं। वही भगवान मुकुंदकी प्रिया है, वेदोंकी रक्षिता है।
 
वनदुर्गा : षठप्रहरिणी असुरमर्दिनी माता दुर्गा का एक रूप है वनदुर्गा। वनों की पीड़ा सुनकर उनमें आश्रय लेने वाले दानवोंका वध करने और वनों की रक्षा करने वनदुर्गा के रूपमें अवतरित हुई एक शक्ति है। वनों की पुत्री देवी मारिषा के पोषण हेतु वनदुर्गाका यह अवतार सभी मातृकाओंमे श्रेष्ठ माना जाता है।
 
देवी आर्याणि : पितरों के अधिपति अर्यमा की बहन आर्याणि की माता का नाम अदिति और पिता का नाम कश्यप हैं। यह सूर्यपुत्र रेवंतस की पत्नी हैं। आर्याणि इस समग्र सृष्टि में स्थित निसर्ग सौंदर्यका प्रतिक है। वेदों की शाखाएं जिन्हें ‘अरण्यक’ कहां जाता है उनकी रक्षणकर्ता आर्याणि है। अरण्‍य का अर्थ वन ही होता है।
 
वनस्पति देव : विश्‍वदेवों से से एक वनस्पति देव का ऋग्वेद और सामवेद में उल्लेख मिलता है। वनस्पति देव वृक्ष, गुल्म, लता, वल्लीओं का पोषण-भरण और उनके अनुशासनका कार्य निर्वहन करते हैं। वनस्पतियों का अपमान करने पर, उन्हे हानि पहुंचाने पर और ग्रहणकाल में अथवा सूर्यास्त के बाद वनस्पतियों का कोई भी अंग अलग करने पर वे दंड देते हैं। वनस्पति देव हिरण्यगर्भा ब्रह्मके केशोंसे निर्मित हुए थे।
 
आरण्यिका नागदेव : महर्षि कश्यप की पत्नी कद्रू के पुत्र नाग वनों के देवता हैं जिनके नगर वनों में फैले हुए हैं। वे नैमिष, खांडव, काम्यक, दण्डक, मधु, द्वैत आदि वनों में निवास करते हैं और वहां के वे स्वामी हैं और जो वन में अकाल प्रवेश करने वाले मनुष्यों को दंड देते हैं। वन में गृहस्थों को हरने की अनुमति नहीं है। केवल वानप्रस्थ आश्रम को स्वीकार करने वाले ऋषि वनों में निवास कर सकते हैं।
 
पंचतत्वों के देवी-देवता : प्रकृति पंच तत्वों से मिलकर बनी है अग्नि, वायु, जल, आकाश और धरती। अग्नि के अनल और सूर्य, वायु के अनिल, पवनदेव, मारुत देव, मरुद्गण। जल के वरुणदेव, समुद्रदेव, सभी नदिया जैसे गंगा, यमुना, नर्मदा, जलदेवी आदि।। धर धरती के देव हैं और माता धरती देवी हैं। आप अंतरिक्ष के देव हैं, द्यौस या प्रभाष आकाश के देव हैं, सोम चंद्रमास के देव हैं, ध्रुव नक्षत्रों के देव हैं, प्रत्यूष या आदित्य सूर्य के देव हैं।
 
आकाश के देवता अर्थात स्व: (स्वर्ग):- सूर्य, वरुण, मित्र, पूषन, विष्णु, उषा, अपांनपात, सविता, त्रिप, विंवस्वत, आदिंत्यगण, अश्विनद्वय आदि। अंतरिक्ष के देवता अर्थात भूव: (अंतरिक्ष):- पर्जन्य, वायु, इंद्र, मरुत, रुद्र, मातरिश्वन्, त्रिप्रआप्त्य, अज एकपाद, आप, अहितर्बुध्न्य। पृथ्वी के देवता अर्थात भू: (धरती):- पृथ्वी, उषा, अग्नि, सोम, बृहस्पति, नदियां आदि।

वृक्ष पूजा : वृक्ष में सभी देवी और देवता विराजमान रहते हैं। जैसे पीपल में विष्णु, बरगद में ब्रह्मा विष्णु और महेश, नीम में मंगलदेव और हनुमानजी, शमी में शनिदेव आदि। इस तरह वृक्षदेव की भी पूजा करना चाहिए।

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