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तुम आशा, विश्वास हमारे...

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-न्यूयॉर्क से जितेन्द्र मुछा
अमेरिका के राष्ट्रपति पद की शपथ में सामान्यत: अंतिम चार शब्द होते हैं 'सो हेल्प मी गॉड'! 20 जनवरी को यह शब्द कहने के साथ ही बराक ओबामा अमेरिका के 44वें राष्ट्रपति बन गए। व्हाइट हाउस में पहले अश्वेत राष्ट्रपति ओबामा के पहुँचने से 'अमेरिका ड्रीम' का यह शिखर अब हर आम और खास को अपना-सा लगने लगा है।

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उनके शपथ ग्रहण से जुड़े हर पहलू के लिए लोगों में गजब का उत्साह देखने को मिला। लाखों की तादाद में लोग लोकतंत्र के इस महाकुंभ में शामिल होने के लिए वॉशिंगटन पहुँचे। और इसी ऐतिहासिक समारोह के नैपथ्य में छाई है मंदी, चरमराती अर्थव्यवस्था, बढ़ती बेरोजगारी, ध्वस्त होते बैंक, बंद होती कंपनियाँ, भविष्य के प्रति इतनी 'अनसर्टेनिटी' अमेरिका ने तो कई दशकों में नहीं महसूस की। इसी अंधकार में आशा और विश्वास के पुंज बराक ओबामा का हार्दिक स्वागत है।

दुष्कर चुनौतियाँ : अमेरिका सहित दुनिया में गंभीर आर्थिक समस्याएँ हैं। सारी सरकारें परिस्थिति से निबटने के लिए हरसंभव, असंभव प्रयास कर रही हैं, लेकिन अभी तो सब मंदी के होम में 'स्वाह' हो रहे हैं। गहराती आर्थिक मंदी कहीं 1930 जैसी 'इकोनॉमिक डिप्रेशन' के गर्त में न डूब जाए। क्या आने वाला कल आज से बेहतर होगा? मेरा कारोबार, नौकरी रहेगी? कीमतें कब तक गिरती रहेंगी? कितनी कंपनियाँ, बैंकें और डूबेंगी? ओबामा और उनके प्रशासन की सबसे बड़ी चुनौती है इनसान के नैसर्गिक 'विश्वास' और 'आशा' को जीवंत रखना। सिर्फ अमेरिका नहीं, पूरी दुनिया की उम्मीदें ओबामा पर लगी हैं।

और अभूतपूर्व जनमत... : ओबामा के पास सबसे बड़ी पूँजी है उनकी 'सर्वभौमिक लोकप्रियता'। हमेशा से दुनिया अमेरिका की आर्थिक-सामरिक सत्ता और डॉलर के प्रभुत्व को मानती रही है, लेकिन अमेरिका प्रशासन की दुनिया में लोकप्रियता कम ही रहती है। आज अमेरिका की आर्थिक-सामरिक सत्ता पर तो प्रश्नचिह्न है, डॉलर की एकछत्र प्रभुता खतरे में है, लेकिन अमेरिका का भावी राष्ट्रपति पद ग्रहण के पहले ही दुनिया का चहेता और आशा का प्रति‍बिंब बन गया है।

सरल सम्मोहन में लिप्त उनका व्यक्तित्व, जैसे अपने आप उनकी ओर आकर्षित करता है। मानो इस व्यक्ति में 'कोई बात है', गोया इसकी बात पर भरोसा कर सकते हैं कि कल आज से अच्छा होगा। पूरी दुनिया में बुरी खबरों के बीच जैसे सिर्फ एक ही खुशखबरी है, जो आशा बनाए रख रही है- 'ओबामा'! वह खुद भी जानते हैं कि उनके तरकश में उनकी यह 'ग्लोबल एक्सेप्टेशन' उनका ब्रह्मास्त्र है- जिसकी मदद से उन्हें अमेरिका सहित पूरी दुनिया में समस्याओं से जूझना है।

अमेरिका में किए गए एक विस्तृत जनमत सर्वेक्षण के अनुसार राष्ट्रपति ओबामा की लोक‍‍प्रियता 79% है। (बुश की रेटिंग सिर्फ 22% है) पिछले पाँच राष्ट्रपतियों में से किसी को भी कार्यकाल के प्रारंभ में ऐसी लोकप्रियता नहीं मिली। यही नहीं, अधिकांश अमेरिकी लोगों का मानना है कि ओबामा के कार्यकाल में परिस्थितियाँ आज से बेहतर होंगी, ओबामा कोई जादू नहीं कर सकते और अमेरिका के आर्थिक उबार में लगभग 2 वर्षों का समय लगेगा। कार्यकाल शुरू होने से पहले ही उनकी गिनती या चर्चा लिंकन, रूसवेल्ट, कैनेडी जैसे प्रसिद्ध राष्ट्रपतियों के साथ होने लगी है।

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ओबामा इस लोकप्रियता में छिपी उम्मीदों को पहचानते हैं, इसलिए वे बार-बार कह रहे हैं कि समस्याओं से निबटने में वक्त लगेगा, और पीड़ा अभी बाकी है। कार्यकाल शुरू होने के पहले ही ओबामा ने अपनी पूरी कैबिनेट तैयार कर ली है, शपथ लेते ही वे देश और दुनिया की समस्याओं का सामना करने को कटिबद्ध हैं और सामान्य नागरिक के रोजमर्रा की पीड़ा और अड़चनों से वह बखूबी जुड़े हुए हैं।

चमत्कार में 'पग फेरा' : अपने यहाँ परिवारों में नए सदस्य के आगमन के साथ होने वाले शुभ को 'अच्छा पग फेरा' कहते हैं। घटनाएँ तो विलग हैं, लेकिन मुझे ऐसा लगा जैसे 155 यात्रियों से भरे प्लेन का पानी में उतरने के बावजूद किसी का बाल भी बाँका नहीं होने का 'चमत्कार' कहीं तो इस देश में आने वाले दिनों में मनने वाली खुशियों और उनके 'पग फेरे' से जुड़ा है।

गौर से देखें, यूएस एयरवेज के प्लेन के दोनों इंजन क्षतिग्रस्त होने से उसे आपात स्थिति में पानी पर उतारना पड़ा, लेकिन होनहार चालक की सूझबूझ और ऊपर वाले की कृपा से चमत्कार हो गया। यूएस के खचाखच भरे प्लेन के इंजन भी खराब हो गए हैं, आपात स्थिति है, हम सबको 'आशा और विश्वास' है कि 'पायलट ओबामा' जहाज और यात्रियों को अंतत: डूबने से बचा पाएँगे। 'सो हेल्प हिम गॉड!'

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