Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

मंदिरों की आय से किसानों के ऋण चुकता किए जाएं

हमें फॉलो करें मंदिरों की आय से किसानों के ऋण चुकता किए जाएं
- डॉ. आदित्य नारायण शुक्ला 'विनय'
 
कैलिफोर्निया, अमेरिका। हाल ही में इंटरनेट में पढ़ा कि मुंबई स्थित सिद्धि विनायक मंदिर अपनी आय का एक बहुत बड़ा भाग उन किसानों के परिवार-कल्याण के लिए खर्च करता है जो अपना कृषि-ऋण न चुका सकने के कारण चिंतित, बैंक के तगादों से तंग, उनके द्वारा अपने ट्रैक्टर लूटकर ले जाने से दुखी और परेशान होकर आत्महत्या कर चुके हैं। बहु–करोड़पति नहीं, बहु-अरबपति सिद्धिविनायक मंदिर का ये लाजवाब और प्रशंसनीय कार्य है। अंग्रेजी में एक कहावत है जिसका आपने भी कभी न कभी प्रयोग अवश्य ही किया होगा– 'Prevention is better than cure', इसका भाव यह है कि पहले से ही सावधानी बरतना ज्यादा अच्छा है ताकि इलाज की या बीमार पड़ने की नौबत ही न आए।
 
आज सिद्धि विनायक मंदिर महाराष्ट्र के उन किसान-परिवारों की आर्थिक मदद कर रहा है जो अपना कृषि-ऋण न चुका सकने के कारण आत्महत्या कर चुके हैं। काश!!! अरबपति और अटूट-अचल संपत्ति का स्वामी सिद्धि विनायक मंदिर उन गरीब किसानों के ऋण ही चुकता कर दिया होता जिनके परिवार के लिए वह आज निशुल्क घर बनवा रहा है, उनके आश्रितों का अस्पतालों में निशुल्क इलाज करवा रहा है, उस परिवार के विद्यार्थियों को स्कालरशिप देकर उन्हें शिक्षित होने में सहायता कर रहा है। तो वह आत्महत्या कर चुका किसान आज जीवित होता और सिद्धि विनायक मंदिर को अपनी जिन्दगीभर दुआएं देता और मंदिर को उसके परिवार की आर्थिक सहायता भी नहीं करनी पड़ रही होती।
 
दूसरे शब्दों में यह बात कहनी थोड़ी हास्यास्पद और असभ्यतापूर्ण लग सकती है कि सिद्धि विनायक मंदिर पहले किसान के आत्महत्या करने की प्रतीक्षा करता है कि कब वह मरे फिर मंदिर उसके परिवार की आर्थिक सहायता करने के लिए आगे आए। अरे भैया! किसान को आत्महत्या करने ही क्यों देते हो? सिद्धि विनायक भगवान गणेश का मंदिर है और हमें ही नहीं पूरे देश को विश्वास होगा कि यदि गणपति बप्पा जी से यह पूछा जाए कि जो किसान आत्महत्या करने वाला है- सिद्धि विनायक मंदिर उसका ऋण चुकता कर दे या उसके आत्महत्या की प्रतीक्षा करे। फिर उसके परिवार की आर्थिक सहायता करे, तो गणेशजी भी यही कहेंगे कि 'सिद्धि विनायक मंदिर किसान का ऋण चुकता कर दे।'
 
भारत में वैसे तो हजारों धनी मंदिर हैं लेकिन दस करोड़पति-अरबपति-खरबपति मंदिरों के नाम हैं-
 
1. पद्मनाभस्वामी मंदिर, तिरुवंतपुरम, केरल
2. वेकटेश्वर मंदिर, तिरुपति, आंध्र प्रदेश
3. वैष्णोदेवी मंदिर, जम्मू कश्मीर
4. साईँबाबा मंदिर, शिर्डी
5. सिद्धि विनायक मन्दिर, मुंबई
6. स्वर्ण मंदिर, अमृतसर
7. मीनाक्षी मंदिर, मदुरै
8. काशी विश्वनाथ मन्दिर, वाराणसी
9. सोमनाथ मंदिर, गुजरात
10. जगन्नाथ मंदिर, पुरी
 
उपरोक्त सभी मंदिरों की मिलीजुली औसत वार्षिक आय 500 करोड़ रुपयों से भी ज्यादा है। साथ ही इनमें से कई मंदिरों के पास हजारों टन सोना व बहूमूल्य आभूषण हैं। कहना न होगा इन मंदिरों की आय के मुख्य स्त्रोत हैं दर्शन के लिए वहां पहुंचने वाले भक्तों द्वारा दिए गए दान और चढ़ावा। इन मंदिरों के प्रबंध और पुजारी-कर्मचारियों के वेतन भुगतान के बाद भी इनके पास अथाह धन-दौलत और बहूमूल्य आभूषण जमा हैं। वे जमा हैं तो बस जमा हैं। बैंकों में ब्याज से बढ़ते उनके अपार धन-दौलत और बहुमूल्य आभूषण किसी काम के नहीं हैं। 
 
भारत सरकार विदेशों में जमा भारतीयों के कालाधन वापस लाने के लिए जिस तरह से कटिबद्ध है और समय-समय पर आम जनता को कष्ट देकर, नोटबंदी करके, बैंकों में लंबी लाइन लगवाकर कालाधन पर नियंत्रण करना चाहती है– उसी तरह से इन करोड़-अरब-खरबपति मंदिरों को वह ‘कष्ट’ क्यों नहीं देती अर्थात सरकार चाहे तो यह कानून बना सकती है कि इन मंदिरों को जो आय होती है, उससे सबसे पहले भारत के किसानों के कृषि-ऋण चुकता किए जाएं। पूरे देश का पेट भरने वाले किसान आज खुद भूखे रहकर हजारों की संख्या में प्रतिवर्ष आत्महत्या कर रहे हैं अपना कृषि-ऋण न पटा सकने की चिंता में। इससे दुखद बात सारे देश के लिए और क्या हो सकती है?
  
कालेधन के देश में (सफ़ेद बनकर) पुनरागमन से हर भारतीय के बैंक खाते में 15 लाख रुपए जमा हों या न हों लेकिन देश के सभी मंदिरों के कुछ ही वर्षों की आय से समस्त किसानों के कृषि-ऋण बड़े ही आराम से चुकाए जा सकते हैं। आरक्षण प्राप्त करने के लिए हम अशोभनीय आंदोलन पर उतर आते हैं। क्रिकेट में विजय प्राप्त करने के लिए हम हवन-पूजा करने बैठ जाते हैं। अन्ना हजारे और उन जैसे समाजसेवी लोग देश के किसानों को कर्जमुक्त करने और उन्हें खुशहाल देखने के लिए कदम क्यों नहीं उठाते? सरकार और तथाकथित समाजसेवक किसानों को कर्जमुक्त करने के लिए कोई भी ठोस काम क्यों नहीं करते?
 
माननीय सुप्रीम कोर्ट भी सरकार को यह सलाह दे सकती है कि देश के मंदिरों के पास जो अपार धन-दौलत है (और प्रतिवर्ष आते ही जा रहे हैं) सबसे पहले उस रकम से देश के किसानों को 'निशुल्क कर्जमुक्त किए जाएं'। विदेशों से कालाधन सरकार बाद में वापस लाए, बैंकों के हजारों करोड़ रुपए 'चुराकर' विदेश भाग जाने वालों विजय माल्या और नीरव मोदी को वह बाद में पकड़कर लाए। किंतु इन सबसे ज्यादा जरुरी है संपूर्ण देश को अन्न उपजा कर भोजन कराने वाले किसानों की आत्महत्या को तत्काल रोकना।
 
और यह तभी संभव हो पाएगा जब देश के किसान कर्जमुक्त और खुशहाल होंगे। भारत के राष्ट्रपति-प्रधानमंत्री से लेकर देश का एक साधारण शिक्षित आम आदमी भी जानता है कि भारत के मंदिरों से धनाढ्य देश में और कोई नहीं है, लेकिन उसी देश के गरीब किसान अपने कृषि-ऋण न चुका सकने के कारण प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में आत्महत्या कर रहे हैं तो देश के उन मंदिरों की अपार धन-दौलत किस काम की?

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

ग्लैमरस करियर : स्टेज एंकरिंग, 12 खूबियां