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मालिशिए की मदद के बिना जीता पदक

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हमें फॉलो करें सुशील कुमार भारतीय पहलवान बीजिंग ओलिम्पिक
बीजिंग (भाषा) , शुक्रवार, 22 अगस्त 2008 (00:50 IST)
आधे दशक बाद भारत को कुश्ती में पदक दिलाने वाले सुशील कुमार को न सिर्फ एक के बाद एक चार मुकाबलों के लिए मैट पर उतरना पड़ा बल्कि इस बीच थकान से चूर इस पहलवान को मालिशिए की मदद भी नहीं मिली।

सुशील कल सुबह आंद्रेई स्टैनडिक से हार के बाद काफी निराश दिख रहे थे लेकिन इस यूक्रेनी पहलवान के फाइनल में पहुँचने से इस भारतीय के लिए रेपेचेज के दरवाजे खुल गए। सुशील को काँस्य पदक जीतने के लिए 70 मिनट के अंदर तीन पहलवानों से भिड़ना था और उन्होंने ऐसा किया।

रेपेचेज का पहला दौर स्थानीय समयानुसार चार बजे शुरू हुआ, जिसमें सुशील ने अमेरिका के डाग श्वाब को हराया। उनका अगला मुकाबला बेलारूस के अल्बर्ट बातिरोव के खिलाफ चार बजकर 20 मिनट पर था।

सुशील ने जब इस बाधा को भी पार कर लिया तो वह काँस्य पदक के लिए पाँच बजकर दस मिनट पर सेमीफाइनल में पराजित होने वाले लियोनिड स्प्रिडिनोव से भिड़े तथा इस बीच उनकी मालिश करने के लिए कोई मालिशिया नहीं था।

सुशील ने कहा कि हमारे पास समर्पित मालिशिया नहीं है। मैंने एक मालिशिए से कहा कि क्या आप कुछ देर तक मेरी मालिश कर सकते हैं और उसने कहा 'नहीं'। उन्होंने कहा कि ऐसे में टीम मैनेजर करतारसिंह को यह भूमिका निभानी पड़ी। हमें चिकित्सक को लेकर भी कोई आइडिया नहीं था जो ओलिम्पिक दल के साथ यहाँ आया हुआ है।

सुशील ने कहा कि जब दिन में अपने चौथे मुकाबले के लिए जा रहा था तो वास्तव में मैं बहुत थका था और इस बीच मुझे आराम करने का समय नहीं मिला था। मुझे तब मालिश की सख्त जरूरत महसूस हो रही थी।

इस पहलवान ने कहा कि तकनीकी तौर पर भारतीय पहलवानों और विदेशी पहलवानों में अधिक अंतर नहीं है, लेकिन सारा अंतर सुविधाओं के कारण होता है। उन्होंने कहा कि स्वर्ण पदक दूर का सपना नहीं है। हमारे पास प्रतिभा की कमी नहीं है, लेकिन हमें आधारभूत ढाँचे की जरूरत है।

सुशील से जब पूछा गया कि उन्होंने अपनी जीत का जश्न कैसे मनाया उन्होंने कहा कि मैंने खूब खाना खाया। मुकाबले से पहले हम अमूमन भूखे रहते हैं ताकि हमारा वजन न बढ़े। यहाँ तक कि एक गिलास पानी भी परेशानी खड़ी कर सकता है।

उन्होंने कहा कि मेरा मुकाबला समाप्त होने के बाद ही मैंने खूब खाना खाया। मैं शाकाहारी हूँ और इसलिए मैंने अधिकतर फल ही खाए। सुशील ने स्वीकार किया कि वह नकद पुरस्कार के लिए अखाड़ों में जाता रहा है, लेकिन अब जबकि हर तरफ से उन पर इनामों की बरसात हो रही है और उन्हें पदोन्नति देने का वादा किया गया है तो लगता है कि आगे ऐसा नहीं करना पड़ेगा।

उन्होंने कहा कि मुझे इस पुरस्कारों बारे में पता नहीं। घर जाने पर ही मुझे पता चलेगा। सुशील से जब नजफगढ़ के एक अन्य खेल स्टार वीरेंद्र सहवाग के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि वह इस क्रिकेटर से एक बार मिले हैं। वह कोई कार्यक्रम था जिसमें हम दोनों को सम्मानित किया गया था।

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