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हरछठ (हलषष्ठी) व्रत कैसे करें, जानिए 10 काम की बातें...

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हमें फॉलो करें हरछठ (हलषष्ठी) व्रत कैसे करें, जानिए 10 काम की बातें...
* हरछठ (हलषष्ठी) व्रत कैसे करें, जानिए
* सुख-सौभाग्य देता है हलषष्ठी एवं हरछठ का व्रत

भारतभर में हरछठ (हलषष्ठी) व्रत भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण के ज्येष्ठ भ्राता श्री बलरामजी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन श्री बलरामजी का जन्म हुआ था। 
 
श्री बलरामजी का प्रधान शस्त्र हल तथा मूसल है। इसी कारण उन्हें हलधर भी कहा जाता है। उन्हीं के नाम पर इस पर्व का नाम 'हलषष्ठी या हरछठ' पड़ा। भारत के कुछ पूर्वी हिस्सों में इसे 'ललई छठ' भी कहा जाता है।

आगे पढ़ें 10 काम की बातें... 

 
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हरछठ पर जानिए 10 काम की बातें... 
 
* प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त हो जाएं।

* पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण कर गोबर लाएं।

* इसके बाद पृथ्वी को लीपकर एक छोटा-सा तालाब बनाएं।

* इस तालाब में झरबेरी, ताश तथा पलाश की एक-एक शाखा बांधकर बनाई गई 'हरछठ' को गाड़ दें।

* तत्पश्चात इसकी पूजा करें।

* पूजा में सतनाजा (चना, जौ, गेहूं, धान, अरहर, मक्का तथा मूंग) चढ़ाने के बाद धूल, हरी कजरियां, होली की राख, होली पर भुने हुए चने के होरहा तथा जौ की बालें चढ़ाएं।

* हरछठ के समीप ही कोई आभूषण तथा हल्दी से रंगा कपड़ा भी रखें।

* पूजन करने के बाद भैंस के दूध से बने मक्खन द्वारा हवन करें।

* पश्चात कथा कहें अथवा सुनें।

अंत में निम्न मंत्र से प्रार्थना करें : -
 
गंगाद्वारे कुशावर्ते विल्वके नीलेपर्वते।
स्नात्वा कनखले देवि हरं लब्धवती पतिम्‌॥
ललिते सुभगे देवि-सुखसौभाग्य दायिनि।
अनन्तं देहि सौभाग्यं मह्यं, तुभ्यं नमो नमः॥
 
- अर्थात् हे देवी! आपने गंगा द्वार, कुशावर्त, विल्वक, नील पर्वत और कनखल तीर्थ में स्नान करके भगवान शंकर को पति के रूप में प्राप्त किया है। सुख और सौभाग्य देने वाली ललिता देवी आपको बारम्बार नमस्कार है, आप मुझे अचल सुहाग दीजिए।




 

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