Aasmai dwitiya puja : आसमाई या आसों दोज का पर्व वैशाख कृष्ण पक्ष की दूज के दिन मनाया जाता है। उत्तर भारत में खासकर बुन्देलखण्ड में आसों दूज का खास महत्व रहता है।
क्यों रखते हैं व्रत : मान्यता के अनुसार यह व्रत कार्य की सिद्धि के लिए किया जाता है। यह भी कहा जाता है कि जब हमारी कोई इच्छापूर्ण नहीं होती है तो आसामाई को प्रसन्न करके जीवन को सुंदर बनाया जाता है। फिर जीवनभर हर साल उनकी पूजा करना होगी है। यह व्रत वे महिलाएं करती हैं जिसने संतात होती हैं। इस दिन भोजन में नमक का प्रयोग वर्जित होता है।
पूजा की विधि :
1. अच्छे मीठे पान पर सफेद चंदन से आसामाई की मूर्ति बनाकर उनके समक्ष 4 कौड़ियों को रखकर पूजा की जाती है।
2. इसके बाद चौक पूरकर कलश स्थापित करते हैं।
3. चौक के पास ही गोटियों वाला मांगलिक सूत्र रखते हैं।
4. षोडोषपचार पूजा करके भोग लगाते हैं।
5. भोग के लिए 7 आसें एक प्रकार बनाई जाती हैं। इसे व्रत करने वाली स्त्री ही खाती है।
6. फिर भोग लगाते समय इस मांगलिक सूत्र को धारण करते हैं।
7. इसके बाद घर का सबसे छोटा बच्चा कौड़ियों को पटिये पर डालता है।
8. स्त्री उन कौड़ियों को अपने पास रखती हैं और हर वर्ष इनकी पूजा करती है
9. अंत में भोग सभी को प्रसाद रूप में वितरित किया जाता है।
10. फिर आसमाई की कथा की जाती है या सुनी जाती है।
11. अंत में व्रत का पारण किया जाता है।
पूजा सामग्री :
1. पान का पत्ता
2. गोपी चंदन
3. लकड़ी का पाट
4. आसामाई की तस्वीर।
5. कलश (मिट्टी)
6. रोली
7. अक्षत
8. धूप
9. दीप
10. घी
11. नैवेद्य (हलवा पूड़ी)