इस बार 2 नवंबर 2022, बुधवार को आंवला नवमी (Akshaya Navami 2022) का त्योहार मनाया जा रहा है। इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है। इस दिन आंवला वृक्ष के समीप भोजन करने की मान्यता है। इससे आरोग्य, सुख और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। पौराणिक जानकारी के अनुसार च्यवन ऋषि ने च्यवनप्राश का निर्माण कर देवताओं को चिर यौवन प्राप्त कराया था।
दीपावली के बाद यानी कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को 'आंवला नवमी' कहते हैं। कार्तिक मास की इस नवमी तिथि को आंवले की पूजा पुत्र प्राप्ति के लिए विशेष लाभदायक मानी गई है। पुराणों के अनुसार अक्षय नवमी को कूष्माण्ड नवमी और धात्री नवमी भी कहा जाता है। इस दिन को आंवला नवमी के नाम से जाना जाता है। इस दिन जो भी व्रतधारी आंवला नवमी का व्रत कर रहे हैं उन्हें आज के दिन पूरे परिवार के साथ आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर ही भोजन करना चाहिए। यदि संभव हो तो वहीं पर बैठकर भोजन बनाना भी चाहिए। अगर आपके घर के आस-पास आंवले का वृक्ष न हो तो बाजार से आंवले का फल यानी आंवला खरीद कर इस दिन जरूर खाना चाहिए।
चरक संहिता के अनुसार अक्षय या आंवला नवमी के दिन महर्षि च्यवन ने भी आंवला खाया था, जिससे उन्हें पुन: नवयौवन प्राप्त हुआ था। इसलिए आप भी आज के दिन यह उपाय करके नवयौवन तथा सुंदरता पा सकते हैं। पौराणिक मान्यता है कि कार्तिक मास की नवमी को आंवले के पेड़ के नीचे अमृत की वर्षा होती है अत: कार्तिक शुक्ल नवमी को आंवले की पूजा व उसकी छांव में भोजन का विशेष महत्व माना गया है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार एक बार मां लक्ष्मी जब भ्रमण करने पृथ्वी पर आई, तो उन्हें शिवजी तथा विष्णुजी की पूजा एकसाथ करने की इच्छा जागृत हुई। तब उन्हें ध्यान आया कि तुलसी और बेल के गुण आंवले के वृक्ष में भी पाया जाता है। तब उन्होंने विष्णु और शिव का प्रतीक चिह्न स्वरूप आंवले के वृक्ष का पूजन किया तो प्रसन्न होकर शिव-विष्णु जी वहां प्रकट हो गए, तब माता लक्ष्मी ने आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन बनाया और विष्णु तथा शिव जी भोजन करवाया तत्पश्चात खुद ने भी भोजन खाया। अत: तभी से कार्तिक शुक्ल नवमी तिथि के दिन आंवले के वृक्ष का पूजन करके उसके नीचे भोजन करने की मान्यता है।
आंवला नवमी के दिन आवंला वृक्ष का पूजन करने के लिए प्रातः स्नानादि करके आंवले के वृक्ष के नीचे पूर्व दिशा में बैठकर पूजन करना चाहिए। पूजन के बाद आंवले के वृक्ष की जड़ में दूध का अर्घ्य देकर पेड़ के चारों ओर कच्चा धागा बांधना चाहिए। फिर कर्पूर या शुद्ध घी का दीया जलाकर आंवले के पेड़ की आरती करते हुए सात बार परिक्रमा करके उसी पेड़ के नीचे ब्राह्मण को भोजन कराने के पश्चात उन्हें दान-दक्षिणा अवश्य ही देनी चाहिए।
आंवला नवमी के दिन महिलाएं जगह-जगह आंवले के वृक्ष के नीचे पूजा-पाठ करके भगवान श्री विष्णु की विधिवत पूजन करके वही बैठकर भोजन ग्रहण करती हैं। इसके पीछे यह मान्यता है कि कार्तिक शुक्ल नवमी तिथि को आंवले के पेड़ से अमृत की बूंदें गिरती हैं और यदि इस पेड़ के नीचे व्यक्ति भोजन करता है, तो भोजन में अमृत का अंश आ जाता है जिसके प्रभाव से मनुष्य रोगमुक्त होता है तथा दीर्घायु बनता है। इस दिन रात्रि भोजन भी इसी वृक्ष के नीचे करने लाभदायी रहता है।
आंवला को प्राचीन काल से ही स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत उपयोगी माना गया है। आंवले का सेवन किसी भी रूप में किया जाए, लाभदायक ही होता है। 100 ग्राम आंवले में 800 मिलीग्राम विटामिन-सी होता है, जो कि हमारी नेत्र ज्योति के लिए बेहद फायदेमंद होता है। यदि 2 पके आंवलों का सेवन प्रतिदिन किया जाए तो 1 अंडे के बराबर शक्ति प्राप्त होती है।
इतना ही नहीं 1 आंवले में 2 संतरे जितनी मात्रा में विटामिन-सी होता है। साथ ही आयरन, जिंक, कैरोटीन, फाइबर, विटामिन-बी कॉम्प्लेक्स, कैल्शियम, एंटीऑक्सीडेंट्स आदि भी अच्छी मात्रा में आंवले के अंदर पाए जाते हैं। इसलिए आज के दिन आंवले का फल खाने से बुखार, जोड़ों के दर्द, बीपी और हार्ट रोग से संबंधित बीमारियों में फायदा मिलता है। आंवला जहां हड्डी को मजबूत करता है, वहीं बालों को सफेद होने से भी बचाता है तथा दांतों को मजबूती प्रदान करके सफेदी बरकरार रखता है।