भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी को अनंत चतुर्दशी का व्रत किया जाता है। भगवान सत्यनारायण के समान ही अनंत देव भी भगवान विष्णु का ही एक नाम है। यही कारण है कि इस दिन सत्यनारायण का व्रत और कथा का आयोजन प्राय: किया जाता है। जिसमें सत्यनारायण की कथा के साथ-साथ अनंत देव की कथा भी सुनी जाती है। इस व्रत में अनंत की चौदह गांठ चौदह लोकों की प्रतीक मानी गई हैं। उनमें अनंत भगवान विद्यमान हैं।
आइए जानें कैसे करें पूजन :-
* प्रात:काल स्नानादि नित्यकर्मों से निवृत्त होकर कलश की स्थापना करें।
* कलश पर अष्टदल कमल के समान बने बर्तन में कुश से निर्मित अनंत की स्थापना की जाती है।
* इसके आगे कुंमकुम, केसर या हल्दी से रंग कर बनाया हुआ कच्चे डोरे का चौदह गांठों वाला 'अनंत' भी रखा जाता है।
* कुश के अनंत की वंदना करके, उसमें भगवान विष्णु का आह्वान तथा ध्यान करके गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से पूजन करें।
* तत्पश्चात अनंत देव का ध्यान करके शुद्ध अनंत को अपनी दाहिनी भुजा पर बांध लें।
* यह डोरा भगवान विष्णु को प्रसन्न करने वाला तथा अनंत फल देने वाला माना गया है। यह व्रत धन-पुत्रादि की कामना से किया जाता है।
* इस दिन नए डोरे के अनंत को धारण करके पुराने का त्याग कर देना चाहिए।
* इस व्रत का पारण ब्राह्मण को दान करके करना चाहिए।